द्वितीयक समूह वे हैं, जिनमें प्राथमिक समूह की विशेषताएं नहीं पाई जातीं। ये समूह प्राथमिक समूहों की तुलना में कहीं अधिक बड़े होते हैं और इनके सदस्य एक-दूसरे से सैकड़ों मील दूर रहकर भी अपने बीच सम्बन्धों को बनाए रख सकते हैं। फलस्वरूप द्वितीयक समूह के सदस्यों के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्धों का होना आवश्यक नहीं होता, बल्कि साधारणतया उनके सम्बन्ध डाक, तार, टेलीफोन और संचार के विभिन्न तरीकों के द्वारा स्थापित होते हैं।
द्वितीयक समूह
द्वितीयक समूह के सदस्यों में घनिष्ठता का अभाव होने के कारण उनका कार्य क्षेत्र इतना विस्तृत होता है कि एक-दूसरे से प्रत्यक्ष सम्पर्क न रखते हुए भी सभी सदस्य अपने हितों को पूरा करते रहते हैं। उदाहरण के लिए, वर्तमान समाज में श्रमिक संघ, राजनीतिक दल, व्यापारिक संगठन और विभिन्न सामाजिक वर्ग द्वितीयक समूहों के उदाहरण हैं। आधुनिक शिक्षण संस्थाएं भी द्वितीयक समूह के उदाहरण हैं, जहां एक-दूसरे से काफी दूर रहते हुए भी विद्यार्थी पत्राचार पाठ्यक्रम के द्वारा अपने हितों को पूरा कर सकते हैं।
कूले ने द्वितीयक समूहों को परिभाषित करते हुए कहा है कि “यह वे समूह हैं, जिनमें घनिष्ठता और प्राथमिक विशेषताओं का पूर्ण अभाव है।” लगभग इसी प्रकार ऑगबर्न और निमकॉफ के अनुसार, “द्वितीयक समूह वे समूह हैं, जिनमें घनिष्ठता की कमी का अनुभव होता है।” इसका तात्पर्य यह है कि द्वितीयक समूह आकस्मिक रूप से बनते हैं तथा इनके सदस्यों में औपचारिकता तथा दिखावटी सम्बन्धों की प्रधानता होती है। इनकी स्थापना कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जान-बूझकर की जाती है।




इन समूहों में व्यक्तियों के हित जब तक पूरे होते रहते हैं, वे इसके सदस्य रहते हैं और हितों के पूरा न होने पर वे इसकी सदस्यता छोड़ देते हैं। इस प्रकार, द्वितीयक समूह औपचारिक (formal) और बहुत कम स्थायी होते हैं। ऐसे समूहों में एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के आदेशों का पालन इसलिए नहीं करता कि वह आयु अथवा नातेदारी में बड़ा है, बल्कि इसलिए करता है, क्योंकि वह बहुत धनवान, शक्तिसम्पन्न अथवा ऊंचे पद पर आसीन होता है। द्वितीयक समूहों की इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए लैण्डिस ने इन्हें ‘शीत जगत’ (cold world) नाम से सम्बोधित किया है।
इन समूहों के सदस्य ऊपर से अपने को बहुत नम्र, दयालु, मृदुभाषी और सेवक दिखाने का प्रयत्न करते हैं, जबकि अन्दर वे किसी भी व्यक्ति के हित को चोट पहुंचाकर अपने हितों को पूरा करने में संकोच नहीं करते। वर्तमान समय में इन्हीं विशेषताओं में लगातार वृद्धि होते रहने के कारण आधुनिक समाज को कुछ विद्वानों ने ‘द्वितीयक समाज’ भी कह दिया है।
द्वितीयक समूह की विशेषताएं
उपर्युक्त कथन के आधार पर द्वितीयक समूहों की अनेक विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता
- इन समूहों का निर्माण जान-बूझकर किया जाता है, जिससे व्यक्ति अपने को पूरा कर सके। कुछ विशेष हितों
- द्वितीयक समूहों का आकार बहुत बड़ा होने के कारण उनकी सदस्य संख्या लाखों तक में हो सकती है।
- इन समूहों के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक नहीं होता। एक-दूसरे से बहुत दूर रहकर भी वे इन समूहों के सदस्य बने रह सकते हैं।
- ये समूह कम स्थायी होते हैं, क्योंकि एक विशेष स्वार्थ के पूरा हो जाने अथवा न होने की स्थिति में सदस्य इनकी सदस्यता को कभी भी छोड़ सकते हैं।
- इनमे सभी सदस्यों का पारस्परिक उत्तरदायित्व बहुत सीमित होता है। ये दूसरे सदस्यों से उतना सम्बन्ध रखते हैं, जितना उनके हितों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है।
- सामान्यतः इन समूहों में सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध अप्रत्यक्ष होते हैं तथा इनकी स्थापना में संचार के साधनों, जैसे—टेलीफोन, रेडियो, प्रेस तथा समाचार-पत्रों आदि का विशेष महत्व होता है।
- द्वितीयक समूहों की आकृति परिवर्तनीय होती है। इन समूहों का निर्माण व्यक्तियों की आवश्यकता के अनुसार होता है। इस कारण व्यक्तियों की आवश्यकताओं में परिवर्तन होने के साथ ही इन समूहों के रूप में भी परिवर्तन हो जाता है।
समाजशास्त्र : एक परिचय | 1. समाजशास्त्र 2. समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य 3. समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति 4. मानविकी उन्मेष 5. समाजशास्त्रीय अन्तर्दृष्टि |
समाजशास्त्र व समाजिक विज्ञान में सम्बंध | 1. समाजशास्त्र एवं समाजिक विज्ञान 2. समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान में संबंध 3. समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में संबंध 4. समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में संबंध 5. समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र में संबंध 6. समाजशास्त्र तथा इतिहास में संबंध |
सामाजिक समूह | 1. सामाजिक समूह 2. सामाजिक समूह की विशेषताएं 3. प्राथमिक समूह 4. द्वितीयक समूह |
समुदाय एवं समिति | 1. समुदाय 2. समिति 3. समुदाय तथा समिति में अन्तर |
समाज तथा इसके प्रकार | 1. समाज 2. समाज के प्रकार |
सामाजिक संस्था | 1. संस्था 2. परिवार 3. शिक्षा अर्थ परिभाषा प्रकृति विशेषताएं 4. राज्य अर्थ परिभाषा 5. धर्म परिभाषा लक्षण |
संस्कृति तथा सभ्यता | 1. संस्कृति 2. सभ्यता तथा संस्कृति में 5 अंतर व सम्बंध |
बहुलवाद, बहुल-संस्कृतिवाद तथा सांस्कृतिक सापेक्षवाद | 1. बहुलवाद क्या है? भारतीय समाज में बहुलवाद 2. भारतीय सामाजिक व्यवस्था के 5 आधार |