नियंत्रण से आशय एक ऐसी प्रक्रिया से लगाया जाता है जिसमें यह देखा जाता है कि लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जो योजनाएँ बनायी गयी हैं, वह योजनाएँ कार्यान्वित हो रही है या नहीं और यह पता लगाने के लिए जाँच-पड़ताल भी की जाती है। यदि आवश्यकता महसूस हुई तो सुधार भी किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को नियंत्रण कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण से यह पता लगाया जाता है कि कार्यों का निष्पादन पूर्व निश्चित योजनाओ, निर्देशों, उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों के अनुरूप हो रहा है या नहीं हो रहा है और यदि नहीं हो रहा है तो क्यों नहीं हो रहा है? कौन इसके लिए उत्तरदायी है और इसके सुधारने के लिए क्या उपाय करने चाहिए।
इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी हैं. “नियंत्रण नियोजन का पक्ष एवं प्रतिरूप होता है। जहाँ नियोजन मार्ग निर्धारित करता है, ‘वहाँ नियंत्रण उस मार्ग से विचलन पर नजर रखता है तथा पूर्व निश्चित अथवा उचित रीति से परिवर्तित मार्ग पर वापस आने की क्रिया का शुभारम्भ करता है।”
मेरी कुशिंग नाइल्स अनियन्त्रण से आशय यह जाँच करने से है कि क्या प्रत्येक कार्य स्वीकृत योजनाओं, दिए गये निर्देशो तथा निर्धारित नियमों के अनुसार हो रहा है या नहीं। इसका उद्देश्य कार्य की दुर्बलताओं व त्रुटियों का पता लगाना है जिन्हें यथासमय सुधारा जा सके और भविष्य में उनकी पुनरावृत्ति रोकी जा सके।


नियंत्रण अर्थ परिभाषा
नियंत्रण एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है नियन्त्रण निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। इस संबंध में एक विद्वान के दिए गये विचार निम्नलिखित हैं-
जिस प्रकार एक जहाज चालक अपने संयंत्रों द्वारा निरन्तर यह देखता रहता है कि उसका जहाज ठीक दिशा में गन्तव्य स्थान की ओर चल रहा है। ठीक उसी प्रकार एक व्यावसायिक प्रबन्धक को भी अपने नियन्त्रण तंत्र द्वारा निरन्तर यह देखना चाहिए कि उसका उपक्रम अथवा विभाग सही दिशा की ओर चल रहा है।
नियन्त्रण का प्रबन्धकीय कार्य अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा किए गये कार्य का माप एवं उनमें आवश्यक सुधार करना होता है जिससे कि इस बात का निश्चय हो सके कि उपक्रम के उद्देश्यों तथा उनके प्राप्त करने के लिए निर्धारित योजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है या नहीं।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण एक ऐसी प्रक्रिया कूण्ट्ज एवं ओडोनेल है जिसके अन्तर्गत कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन देखा जाता है, उनकी क्रियाएँ देखी जाती है और यह भी देखा जाता है कि योजनाओं के अनुरूप कार्य हो रहा है या नहीं। यदि कोई अन्तर है तो उसके लिए अलग से कार्यवाही की जाती है ताकि संस्था की समस्त क्रियाएँ अनवरत रूप से चलती रहें।
नियंत्रण व्यवस्था की स्थापना के लिए उठाए जाने वाले कदम
किसी संस्था में प्रभावी नियन्त्रण व्यवस्था की स्थापना के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए-
- उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की स्पष्ट प्रभावी नियन्त्रण की स्थापना के लिए उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की स्पष्ट एवं पूर्ण व्याख्या की जानी चाहिए ताकि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कदम उठाये जा सकें।
- महत्वपूर्ण बिन्दुओं का निर्धारण प्रभावी नियन्त्रण की स्थापना के लिए दूसरा कदम यह है कि उन महत्वपूर्ण बिन्दुओं की खोज की जाय जिन पर यह किया जाना है। महत्वपूर्ण बिन्दुओं से आशय उन बिन्दुओं से लगाया जाता है, जहाँ पर गलती होने की सम्भावना होती है। इसलिए इन बिन्दुओं पर नियन्त्रण करना आवश्यक होता है।
- जाँच विधि की स्थापना – महत्वपूर्ण बिन्दुओं की स्थापना हो जाने के बाद जाँच करने के लिए वैज्ञानिक विधि इस्तेमाल की जानी चाहिए ताकि जाँच का कार्य नियमित रूप से अपने आप होता रहे।
