पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा

पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा – ओम प्रकाश वाल्मीकि का हिंदी कहानी के दलित रचनाकारों में महत्वपूर्ण स्थान है। B.A. के हिंदी कथा साहित्य प्रश्नपत्र के अंतर्गत पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा पूछी जाती है। इन्होंने अपनी कहानियों में कच्चे दलित जीवन का भोगा हुआ यथार्थ पीड़ा, समाज द्वारा तोहफा स्वरूप कदम कदम पर दिया जाने वाला अपमान इत्यादि को अभिव्यक्त किया है। प्रथक प्रथक अपनी विशेष दृष्टि समझदारी एवं सहजता के कारण दलित रचनाकार अपनी अलग पहचान रखते हैं।

पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा

पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-

  1. शीर्षक
  2. कथावस्तु
  3. पात्र एवं चरित्र चित्रण
  4. कथोपकथन
  5. देशकाल एवं वातावरण
  6. भाषा शैली
  7. उद्देश्य

शीर्षक

प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सामान्य, सहज एवं विस्तृत करने वाला है। जिसके मूल में एक उत्कंठा अवश्य बार-बार उत्पन्न होती है कि कैसे पच्चीस चौका डेढ़ सौ होता है।

पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा – कथावस्तु

सुदीप के पिताजी उसका दाखिला स्कूल में करवाने के लिए जाते हैं। वह सोचते हैं, कि मेरा लड़का पढ़ लिख कर बड़ा होगा कम आएगा जिससे मेरा जीवन में सफल हो पाएगा। सुदीप का दाखिला हो गया। पिताजी खुश थे। दाखिले के साथ हुए झुक झुक कर वे मास्टर फूल सिंह को सलाम कर रहे थे। सुदीप स्कूल में अपनी कक्षा में पढ़ने में तेज था। दूसरी कक्षा में आते-आते वह अच्छे विद्यार्थियों में गिना जाने लगा। तमाम सामाजिक दबावों और भेदभाव के बावजूद वह पूरी लगन से स्कूल जाता रहा। सभी विषयों में उसका मन लगता था। आप पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं।

गणित में उसका मन कुछ ज्यादा ही लगता था। मास्टर शिव नारायण मिश्रा ने चौथी कक्षा के बच्चों से 15 तक पहाड़े याद करने के लिए कहा था। लेकिन सुदीप को 24 तक पहाड़े पहले से ही अच्छी तरह से याद थे। मिश्रा जी ने शाबाशी देते हुए 25 तक का पहाड़ा याद करने के लिए सुदीप से कहा। स्कूल से घर लौटने पर सुदीप ने 25 का पहाड़ा याद करना शुरू कर दिया। वाह जोर जोर से ऊंची आवाज में पहाड़ा कंठस्थ करने लगा।

जब वह पहाड़ा पढ़ रहा था तो उसने पच्चीस चौका सौ बोला। लेकिन उसके पिताजी ने उसे टोका और कहा कि बेटा पच्चीस चौका डेढ़ सौ होता है 100 नहीं। उसने पिताजी को समझाने की कोशिश की कि किताब में साफ-साफ लिखा है, पच्चीस चौका डेढ़ सौ लेकिन पिताजी मान नहीं रहे थे। पिताजी कहते हैं, कि तेरी किताब गलत हो सकती है। उसके पिताजी उसको हटा करके कहने लगे कि अपने मास्टर से कहना जाकर सही-सही पढ़ाया करें। अगले दिन कक्षा में मास्टर शिव नारायण मिश्रा ने 25 का पहाड़ा सुनाने के लिए सुदीप को खड़ा कर दिया। आप पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं।

वह कक्षा में पच्चीस चौका डेढ़ सौ ही सुना रहा था। मास्टरजी ने उसे तो टोककर कहा अबे डेढ़ सौ नहीं सौ कहो। सुदीप डरते डरते कहता है, मास्टर साहब पिताजी कहते हैं पच्चीस चौका डेढ़ सौ होता है। इस प्रकार मास्टर जी उखड़ गए और खींचकर एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया। और कहा कि अबे तेरा बाप इतना विद्वान होता तो दाखिले के लिए ना गिर गया था। अपना हर कार्य सुसंस्कृत ढंग से करता तुम लोगों को कितना पढ़ा लिखा हो वही के वही दिमाग में कूड़ा करकट भरा रहेगा।

थोड़ा सी तारीफ क्या कर दिए उलट कर जवाब देने लगा। पच्चीस चौका 100 और पच्चीस चौका डेढ़ सौ का विवाद अंततः सुदीप के नौकरी के वेतन प्राप्त करने में समाप्त होता है क्योंकि सुदीप रुपए के माध्यम से पिताजी को पच्चीस चौका डेढ़ सौ नहीं पच्चीस चौका सौ को सिद्ध कर देता है। आप पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं।

