निर्णयन अर्थ विशेषताएं प्रकृति निर्णयन के प्रकार

प्रबंधकों द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य निर्णयन पर आधारित होते हैं जैसे उत्पादन की श्रेणी क्या होगी, कच्चा माल किस स्तर का प्रयोग किया जायेगा एवं कच्चा माल कहाँ से क्रय किया जायेगा। निर्माण की उत्तम विधि क्या होगी। श्रम शक्ति की उपलब्धि कहाँ से और कब-कब होगी। अतः निर्णय लेना एक प्रक्रिया है जिसमें किसी कार्य को करने के सम्भावित अनेक विकल्पों में से किसी एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प को चुना जाता है।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि व्यवसाय के प्रारम्भ से लेकर अंत तक व्यापार में जो भी निर्णय लिये जाते हैं उन निर्णय लेने की प्रक्रिया को निर्णयन कहते हैं। किसी भी समस्या को हल करने के लिए प्रबंधक के पास कई विकल्प मौजूद होते हैं। उन सभी विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प चुनना प्रबंधक का मुख्य कार्य है।

निर्णयन की परिभाषाएं

निर्णयन के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी हैं-

निर्णयन किसी मापदण्ड पर आधारित दो या अधिक सम्भावित विकल्पों में से किसी एक का चयन है।

जार्ज आर टेरी

प्रबन्धकीय निर्णय वे निर्णय होते हैं जो सदैव सही प्रबन्धकीय क्रियाओं जैसे नियोजन, संगठन, कर्मचारियों की भर्ती, निर्देशन, नियंत्रण, नवप्रवर्तन और प्रतिनिधित्व में से किसी एक के दौरान लिये जाते हैं।

निर्णयन को दो या दो से अधिक सम्बंधित विकल्पों में से एक व्यावहारिक विकल्प किसी आधार पर चयन करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। निर्णय लेने का अर्थ समाप्त करना या व्यावहारिक रूप में किसी निष्कर्ष पर पहुँचना।

आर. एस. डावर

निर्णयन एक क्रिया को करने के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का वास्तविक चयन है। यह नियोजन की आत्मा है।

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि व्यावसायिक नियोजन लक्ष्यों, नीतियों एवं कार्यविधियों के विकल्पों में चुनने की प्रक्रिया को निर्णयन कहते है।

निर्णयन की विशेषताए

निर्णयन में निम्नलिखित विशेषताएं पायी जाती है-

  1. निर्णय लेना एक अंतिम प्रक्रिया है इसलिये बहुत ही सोच-समझकर निर्णय लिये जाते हैं।
  2. निर्णयन में अनेक विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना जाता है।
  3. निर्णयन प्रक्रिया मानवीय प्रक्रिया है इसलिये पर्याप्त ज्ञान बुद्धि, विवेक एवं अनुभव आवश्यकता होती है।
  4. निर्णयन नियोजन का अंग होता है।
  5. निर्णयन धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी हो सकता है।
  6. प्रत्येक निर्णय में वचनबद्धता निहित होती है।
  7. निर्णय कुछ निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किये जाते हैं।
  8. निर्णयन में समय तत्व का विशेष महत्व होता है।
  9. निर्णयन प्रक्रिया में सुदृढ़ता का होना आवश्यक है।
  10. निर्णय एक साधन है साध्य नहीं।
  11. निर्णय वास्तविक स्थिति के समरूप होते हैं।
  12. निर्णयन में मूल्यांकन करने का भी लक्षण विद्यमान रहता है।
  13. निर्णय लेने से पूर्व योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों से विचार-विमर्श किया जाता है।
  14. निर्णयन से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त किया जाता है।
  15. निर्णयन एक विशिष्ट तकनीक होती है।

निर्णयन की प्रकृति

निर्णयन की प्रकृति की विवेचना निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत हो सकती है-

