निर्णय लेना एक कठिन कार्य है इसलिये निर्णय लेते समय बहुत ही सावधानी की आवश्यकता होती है। यदि गलत निर्णय ले लिया जाता है तो उसका परिणाम बहुत ही घातक होगा। इसके साथ-साथ निर्णय तर्कसंगत होना चाहिए अर्थात् निर्णय लेने के लिए उसके पक्ष में ठोस सबूत भी होने चाहिए। निर्णय लेने की विधियों के बारे में विभिन्न विद्वानों में मतभेद हैं जिनमें से कुछ विद्वानों के विचार मित्र है –
जॉन-जी-हाँचिनसन के अनुसार प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है-
- अनुमान विधि
- प्रबंध के सिद्धान्त
- प्रतिरूप निर्माण विधि
- व्यावहारिक विधि
- आर्थिक एवं वित्तीय विधियां
- सांख्यिकीय विधियां
- विशिष्ट निर्णय विधियाँ
निर्णयन की विधियां
अध्ययन की सुविधा के लिए निर्णयन की विधियो के दो भागों में बांटा जा सकता है।
- निर्णयन की परंपरागत विधियां।
- निर्णयन की वैज्ञानिक विधियाँ।
निर्णयन की परंपरागत विधियां
परम्परागत गतिवधियों में उन विधियों को शामिल किया जाता है जो परम्परा के रूप में चली आ रही है। इसमें वैज्ञानिक विधियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इसमें कार्य करने वाले प्रबन्धक लकीर के फकीर होते हैं। परम्परागत विधियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
- पूर्व अनुभव एवं आदत अनेक प्रबन्धक अपने निजी अनुभवों तथा अन्य प्रबन्धकों के अनुभवों के आधार पर निर्णय लेते हैं। चूंकि अनुभव को मनुष्य का सबसे बड़ा शिक्षक माना जाता है। इसलिये कुछ विद्वानों का कहना है कि अनुभव समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं। इसलिये उनके आधार पर निर्णय लेना सफलता का परिचायक है। इसके विपरीत कुछ आलोचक विद्वानों का कहना है समय एवं परिस्थितियों इतनी तेजी से बदल रही है कि पिछला अनुभव वर्तमान समय में पूर्ण रूप से लागू नहीं होता है। इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के विचार निम्नलिखित है। “अनुभव व तत्त्व इतिहास में अवश्य होते हैं तथा उनका सम्बन्ध भूतकाल से होता है। अच्छे निर्णयों का मूल्यांकन भावी घटनाओं के आधार पर होना चाहिए।” उपरोक्त परिभाषा के आधार पर यह कह सकता है कि निर्णय लेते समय भविष्य में रखते हुए पूर्वानुमान लगा लेना चाहिए।
- विवेक व अन्तर्ज्ञान प्रबन्धका अपने विवेक ज्ञान के आधार पर भी निर्णय ले सकते हैं। विवेक के आधार पर निर्णय लेते समय अपने निजी अनुभव, स्वभाव तथा किसी विचारों के आधार पर लेना चाहि अनके आधार पर निर्णय लेने वाले नाक से यदि यह पूछा जाये कि उसने निर्णय से इस जवाब नहीं दे पायेंगा।
निर्णयन की वैज्ञानिक विधियाँ
जो द्वारा निर्णय सिद्धान्तों के आधार पर लिये जाते है तो यह कहा जाता है यह निर्णय वैज्ञानिक निर्णय है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक विधियों कार एव परिणामों के सिद्धान्तों पर आधारित होती है। कुछ महत्वपूर्ण विधियां निम्नलिखित है –
- प्रयोग के आधार पर इस विधि सबसे पहले प्रयोग के रूप में लागू किया जाता है और यदि परिणाम सफल रहता है तो फि उसका चयन कर लिया जाता है। लेकिन इस विधि का सबसे बड़ा दोष यह है कि जिन समस्याओं के लिए हमारे पास अधिक समय नहीं है, वहाँ इसे लागू नहीं कर सकते है। इस विधि का प्रयोग कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। जैसे प्रबन्ध नियुक्त करने के मामले में पदार्थ बिकेगा या नहीं।
- अनुसंधान प्रणाली – इस विधि के अन्तर्गत सब पहले समस्या को समझने का प्रयास किया जाता है अर्थात् समस्या तत्वों का पता लगाया जात है। इसके बाद समस्या को उचित भागों में बाँट दिया जाता है। इसके बाद समस्या के गुणात्मक ए संख्यात्मक खण्डों का अध्ययन किया जाता है। इसके बाद इस प्रणाली को लागू किया जाता है आजकल इस विधि का प्रयोग अधिक किया जाता है क्योंकि यह प्रणाली प्रयोग विधि की तुलना सस्ती है।
- नमूना या मॉडल बनाना – इस विधि के अन्तर्गत वस्तु के छोटे-छोटे नमूने या मॉडल बनाकर बाजार में उतार दिया जाता है। मॉडल के लोकप्रिय होने के बाद उत्पादन प्रारम्भ किया जाता है। इस प्रकार की पद्धति, कार उद्योग, स्कूटर उद्योग, रेडियो उद्योग, टी. बी. उद्योग, मकान उद्योग इत्यादि के सम्बन्ध में प्रयोग की जाती है ये मॉडल गणिती सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं।
- आर्थिक एवं वित्तीय विधियों – इस विधि का प्रयोग तब किया जाता है जब भविष्य के संबंध में निर्णय लेना होता है क्योंकि ऐसे ति में आर्थिक एवं वित्तीय तत्व बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