पात्र एवं चरित्र चित्रण

पात्र एवं चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह कहानी विशेष महत्वपूर्ण है। इस कहानी को पुरुष पात्रों में चौधरी पिताजी, फूल सिंह मास्टर शिव नारायण मिश्रा एवं स्त्री पात्रों में सुदीप की माताजी हैं। चौधरी साहब का समाज में सम्मान है वे बड़े एवं धनी व्यक्ति हैं। गरीब लोग उनका सम्मान करते हैं वे जो कहते हैं, उसकी बात का लोग आदर करते हैं। मास्टर फूल सिंह स्कूल के मास्टर हैं। जिसमें सुदीप के पिताजी दाखिले के समय फूल सिंह के साथ उनके पिताजी हेड मास्टर के पास जाते हैं। और सुदीप का दाखिला करवाते हैं।

मास्टर शिव नारायण मिश्रा 25 का पहाड़ा गलत पड़ने पर सुदीप को एक थप्पड़ जड़ देते हैं और कहते हैं। पढ़ाई लिखाई के संस्कार तो तुम लोगों में आही नहीं सकते। चल बोल पच्चीस चौका सो, स्कूल में तेरी थोड़ी सी तारीफ क्या होने लगी। पांव जमीन पर नहीं पड़ते ऊपर से जवान चलावे हैं। उलट कर जवाब देता है। सुदीप ने सुबकते हुए पच्चीस चौका चौका और एक सांस में पूरा पहाड़ा सुना दिया। आप पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं।

पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा – कथोपकथन

इस कहानी का कथ्य कथन बड़ा ही मार्मिक है पूरी कहानी में कहानीकार ने एक ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की है कि पात्रों के अनुकूल ही कहानी की संवाद योजना है। कहीं कहीं वह विस्तृत रूप में है तो कहीं कहीं संक्षिप्त रूप में।

देशकाल एवं वातावरण

इस कहानी का वातावरण ग्रामीण परिवेश को अपने में समेटे हुए है। जाती, पाति ऊंच-नीच, अस्पृश्यता, छुआछूत की भावना, ईर्ष्या इत्यादि भी गांव में बनी हुई है। यह इस कहानी के परिवेश से पता चलता है। आज जबकि पूरी दुनिया दलित विमर्श कर रही है, ऐसे में अछूतों में अछूत की बात करना, दलित बच्चे का स्कूल में दाखिला एवं उसके प्रति भेदभाव कहीं ना कहीं आधुनिक परिवेश में एक सोच को दर्शाती है। ऐसे कहानी में व्याप्त ईर्ष्या, उपेक्षा, छुआछूत कहीं ना कहीं इसके वातावरण को गंभीर बनाती है।

भाषा शैली

इस कहानी की भाषा आमजन की भाषा है। यहां स्थानीय प्रभाव भी देखने को मिलता है। कहानी में हरियाणवी एवं राजस्थानी के शब्द भी दिखाई देते हैं। कुछ उर्दू शब्दों का प्रयोग जिन्होंने अपनी कहानी में किया है।

पच्चीस चौका डेढ़ सौ कहानी समीक्षा – उद्देश्य

इस कहानी का मूल उद्देश्य दलित समाज में शिक्षा के अभाव को दर्शाया गया है। तमाम सामाजिक दबावों और भेदभाव के बावजूद सुदीप पूरी लगन से स्कूल जाता रहा। दर्दनाक एवं हृदय विदारक प्रस्तुतीकरण के माध्यम से जाति विशेष की बात को प्रमुखता से प्रकट किया गया है। इस कहानी में कहानीकार ने यह दिखाया है कि संपन्न या सम्मानित व्यक्ति की बात अनपढ़ और निम्न वर्ग के लोग बड़े विश्वास से सत्य मानते हैं और उनका आदर करते हैं। वे उसके खिलाफ जा नहीं सकते हैं। सड़ी गली रूढ़ियों का प्रस्तुतीकरण करना इस कहानी का मूल उद्देश्य रहा है। जिसमें कहानीकार सफल हुआ है।

ओम प्रकाश वाल्मीकि जीवन परिचय

 
ओम प्रकाश वाल्मीकि
लेखक
जन्म

30 जून 1950

जन्म स्थान

बरला, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश, भारत

मृत्यु

17 नवम्बर 2013

सम्मान
  • डॉ॰ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार 1993
  • परिवेश सम्मान 1995
  • न्यू इंडिया बुक पुरस्कार 2004
  • कथाक्रम सम्मान 2001

ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। दलित साहित्य के विकास में इनकी प्रमुख भूमिका रही है। वाल्मीकि के अनुसार दलितों द्वारा लिखा जाने वाला साहित्य ही दलित साहित्य है।

बचपन, शिक्षा तथा कार्यक्षेत्र

आपका बचपन अनेक आर्थिक तथा सामाजिक कठिनाइयों में बीता। वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ और उन्होंने दलित साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आपका नाटकों में अभिनय के साथ-साथ निर्देशन में भी काफी रूचि थी।

रचनाएं
आत्मकथा

जूठन (वंचित वर्ग की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट किया है।)

कहानी संग्रह
  • सलाम
  • घुसपैठिए
  • अम्‍मा एंड अदर स्‍टोरीज
  • छतरी
नाटक
  • दो चेहरे
  • उसे वीर चक्र मिला था
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1 Comment
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mrinali
mrinali
1 year ago

very useful