  • निर्णयन एक बौद्धिक क्रिया है – निर्णय लेना एक मानसिक व्यवहार है। विभिन्न विकल्पों में से सर्वोत्तम विकल् चुनना मनुष्यों के द्वारा ही संभव है क्योंकि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी होता है। अतः मानवीय निर्णय विवेक पर आधारित होने चाहिए।
  • निर्णयन एक सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया है – निर्णयन का कार्य किसी न किसी रूप में भूत, वर्तमान या भवि से संबंधित होता है। भूतकाल में कोई समस्या उत्पन्न होती है, वर्तमान समय में उस समस्या के समाधान के लिए वैकल्पिक विधियों पर विचार किया जाता है और सर्वोत्तम विधि का चयन किया जाता है तथा भविष्य में उस सर्वोत्तम विधि को प्रयोग में लाया जाता है। इस प्रकार घटनाओं क यह चक्र निरन्तर चलता है। यही नहीं, एक निर्णय अन्य नवीन निर्णयों को जन्म देता है।
  • वचनबद्धता, निर्णय लेने वाला व्यक्ति कोई निर्णय लेने केअपने निर्णय से वचनबद्ध हो जाता है कि वह सभी कार्य अपने निर्णय के अनुसार ही करे। दुर शब्दों में वह कहा जा सकता है कि निर्णय लेने के पश्चात् निर्णयकर्ता वचनबद्ध हो जाता हैउसे अपने निर्णय के अनुसार ही समस्त नियोजन कार्य सम्पन्न करना पड़ता है तथा समस्त व्यावसायिक क्रियाये भी उसी निर्णय के अनुरूप ही सम्पन्न की जाती है।
  • मूल्यांकन निर्णयन की प्रक्रिया में मूल्यांकन करना अत्यन्त आवश्यक होता है क्योंकि जब तक विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन नहीं किया जायेगा तब तक यह पता लगाना मुश्किल है कि सर्वोत्तम कौन है और मूल्यांकन के बगैर निर्णय के अपेक्षित परिणामो और वास्तविक परिणामो की तुलना नहीं की जा सकती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सर्वोत्तम विकल्प चुनने के लिए और आपेक्षित और वास्तविक परिणामों की तुलना करने के लिए मूल्यांकन करना आवश्यक है।
  • ‘निर्णयन’ ‘निर्णय नहीं’ है निर्णयन एक प्रक्रिया है जिसके आधार पर निर्णय लिये जाते हैं और यह माना जाता है कि निर्णय है। इस प्रक्रिया का अंतिम परिणाम है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि निर्णयन अपने आप में कोई फैसला नहीं होता है। बल्कि सर्वोत्तम विकल्प के चयन की एक तकनीक होती है।
  • निर्णयन एक गतिशील प्रक्रिया है। सबसे पहले समस्या को समझा जाता है उसके बाद समस्या के संभावित समाधानों के विकल्पों पर विचार किया जाता है। इसके बाद विभिन्न विकल्पों के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है और अंत में सर्वोत्तम विकल्प को अपना लिया जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि निर्णयन एक ती प्रक्रिया है।
  • निर्णयन को पूर्वानुमान का एक अंग माना जाता है – चूंकि निर्णयन भूतकाल को विश्लेषित करके और वर्तमान को समझ करके भविष्य के लिए निर्णय लिया जाता है इसलिए इसे पूर्वानुमान का अंग कहा जा सकता है।
  • नये निर्णयों का जन्म अनेक निर्णय ऐसे होते हैं जिनकी वजह से नये-नये निर्णय लेने पड़ते हैं। कभी-कभी पूर्व लिये गये निर्णयों की कमियों को दूर करने के लिए नये निर्णय लेने पड़ते है।
  • निर्णयन प्रबंध की आत्मा है प्रबंध के सभी कार्य नियोजन, संगठन, संचालन, और नियंत्रण एवं निर्णयन के द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं। इसीलिये प्रबंधक को पेशेवर निर्णय लेने वाला माना जाता है औरप्रबंध की आत्मा कहा जाता है।

निर्णयन के प्रकार

निर्णयन निम्न प्रकार के होते है –

  1. संगठनात्मक एवं व्यक्तिगत निर्णय
  2. कार्यक्रमिक एवं अकार्यक्रमिक निर्णय
  3. नीति विषयक एवं संचालक निर्णय
  4. व्यक्तिगत एवं सामूहिक निर्णय
  5. नियोजित एवं अनियोजित निर्णय
  6. नैतिक एवं आधारभूत निर्णय

संगठनात्मक एवं व्यक्तिगत निर्णय

संगठनात्मक निर्णय के होते हैं जो एक अधिशासी या कार्यकारी अधिकारी अपनी आधिकारिक स्थिति में होता है और जिसमे अन्य व्यक्तियों को प्रत्यायोजित किया जा सकता है। जैसे कितना माल खरीदा जाये, कहाँ से खरीदा जाये कहाँ पर मेचा जाये इत्यादि। व्यक्तिगत निर्णय से होते है जो एक अधिकारी द्वारा अपने व्यक्तिगत स्थिति में लिये जाते है और जिन्हें प्रत्यायोजित नहीं किया जा सकता है। संगठनात्मक निर्णय सम्पूर्ण संगठन के लिए लिए जाते है और व्यक्तिगत निर्णय व्यक्ति के स्वयं के लिये जाते हैं।