- प्रमापों की स्थापना – जॉच विधि की स्थापना हो जाने के बाद प्रमापों की स्थापना की जाती है। प्रमाणो की स्थापना इसलिए की जाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि विचलन हुआ है या नहीं।
- संगठन योजना के कमजोर बिन्दुओं को सुदृढ़ किया जाना यह प्रभावी नियन्त्रण व्यवस्था का पाँचवा कदम है। इसमें संगठन के उन कमजोर बिन्दुओं को सुदृढ़ बनाया जाता है, जिनमें अधिक विचलन होता है ताकि विचलन को रोका जा सके।
- नियन्त्रण व्यवस्था संगठन रचना के अनुरूप होनी चाहिए यह व्यवस्था जो भी बनायी जाय वह संगठन संरचना के अनुरूप होनी चाहिए। किसी दूसरे संगठन की नियन्त्रण व्यवस्था को अपने संगठन में लागू नहीं किया जाना चाहिए। प्रो. ड्रकर ने इसे स्वयं नियन्त्रण के नाम से पुकारा है। हेंस और मेसी ने यह भी कहा है कि यह संगठन के अनुरूप होना चाहिए।
- वास्तविक निष्पादन का अभिलेख रखना प्रभावी नियन्त्रण की स्थापना के लिए निम्नलिखित प्रतिवेदनों को तैयार कर लेना चाहिए।
- विक्रय-विश्लेषण प्रतिवेदन
- विचलन प्रतिवेदन
- वास्तविक लागत प्रतिवेदन
- अन्तिम उत्पादन प्रतिवेदन
- सामग्री उपभोग प्रतिवेदन,
- श्रम-समय प्रतिवेदन आदि।
- नियन्त्रण व्यवस्था प्रबन्धकों के समझने योग्य होनी चाहिए नियन्त्रण व्यवस्था जो भी बनायी जाय वह ऐसी होनी चाहिए जो सभी कर्मचारियों की समझ में आ जाय इसे लागू करने में आसानी रहती है। यदि नियन्त्रण व्यवस्था कठिन है तो समझने में भी कठिन होगा और लागू करने में भी कठिन होगा।
- मितव्ययिता नियन्त्रण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें मितव्ययिता हो क्योंकि महंगी नियन्त्रण व्यवस्था को लम्बे समय तक लागू नहीं किया जा सकता है।”
- लोच नियन्त्रण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें पर्याप्त लोग हो ताकि आवश्यकता पड़ने पर परिवर्तन किया जा सके।
- सुधारात्मक कदम उठाये जाने की व्यवस्था एक अच्छी व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसमें ऐसे प्रावधान होने चाहिए जिनके अन्तर्गत सुधारात्मक कदम उठाये जा सके। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण व्यवस्था में सुधारात्मक कदम निहित होना चाहिए।
- समय नियन्त्रण का तत्व नियन्त्रण को प्रभावी बनाने के लिए समय का विशेष महत्व होता है क्योंकि यदि समय से सूचनाएँनही मिलती है और समय से कार्यवाही नही की जाती है तो लाभ की बजाय हानि होगी। नियन्त्रण को प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि समस्त आवश्यक सूचनाएँ उचित समय पर उचित मात्रा मे उचित व्यक्ति को उचित स्थान पर दी जानी चाहिए। इससे नियन्त्रण को भारी सहयोग मिलेगा।

नियंत्रण का महत्व
नियन्त्रण के महत्व का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-
- कुशलता में नियन्त्रण होने से कर्मचारी अपना निर्धारित काम निश्चित समय में पूरा कर लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
- समन्वय में सहायता नियन्त्रण से समन्वय में सहायता मिलती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समन्वय की सफलता, कुशलता नियन्त्रण पर निर्भर करती है। नियन्त्रण रहने से विभाग की क्रियाओं में गतिरोध पैदा नहीं होता है। और सभी कार्य योजना के अनुसार चलता रहता है।
- अभिप्रेरणा का साधन प्रभावी नियन्त्रण व्यवस्था से कर्मचारियों को संस्था के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा मिलती है। नियन्त्रण व्यवस्था से यह पता लगाना आसान हो जाता है कि कौन कर्मचारी कुशल हैं और कोन नहीं। इस प्रकार नियन्त्रण कुशल कर्मचारी को अच्छा और अधिक काम करने के लिए प्रेरित करता है और अच्छे मानवीय संबंध विकसित करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण अभिप्रेरणा का साधन है।
- भारार्पण प्रक्रिया में सहायक अधिकारों का मारार्पण करने के बाद यह पता लगाना आवश्यक हो जाता है कि अधिकारों एवं दायित्वों का निर्वाह हो रहा है या नहीं हो रहा है। नियन्त्रण क्रिया के द्वारा प्रबन्धक यह देख सकते,हैं कि संस्था के कर्मचारी अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक ढंग से कर रहे है अथवा नहीं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नियंत्रण भारार्पण प्रक्रिया में सहायक होता है।
