भारत में निर्धनता की परिभाषा पौष्टिक आहार के आधार पर दी गई है। योजना आयोग के अनुसार किसी व्यक्ति को गांव में यदि 2400 कैलोरी और शहरों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन की ऊर्जा का भोजन उपलब्ध नहीं होता है तो यह माना जाएगा कि वह व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है।
निर्धनता
कुछ प्रमुख विद्वानों ने गरीबी को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-
गरीबी वह दशा है जिसमें एक व्यक्ति अपर्याप्त आए या विचार हीन वह के कारण अपने जीवन स्तर को इतना ऊंचा नहीं रख पाता है जिससे उसकी शारीरिक व मानसिक कुशलता बनी रह सके वह तथा उसके आश्रित समाज के स्तर के अनुसार जिसका कि वह सदस्य है जीवन व्यतीत कर सके।


निर्धनता को रहन-सहन की एक ऐसी दशा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिससे स्वास्थ्य और शारीरिक कुशलता का अभाव होता है।
उपर्युक्त परिभाषा ओं से स्पष्ट होता है कि गरीबी एक सापेक्ष शब्द है, इसका मापदंड व्यक्तियों को न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधाएं प्राप्त ना हो सकता है। न्यूनतम जीवन स्तर विभिन्न साधनों पर भिन्न-भिन्न होने के कारण गरीबी के किसी साधारण मापदंड का निर्धारण नहीं किया जा सकता।
पूर्ण निर्धनता
जिस स्थिति में व्यक्ति के पास आवश्यक आवश्यकताओं जैसे आवास भोजन चिकित्सा एवं जीवित रहने हेतु अन्य आवश्यक वस्तुओं का अभाव पाया जाता है, वह पूर्ण निर्धनता की स्थिति होती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जाता है कि सामान्य जीवन की आवश्यकताओं को जुटाने के लिए पर्याप्त धन का अभाव ही पूर्ण निर्धनता है। अमेरिका में गरीबी की माप पूर्णता के तरीके से की जाती थी। इसके अंतर्गत गरीबी का माप वार्षिक आय स्तर पर होता है।
निर्धन उन लोगों को माना जाता है जिनकी आय इस निर्धारित वार्षिक आय से कम होती है। पूर्ण निर्धनता को निरपेक्ष गरीबी भी कहा जाता है। एक व्यक्ति की पूर्ण तथा निरपेक्ष गरीबी से आशय यह है कि उसकी आए या उपभोग वह इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण पोषण स्तर के नीचे स्तर पर जीवन यापन कर रहा है।
अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि पूर्ण गरीबी से आशय मानव की आधारभूत आवश्यकताओं रोटी, वस्त्र, आवास व स्वास्थ्य सुविधाएं आदि की पूर्ति हेतु पर्याप्त वस्तुओं व सेवाओं को जुटा पाने की असमर्थता से है।
संक्षेप में, जब कोई व्यक्ति अपनी आय में से अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है तो उसके सामने पूर्ण गरीबी की स्थिति होती है।
सापेक्ष निर्धनता
जिन लोगों ने गरीबी को सापेक्ष तथ्य माना है उन लोगों ने पूर्ण निर्धनता की अवधारणा की आलोचना इस आधार पर की है कि पूर्ण जनता की अवधारणा स्थिर है। जो की आवश्यकता एवं सुविधाओं को बदलते मापदंड को शामिल नहीं करती है। जो वस्तु है आज सुविधा की मानी जाती है वही आने वाले समय में आवश्यकता बन सकती हैं।
इस प्रकार देश के जीवन स्तर में वृद्धि के साथ गरीबी के मापदंड में भी परिवर्तन होता रहता है। सापेक्ष गरीबी का माप समाज के सबसे नीचे स्तर के व्यक्तियों के लोगों की दशा से तुलना के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि निर्धनता एक सापेक्ष तथ्य है।
संक्षेप में सापेक्ष निर्धनता से आशय आय की असमानता ओं से लगाया जाता है। जब हम किन्हीं दो देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना करते हैं, तो उनके बीच भारी असमानता देखने को मिलती है। जिसके आधार पर हम गरीब व अमीर देश की तुलना कर सकते हैं यह निर्धनता सापेक्षिक होती है।
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