कार्यक्रमिक एवं अकार्यक्रमिक निर्णय

कार्यक्रमिक निर्णय ऐसे निर्णय होते हैं जिनको लेने के लिये एक नियत व सुव्यवस्थित प्रणाली निर्धारित कर ली जाती है। यह निर्णय नैत्यिक एवं पुनरावृति प्रवृत्ति के होते है। जैसे बीमार कर्मचारियों को नियमानुसार अवकाश व वेतन देना, आकस्मिक अवकाश पर जाने वाले कर्मचारियों को छुट्टी देना, गर्भवती महिलाओं को अवकाश एवं सुविधा देना। कार्यक्रमिक निर्णय के होते हैं जिनको लेने के लिए एक निश्चित प्रणाली नहीं होती है।इनकी समस्याओं का समाधान परम्परागत आधार की विधियों से किया जाता है। जैसे आयात करना, निर्यात करना आयात न करना, निर्यात न करना, विदेशों में शाखाएं खोलना इत्यादि।

नीति विषयक एवं संचालक निर्णय

जो निर्णय उच्च प्रबन्ध द्वारा कम्पनी की आधारभूत नीतियों के संबंध में लिये जाते “है और जो सम्पूर्ण उपक्रम को प्रभावित करते हैं उन्हें नीति-विषयक निर्णय कहते है जैसे लाभांश की दर तय करना, कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना, कर्मचारियों को वित्तीय या अवित्तीय प्रेरणाएं प्रदान करना इत्यादि। जो निर्णय निम्न स्तरीय प्रबंधकों द्वारा नीति संबंधी निर्णयों को संचालित करने के लिये। जाते हैं, वह संचालन संबंधित निर्णय कहलाते है जैसे कार्यों का आवंटन करना, अधिकारों का भारार्पण करना इत्यादि।

व्यक्तिगत एवं सामूहिक निर्णय

जो निर्णय केवल एक व्यक्ति या एक अधिकारी द्वारा लिये जाते हैं, जिसमे अधीनस्थों को शामिल नह किया जाता है, उन्हें व्यक्तिगत निर्णय कहते है। वर्तमान में ऐसे निर्णय छोटे आकार की संस्थाओं लिये जाते हैं, जिन्हें एकल स्वामित्व व्यवसाय के नामों से जाना जाता है। जो निर्णय अधीनस्थों एवं सम्पूर्ण समूह को शामिल करके लिये जाते हैं, उन्हें सामूहिक निर्णय कहते है। दूसरे शब्दों में पह कहा जा सकता है कि सामूहिक निर्णय एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा एक समूह जिसमें अनेक व्यक्ति होते हैं मिलकर किसी निर्णय पर पहुँचते हैं।

नियोजित एवं अनियोजित निर्णय

जो निर्णय पूर्व निर्धारित योजना के आधार पर लिये जाते हैं उन्हें नियोजित निर्णय कहते है। देते निर्णय ठोस तथ्यों पर आधारित होते हैं जिनसे हानि होने की सम्भावना नहीं होती। ऐसे निर्णय वैज्ञानिक विधि के अनुसार लिये जाते है।जो निर्णय विशिष्ट अवसरों पर या विशिष्ट परिस्थितियों में या बगैर पूर्व योजना के उन्हें अनियोजित निर्णय कहते है। ऐसे निर्णयों को लेना कोई कठिन कार्य नहीं होता है।

नैतिक एवं आधारभूत निर्णय

जो निर्णय व्यवसाय की प्रकृति में बराबर लिये जाते हैं एवं जिनके विषय में कोई विशेष विचार- विमर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती, वे नैत्यिक निर्णय कहलाते है जैसे स्टेशनरी क्रय करना, पत्र व्यवहार करना इत्यादि। जो निर्णय गहन अध्ययन एवं सोच-समझकर लिये जाते हैं, उन्हें आधारभूत या महत्वपूर्ण निर्णय कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है जिन निर्णयों को लेने के लिए गहन अध्ययन विश्लेषण एवं विस्तृत अधिकार की आवश्यकता होती है, उन्हें आधारभूत निर्णय कहते है। आधारभूत निर्णयों में परिवर्तन करना कोई आसान काम नहीं है।