- नियोजन तथा संगठनात्मक संरचना की परख में सहायक यदि पूर्व निश्चित उद्देश्यों और निर्धारित प्रमापों में विचलन होता है तो इससे यह आशय नहीं निकालना चाहिए कि मशीन सामग्री तथा कर्मचारियों में कमी है। यह भी हो सकता है कि निर्धारित प्रमाप ही गलत हो। नियन्त्रण के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि नियोजन तथा संगठन संरचना में दोषी कौन है।
- जोखिम से सुरक्षा नियंत्रण क्रिया से त्रुटियों एवं कमियों का यथासमय पता लग जाता है, जिन्हें दूर करने के लिए भरसक प्रयत्न किये जाते है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रभावी नियन्त्रण व्यवस्था से भावी जोखिमों से सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है।
- भविष्य के नियोजन में सहायता नियन्त्रण से संस्था को सभी महत्वपूर्ण सूचनाएँ मिल जाती हैं जिनके आधार पर भविष्य के लिए योजनाएँ बनायी जा सकती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नियन्त्रण भविष्य के नियोजन में सहायता करता है।
- अनुशासन की स्थापना नियन्त्रण से संस्था में अनुशासन स्थापित किया जा सकता है क्योंकि जहाँ नियन्त्रण का अभाव होता है, वहाँ कर्मचारियों का नैतिक साहस घट जाता है क्योंकि उन्हें यह नहीं पता होता है कि उनका भविष्य क्या है ? यदि कर्मचारियों पर पूर्ण रूप से नियन्त्रण रखा जाता है तो अनुशासन का वातावरण पैदा हो जाता है तथा बेईमानी, चोरी, भ्रष्टाचार के अवसर कम हो जाते हैं।
- विकेन्द्रीकरण में सहायक नियन्त्रण से प्रबन्धकों को अपनी जिम्मेदारी बॉटने में सहायता मिलती है। वह अपने कार्य क्षेत्रों को अधीनस्थों में बाँट देते हैं। यदि अधीनस्थ कुशलता से कार्य नहीं करते हैं तो उनकी जिम्मेदारी तय कर दी जाती है और सुधार के लिए भी कार्यवाही कर दी जाती है।
- अन्य लाभ
- नियन्त्रण कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाता है।
- नियन्त्रण नेतृत्व को सफल बनाता है।
- नियन्त्रण चोरी, भ्रष्टाचार को रोककर प्रहरी का काम करता है।
- नियन्त्रण निर्णयन में सहायता प्रदान करता है।
- परिवर्तित परिस्थितियों में नियन्त्रण महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- नियन्त्रण व्यवस्था से लागतों में कमी आती है।

नियंत्रण के क्षेत्र
नियन्त्रण के निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्र हैं-
- समग्र नियन्त्रण व्यापक नियंत्रण रखने के लिए उपक्रम की गतिविधियों पर बजटरी नियन्त्रण पद्धति का प्रयोग किया जाता है। उपक्रम के लिए एक विस्तृत योजना समग्र नियन्त्रण के लिए बनाई जाती है जिसमे सभी उपविभागों के लिए उप-योजनाएं बनायी जाती है।
- लागत पर नियन्त्रण व्यवसायों को उत्पादन लागत में निमन्त्रण रखना आवश्यक होता है क्योंकि जितनी अधिक उत्पादन लागत होगी लाभ कम प्राप्त होगा। उपक्रम मे लागत पर नियंत्रण रखने के लिए पहले उत्पादन प्रमाण निर्धारित करते हैं और फिर इन प्रमाणों की वास्तविक लागतों से तुलना की जाती है और फिर विवरणों का अनुमान लगाया जाता है तथा प्रतिकूल विवरणों पर रोक लगाने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाते हैं।
- पूँजी व्ययों पर नियन्त्रण उपक्रम में पूँजीगत व्ययों पर नियन्त्रण रखने के लिए एक समिति की स्थापना करते हैं जो पूँजी बजट बनाने और उपक्रम के पूँजीगत व्ययों पर नियन्त्रण रखने के लिए उत्तरदायी होती है। अतः उपक्रम के पूँजीगत व्ययो पर नियन्त्रण रखना बहुत ही आवश्यक होता है।
- नीतियों पर नियन्त्रण नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा उपक्रम की नीतियों पर नियन्त्रण रखा जाता है क्योंकि किसी भी उपक्रम की सफलता या असफलता उसकी नीतियों पर निर्भर करती है।
- कर्मचारियों पर नियन्त्रण कर्मचारियों पर नियन्त्रण इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि कर्मचारियों के ऊपर ही प्रत्येक उपक्रम की सफलता निर्भर करती है। अगर उपक्रम में लगे कर्मचारीगण निश्चित नीतियों और निर्देशन के अनुसार कार्य नहीं करते हैं तो उपक्रम अपने निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं कर सकता है। इसलिए कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखना आवश्यक होता है। अतः नियन्त्रण रखने का कार्य सेविवर्गीय प्रबन्ध के द्वारा किया जाता है।
