निदानात्मक परीक्षण के 12 उद्देश्य 9 विशेषताएँ

निदानात्मक परीक्षण उपलब्धि परीक्षण का ही एक रूप है, जिसके अन्तर्गत विशिष्ट विषय-वस्तु अथवा अधिगम अनुभव के अर्जित ज्ञान की विशिष्टताओं एवं कमियों का मूल्यांकन किया जाता है। शिक्षार्थी किसी विषय को समझने में क्या कठिनाई अनुभव कर रहा है ? इस कठिनाई का क्या कारण हो सकता है ? इसे कैसे दूर किया जा सकता है ? आदि प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए शिक्षक को निदान की आवश्यकता पड़ती है।

विज्ञान में निदान का आशय यह है कि शिक्षार्थी कौन-से प्रत्ययों, सिद्धान्तों, सूत्रों एवं नियमों आदि को समझने में कठिनाई अनुभव करता है ? इस कमजोरी व कठिनाई का क्या कारण है ? शिक्षार्थियों का शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक दृष्टि से समान रूप से विकास नहीं हो पा रहा है अथवा विकास असाधारण है। ऐसी स्थितियों में शिक्षार्थियों की विषय में अरुचि होना स्वाभाविक है अतः इनका निदान कर अरुचि के कारणों का पता लगाते हैं।

बचाव निदान का उच्चतम स्तर है।

रॉस के अनुसार

सैद्धान्तिक मूल्य अध्यापक पर अधिक निर्भर करता है, जो उसे प्रयोग करता है।

रॉस के अनुसार
विज्ञान अर्थ परिभाषा प्रकृति क्षेत्र व 10 उपयोगशिक्षण प्रतिमान विकासात्मक वैज्ञानिक पूछताछ शिक्षण प्रतिमानआगमनात्मक विधि परिभाषा 5 गुण व 4 दोष
निगमनात्मक विधि परिभाषा 7 गुण व 5 दोषविज्ञान शिक्षण व विज्ञान शिक्षण की विधियांपरियोजना विधि अर्थ सिद्धांत विशेषताएं 7 गुण व 8 दोष
ह्यूरिस्टिक विधि के चरण 6 गुण व Top 5 दोषप्रयोगशाला विधि परिभाषा उपयोगिता गुण व दोषपाठ्यपुस्तक विधि परिभाषा गुण व Top 4 दोष
टोली शिक्षण अर्थ विशेषताएं उद्देश्य लाभअभिक्रमित शिक्षण की 5 विशेषताएं 6 लाभ 6 दोषइकाई योजना विशेषताएं महत्व – 7 Top Qualities of unit plan
मूल्यांकन तथा मापन में अंतरविज्ञान मेला Science Fair 6 Objectivesविज्ञान का इतिहास व भारतीय विज्ञान की 11 उपलब्धियाँ
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य Top 12 Objective7 प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और उनके योगदानविज्ञान शिक्षक की 13 विशेषताएँ
विज्ञान पाठ्य पुस्तक क्षेत्र आवश्यकता 10 विशेषताएँ व सीमाएँविज्ञान क्लब के 8 उद्देश्य क्रियाएँ व विज्ञान क्लब के संगठनविज्ञान क्लब के 8 उद्देश्य क्रियाएँ व विज्ञान क्लब के संगठन
निबन्धात्मक परीक्षा के 12 गुण दोष सीमाएँ व सुझावनिदानात्मक परीक्षण के 12 उद्देश्य 9 विशेषताएँउपलब्धि परीक्षण के 10 उपयोग 10 विशेषताएँ व 3 सीमाएँ
शैक्षिक निदान का अर्थ विशेषताएँ व शैक्षिक निदान की प्रक्रियापदार्थ की संरचना व पदार्थ की 3 अवस्थाएँ

निदानात्मक परीक्षण के उद्देश्य

निदानात्मक परीक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना ।
  2. शिक्षक को अपनी शिक्षण प्रक्रिया में समुचित सुधार हेतु परामर्श देना।
  3. शिक्षार्थियों की विषय सम्बन्धित हीनताओं, कमियों एवं कठिनाइयों की जानकारी प्राप्त करना।
  4. शिक्षार्थियों एवं अभिभावकों को उचित निर्देश प्रदान करना।
  5. शिक्षण विधियों में समुचित सुधार करना।
  6. पाठ्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन कर उपयोगी बनाना।
  7. मूल्यांकन प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली एवं सार्थक बनाने में सहायता करना।
  8. उपलब्धि परीक्षण हेतु उचित आधार तैयार करना।
  9. निष्पत्ति परीक्षा के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के चयन में सहायता प्रदान करना।
  10. उपचारात्मक परीक्षण को आधार प्रदान करना।
  11. शिक्षार्थियों की सूक्ष्मतम कमजोरियों को ज्ञात करना।
  12. शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के प्रभाव को कम करना।

निदानात्मक परीक्षण

निदानात्मक परीक्षण की विशेषताएँ

निदानात्मक परीक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. निदानात्मक परीक्षण विशिष्ट उद्देश्यों के अनुरूप होते हैं।
  2. नैदानिक परीक्षण पाठ्यक्रम का मुख्य अंग होते हैं।
  3. नैदानिक परीक्षणों द्वारा शिक्षार्थियों की विषय सम्बन्धी कमजोरियों का निदान करके उनके उपचार की व्यवस्था की जाती है।
  4. ये परीक्षण विश्लेषणात्मक होते हैं तथा किसी भी प्रक्रिया के अंशों का पूर्णरूप से विश्लेषण करते हैं।
  5. इन परीक्षणों की समय सीमा निर्धारित नहीं होती है।
  6. इन परीक्षणों के माध्यम से यह देखा जाता है कि शिक्षार्थी किस कठिनाई वाले स्तर के प्रश्नों को हल कर सकता है।
  7. ये परीक्षण शिक्षार्थियों की प्रगति का वस्तुनिष्ठ रूप से परीक्षण करते हैं।
  8. इन परीक्षणों का आधार ऐसे तथ्य या मानक होते हैं, जिन्हें प्रयोगों के आधार पर स्थापित किया जाता है।
  9. ये परीक्षण शिक्षार्थी के मानसिक प्रक्रिया के स्वरूप को स्पष्ट कर देते हैं।

निदानात्मक परीक्षण का निर्माण

निदानात्मक परीक्षण में व्यक्तिगत कमजोरियों तथा सामूहिक कमजोरियों को ज्ञात किया जाता है। अतः शिक्षार्थियों की सभी कठिनाइयों को ध्यान में रखकर कुछ उप-विषय (प्रकरण) चुन लिये जायें और उनके अंक प्राप्त करने के स्थान पर उनके द्वारा की गयी त्रुटियों, उनके उपकरण व सम्बन्ध खोजे जाये तथा उसका उपचार किया जाए। निदानात्मक परीक्षण का निर्माण करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाये-

  1. निदानात्मक परीक्षण के उद्देश्यों का स्पष्ट रूप से निर्धारण करना।
  2. पाठ्य-वस्तु का विश्लेषण कर शिक्षण बिन्दुओं का निर्धारण करना।
  3. प्रत्येक शिक्षण विन्दु के आधार पर संक्षिप्त उत्तर वाले सरल प्रश्नों (3 अथवा 5 अथवा 7) का निर्माण करना।
  4. प्रश्नों को सीखने के क्रम के अनुसार सरल से कठिन के क्रम में एक ही समूह में लिखना ।
  5. प्रश्न-पत्र का सुसंयोजन।
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