दूरस्थ शिक्षा लक्षण – प्राचीन काल से ही हमारे देश में दूरस्थ शिक्षा की व्यवस्था रही है। समय के साथ-साथ इसका भी स्वरूप बदलता रहा है। वर्तमान में यह पद्धति अत्यधिक विकसित हो चुकी है। काल में जहां ऋषि मुनि ज्ञान देने के लिए गांव गांव जाते थे या अपनी कुटिया में रहकर ज्ञान देते थे वही आधुनिक समय में विद्यार्थी पत्राचार के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते हैं।

दूरस्थ शिक्षा लक्षण
दूरस्थ शिक्षा का प्रसार निम्नलिखित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। दूरस्थ शिक्षा लक्षण निम्न हैं –
- विद्यार्थियों के घरों तक ज्ञान पहुंचाना – हमारे देश में दूरस्थ शिक्षा केंद्रों की स्थापना उन प्रतिभाशाली विद्वानों की इच्छा का प्रतीक है कि उनका ज्ञान, प्रकाश विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की सीमाओं को पार करके उन व्यक्तियों तक पहुंच जाए जो उच्च शिक्षा की अभिलाषा रखते हैं।
- सतत् शिक्षा – शिक्षा एक जीवन परयंत चलने वाली प्रक्रिया है। यह मृत्यु तक चलती रहती है अर्थात व्यक्ति की शिक्षा कभी खत्म नहीं होती है। वह हर क्षण कुछ ना कुछ सीखता रहता है। दूरस्थ शिक्षा का लक्ष्य यह भी है कि वह व्यक्ति सतत् शिक्षा में योगदान देती है।
- साधारण व्यक्तियों के ज्ञानवर्धन में सहायक – दूरस्थ शिक्षा का एक लक्ष्य साधारण व्यक्तियों को ज्ञान वर्धन में सहायता प्रदान करना है। ताकि वे संसार के उपयोगी नागरिक बनकर देश का ही नहीं वरन् दुनिया के उत्थान में सफल योगदान दे सकें।
- शिक्षा के श्रेष्ठ कार्यक्रम को पूरा करना – शिक्षा के श्रेष्ठ कार्यक्रम को पूरा करने में योगदान देती है क्योंकि यह शिक्षा विद्यार्थियों को केवल ज्ञान प्रदान ही नहीं करती अपितु उसे प्रेरित भी करती है।
- शिक्षा को विद्यालय के दायरे से बाहर निकालना – दूरस्थ शिक्षा को विद्यार्थियों के पास बिना विद्यालय के ले जाती है। शिक्षा को विद्यालय के दायरे से बाहर निकालने का अर्थ यही है कि शिक्षा ग्रहण करने में विद्यार्थी के लिए विद्यालय अनिवार्य न रहे।

अतः यह कहा जा सकता है दूरस्थ शिक्षा प्रणाली का एकमात्र उद्देश्य शिक्षा और विश्व की आर्थिक क्रियाओं के बीच दीवारों को तोड़ना है।