निर्णयन के सिद्धान्त
निर्णयन के कुछ प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित है-
- मानवोचित व्यवहार का सिद्धान्त प्रबन्ध को निर्णय लेते समय मानवता को ध्यान में रखना चाहिए। उदाहरण के लिए गर्भवती महिला का अवकाश स्वीकार न किया जाये या अयोग्य व्यक्ति की पदोन्नति कर दी जाये तो ऐसे निर्णय मानवतापूर्ण नहीं होंगे। ऐसे समस्त निर्णय जो मानवतापूर्ण होते हैं अधिक प्रभावशाली होते है अपेक्षाकृत गैर मानवतापूर्ण वाले सिद्धान्त के
- व्यक्तिगत स्वार्थ का सिद्धान्त प्रबन्धकों को निर्णय लेते समय कर्मचारियों के व्यक्तिगत स्वार्थ को भी ध्यान में रखना चाहिए। कुछ श्रमिक मौद्रिक हितों को अधिक महत्व देते हैं और कुछ कर्मचारी अमौद्रिक हितों को प्राथमिकता देते हैं अतः कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए उनके व्यक्तिगत स्वार्थ को ध्यान में रखना चाहिए।
- आनुपातिकता का सिद्धान्त प्रबन्धकों को निर्णय लेते समय आनुपातिकता के सिद्धान्त को ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् उत्पादन के विभिन्न साधनों के समायोजन द्वारा अनुपात में करना चाहिए ताकि अधिकतम परिणाम प्राप्त हो सके।
- समय का सिद्धान्त प्रबन्धकों को निर्णय लेने में समय का ध्यान रखना चाहिए। समय से पहले व समय के बाद कार्य का कोई महत्व नहीं है।
- गतिशीलता का सिद्धान्त प्रबन्धकों को निर्णय लेते समय गतिशीलता को ध्यान में रखना चाहिए। किसी समय विशेष में लिया गया निर्णय हरदम लागू नहीं किया जा सकता है। समय के परिवर्तन के साथ-साथ निर्णय भी परिवर्तित होते रहने चाहिए।
- सीमित घटकों का सिद्धान्त प्रबन्धकों को निर्णय लेते समय सीमित घटकों को ध्यान में रखना चाहिए। निर्णय लेने से पूर्व सीमित घटकों का विश्लेषण कर लेना चाहिए।
निर्णयन के मूल तत्व
- मनोवैज्ञानिक तत्व किसी योग्य, चतुर और प्रभावी व्यक्ति द्वारा निर्णय की प्रक्रिया सम्पन्न की जानी चाहिए क्योंकि निर्णय लेने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण प्रभाव पड़ता है।
- निर्णय सम्प्रेषण निर्णयोओं को कार्य रूप में परिणित करने के लिए यह आवश्यक है कि निर्णय लेने के पश्चात् उसका उचित सम्प्रेषण करना चाहिए।
- निरन्तरता निर्णय की प्रक्रिया भूत, वर्तमान तथा भविष्य की घटनाओं से प्रभावित होती है इसलिए निर्णयन की प्रक्रिया निरन्तर होनी चाहिए।
- कर्मचारियों की सहभागिता की प्रक्रिया में निर्णय कर्मचारियों के सहयोग से ही लिये जाने चाहिए। जिससे संस्था में कर्मचार वर्ग अपना अस्तित्व समझता है।
- सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव सर्वश्र विकल्प का चयन निर्णयन की प्रक्रिया में अनेक वैकल्पिक तरीकों से किया जाता है।
- निर्णयन का समय निर्णय लेने की प्रक्रिया संस्था मे उचित समय पर की जानी चाहिए।
- निर्णयन का वातावरण संस्था मे निर्णय लेने के लिए उचित वातावरण होना चाहिए। संस्था में निर्णय लेने के लिए यह आवश्यक है कि संस्था में संगठन औपचारिक हो और सन्देश वाहन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
निर्णय लेते समय ध्यान रखने योग्य बातें
निर्णय लेते समय किसी भी उपक्रम में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है-
- जो व्यक्ति निर्णय लेता है उसकी तथ्यों के बारे में जानकारी, विश्लेषण करने की क्षमता, अनुभव, अन्तर्ज्ञान आदि गुणों का होना आवश्यक है।
- व्यक्ति द्वारा निर्णय को कार्यान्वित करने के बाद उसका अनुसरण करना आवश्यक है।
- जो निर्णय लिये जाएं वे स्थाई होने चाहिए।
- प्रबन्धकों की स्थिति संगठन संरचना में स्पष्ट होनी चाहिए।
- वैज्ञानिक विधि द्वारा निर्णय लेने चाहिए।
- निर्णयन प्रक्रिया में प्रशिक्षित अधिकारियों द्वारा निर्णय लिए जाने चाहिए।
- निर्णय हमेशा धैर्यपूर्वक, सोच-विचार कर लेने चाहिए।
- निर्णय प्रक्रिया व्यावहारिक होनी चाहिए।
- निर्णय उपक्रम के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर लेने चाहिए।
- निर्णय निर्णयन प्रक्रिया में उससे सम्बन्धित अधीनस्थों का सहयोग लेकर ही लेने चाहिए।
- उपक्रम में निर्णयन प्रक्रिया को भली-भाँति पूर्व योजना के अनुसार कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
- निर्णय हमेशा समय पर लेने चाहिए और उनको समय पर कार्यान्वित करके उनका अनुसरण करना चाहिए।