निर्णयन का महत्व

निर्णयन का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. निर्णयन का क्षेत्र व्यापक है – लगभग प्रबंध के सभी कार्य निर्णयन से प्रभावित होते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रबंधक जो भी कार्य करता है वह निर्णयन द्वारा ही करता है। प्रत्येक व्यवसाय में प्रवर्तन से लेकर समापन तक अनेक प्रकार के निर्णय लेने पड़ते है। इसलिये यह कहा जा सकता है कि निर्णयन का क्षेत्र अति व्यापक है।
  2. निर्णयन समस्त प्रबंधकीय कार्यों का आधार है –  निर्णयन को समस्त प्रबंधकीय कार्यों का आधार माना जाता है। क्योंकि बिना निर्णय के प्रबन्ध का कोई भी कार्य संभव नहीं है। जार्ज टैरी, पीटर ड्रकर, मैकडोनाल्ड आदि विद्वानों का मानना है कि निर्णयन प्रबंध का प्राथमिक कार्य है तथा निर्णय प्रबन्धकीय कार्यो की कुंजी है।
  3. प्रबंध तथा निर्णयन दोनों अपृथक्करणीय सहगामी हैं –  व्यावसायिक प्रबंध एवं निर्णय एक-दूसरे के सहगामी है। अतः इन्हें एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये दोनों ही कार्य साथ-साथ चलते हैं। प्रो. साइमन ने तो यहां तक कहा है कि प्रबन्ध एवं निर्णयन कोई अलग कार्य नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पर्याय है। यदि यह कहा जाय तो किसी प्रकार अनुचित नहीं होगा कि प्रबंध के बिना निर्णय के एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता।
  4. निर्णयन प्रबंधकीय निष्पादन के मूल्यांकन का आधार हैसंस्था को निरन्तर एवं सुचारु रूप से चलाने के लिए निर्णयन की आवश्यकता पड़ती है। निर्णय लेने में यदि देरी की जाती है तो संस्था का कारोबार बंद भी हो सकता है। इसके अलावा प्रबंधकों के द्वारा जो निर्णय लिये गये हैं उनके निर्णयों से यह जाना जा सकता है कि उन्हें समस्याओं का ज्ञान है या नहीं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि निर्णयन प्रबंधकीय निष्पादन के मूल्यांकन का आधार है।
  5. प्रबंधक की योग्यता का मापदण्ड एक प्रबंधक द्वारा लिये गये निर्णय उसकी योग्यता, कुशलता और चतुराई के मापदण्ड माने जाते हैं। एक सस्था अपने प्रबंधक की योग्यता, क्षमता एवं कुशलता का माप उसके द्वारा लिये गये निर्णय के आधार पर कर सकती है। यदि निर्णय सही बैठते हैं तो कहा जायेगा कि प्रबंधक योग्य एवं कुशल है। अच्छे निर्णय के लिये प्रबंधक को पुरस्कृत किया जा सकता है और बुरे निर्णय के लिये उसे दण्डित किया जा सकता है।
  6. निर्णय साध्य और साधन दोनों से संबंधित है। एक व्यवसाय में कुछ परिस्थितियों में निर्णय का संबंध साध्य से हो सकता है और कुछ परिस्थितियों का संबंध साधन से हो सकता है। इसके अलावा कुछ विषम परिस्थितियों में साध्य और साधन दोनों के बारे में निर्णय लिया जा सकता है।
  7. सार्वभौमिक एवं सर्वव्यापी क्षेत्र  निर्णयन का क्षेत्र सार्वभौमिक एवं सर्वव्यापी होता है। यह व्यवसाय तथा गैर व्यवसायिक सभी प्रकार के व्यवसायों में समान रूप से लागू होता है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमे निर्णयन के बगैर निर्णय लिया जा सके।
  8. व्यावसायिक नीतियों का निर्धारण व्यावसायिक नीतियों के निर्धारण में भी निर्णयन का विशेष महत्व है जब भी कोई व्यावसायिक नियम बनाये जाते है तो उसके लिए विस्तृत विवरण तैयार किये जाते है। इन विस्तृत विवरणों को तैयार करने के लिए निर्णयन की आवश्यकता पड़ती है।
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