- सामग्री पर नियन्त्रण सामग्री की किरम, भण्डार गृह, परिवहन पर नियन्त्रण व सामग्री का निर्गमन आदि क्रियाओं को उपक्रम में सामग्री पर नियन्त्रण रखने के लिए की जाती है।
- शोध एवं विकास पर नियन्त्रण उपक्रम में शोधकर्ताओं का चयन सावधानी से शोध कार्य एवं विकास पर नियन्त्रण रखने के लिए किया जाना चाहिए। उपक्रम पृथक बजट शोध एवं विकास करने के लिए बनाये जाते हैं तथा प्रत्येक शोध योजना का विश्लेषण एवं मूल्यांकन भी किया जाता हैं।
- संगठन पर नियन्त्रण उपक्रम में संगठन पर नियन्त्रण रखने के लिए संगठन चार्ट अथवा संगठन पुस्तिका को रखा जाता है। जिसमें संगठन संरचना का विस्तृत उल्लेख होता है।
- मजदूरी व वेतन पर नियन्त्रण मजदूरी व वेतन पर नियन्त्रण रखने के लिए उपक्रम में कार्य मूल्यांकन पद्धति का प्रयोग किया जाता है अतः इसी पद्धति के आधार पर मजदूरों के विभिन्न पदों के लिए विभिन्न वेतन दरें निर्धारित की जाती है।
- उत्पादन पर नियन्त्रण उत्पादन पर नियन्त्रण रखने में उत्पादन की मांग को पूरा करने के लिए विपणि की आवश्यकताओ उपक्रम में के अनुरूप प्रयास किये जाते हैं। उपक्रम में उत्पादन नियन्त्रण के अन्तर्गत वस्तु की किरम पर नियन्त्रण रखने का कार्य आता है।
- श्रम शक्ति पर नियन्त्रण जन शक्ति पर नियन्त्रण रखना किसी भी उपक्रम के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है।
नियंत्रण में कठिनाइयाँ
यद्यपि नियंत्रण आवश्यक है परन्तु बाह्य परिस्थितियों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। संक्षेप में, नियंत्रण की कुछ सीमाएँ होती है जिन्हें अग्रवत् वर्णित किया जा सकता है-
- बाह्य परिस्थितियों नियंत्रित नहीं की जा सकती नियंत्रण एक आन्तरिक प्रणाली होती है तथा यह बाह्य परिस्थितियों को नियंत्रित नहीं कर सकती। बाह्य घटक जैसे सरकारी नीति, तकनीकी परिवर्तन, फैशन आदि बाह्य घटक होते हैं। यह कहा जा सकता है कि किसी व्यवसाय में कुछ ऐसे बाहा कारण आ जाते हैं जिन पर संगठन नियंत्रण नहीं कर पाता। इससे उसे असफल होना पड़ जाता है।
- प्रमापों के निर्धारण में कठिनाई प्रमापों को नियंत्रण का आधार माना जाता है परन्तु उचित प्रमापों को निर्धारित करना अत्यन्त कठिन होता है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव तय करने होते है। प्रत्यक्ष प्रभावों में मनोबल, लगन आदि आते हैं। ये प्रभाव कर्मचारियों से सम्बन्धित होते है तथा इन्हें तय करना कठिन होता है। इसे नियंत्रण की सीमा में नहीं रखा जाता।
- उत्तरदायित्व निर्धारण में कठिनाई जब कोई एक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा किया जाता है तो कोई गड़बड़ी होने पर किसी को भी उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। नियंत्रण व्यवस्था सामूहिक कार्यों के निष्पादन की स्थिति में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनता का अनुभव करती है। कभी- कभी व्यक्तिगत उत्तरदायित्व तय हो जाने के बावजूद भी समय पर सुधारात्मक कार्यवाही कर पाना सम्भव नहीं हो पाता।
- अपव्ययी नियंत्रण प्रणाली में बहुत से व्यय करने पड़ते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के कार्य का मापन किया जाता है तथा इसका प्रतिवेदन किया जाता है। इसमें बड़ी मात्रा में व्यय होते हैं।
- समय लगना कभी-कभी कार्य की प्रकृति एवं तकनीक के कारण नियंत्रण में अधिक समय लग जाता है।
- कर्मचारियों द्वारा विरोध नियंत्रण का विरोध अधीनस्थों द्वारा किया जाता है क्योंकि इसमें व्यक्तियों के कार्यों में हस्तक्षेप किया जाता है तथा अधीनस्थों पर कार्यभार बढ़ता है। नियंत्रण प्रक्रिया विचलनों हेतु उत्तरदायी कारकों की पहचान करती है परन्तु वर्तमान समय में यह कठिन है। सभी विचलनों हेतु सुधारात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती।