दूरस्थ शिक्षा से तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है जिनके माध्यम से उन दूरदराज के लोगों को शिक्षित किया जाना है। जो किन्ही कारणों से औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह गए थे। ऐसे शिक्षा के अंतर्गत शिक्षार्थी को किसी विद्यालय, महाविद्यालय विश्वविद्यालय में दाखिला लेना नहीं पड़ता, अपितु वे अपने निवास स्थान पर रहते हुए ही पत्राचार, टेप रिकॉर्डर, आकाशवाणी, दूरदर्शन और वीडियो कैसेट की सहायता से शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस शिक्षण विधि में अध्यापक तथा विद्यार्थियों को आमने सामने आने की जरूरत नहीं पड़ती है। विद्यार्थी अपनी सभी समस्याओं का हल ऊपर विवेक चित स्थानों से स्वत: ही कर लेता है।
दूरस्थ शिक्षा
प्राचीन काल से ही हमारे देश में दूरस्थ शिक्षा की व्यवस्था रही है। समय के साथ-साथ इसका भी स्वरूप बदलता रहा है। वर्तमान में यह पद्धति अत्यधिक विकसित हो चुकी है। प्राचीन काल में जहा ऋषि मुनि ज्ञान देने के लिए गांव गांव जाते थे या अपनी कुटिया में रहकर ज्ञान देते थे। वही आधुनिक समय में विद्यार्थी पत्राचार के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते हैं।

आज भारत में जिस दूरस्थ शिक्षा का प्रसार हो रहा है, वास्तव में उसकी शुरुआत बर्लिन जर्मनी में 1856 में हुई थी। चार्ल्स डार्विन स्नेह पत्राचार द्वारा भाषा शिक्षण शुरू किया। 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में विश्व कासीन विश्वविद्यालय द्वारा पत्राचार के माध्यम से एक उच्च शिक्षा की योजना को कार्यान्वित किया गया। परंतु रूस संसार का पहला देश है, जहां सरकार द्वारा पत्राचार व्यवस्था को राष्ट्रीय स्तर पर मंजूरी दी। रूस में जबकि शिक्षा को सफलता मिली तो दुनिया के दूसरे देशों ने भी इसे अपना लिया।
यदि भारत में दूरस्थ शिक्षा की शुरुआत देखें तो पाएंगे कि यहां सर्वप्रथम विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में इसकी शुरुआत हुई थी। सन 1962 में दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्राचार पाठ्यक्रम कोर्स आरंभ हुआ। धीरे-धीरे हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मैसूर तथा मेरठ विश्वविद्यालयों ने पत्राचार पाठ्यक्रम प्रारंभ किए। अब तो देश के कई राज्यों में माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था भी पत्राचार द्वारा की जाने लगी है।

परंतु यह बात हमें स्पष्ट रूप से जान लेनी चाहिए कि दूरस्थ शिक्षा औपचारिक शिक्षा का विकल्प नहीं है। दूरस्थ शिक्षा की व्यवस्था विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं और औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने में असमर्थ है। यही कारण था कि 1986 में भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह घोषणा की गई कि दूरस्थ शिक्षा पर भविष्य में पूरा पूरा ध्यान दिया जाएगा।
पत्राचार शिक्षण विधि ऐसी विधि है जिसमें अध्यापक ऐसे विद्यार्थियों को ज्ञान और कौशल प्रदान करने का दायित्व संभालता है, जो मौलिक रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं करते। बल्कि ऐसे समय तथा स्थान पर शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं जो उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुरूप हो
एफ रीव एर्डोस
दूरस्थ शिक्षा शैक्षणिक तकनीकी के लिए बनाई गई काउंसिल के अनुसार खुले रूप से सीखने का एक प्रकार है और खुले रूप से सीखने की प्रणालियों की व्याख्या इन रूपों में की जाती है। जो विद्यार्थियों को उनकी पसंद के कार्यक्रमों को जहां और जब चाहे और अपनी परिस्थितियों के अनुकूल गति पर पढ़ने के लिए लचकदार एवं स्वतंत्र तरीके भेंट करती हैं।
डेविड बट्स
इन परिस्थितियों के आधार पर कहा जा सकता है कि दूरस्थ शिक्षा परंपरागत शिक्षा से सर्वथा भिन्न है। इसमें अध्यापक एवं विद्यार्थी अलग-अलग समय पर सक्रिय होते हैं। जिसका परिणाम सुखद होता है, क्योंकि इसमें दोनों अध्यापक एवं विद्यार्थी लाभान्वित होते हैं।

दूरस्थ शिक्षा के गुण
दूरस्थ शिक्षा के गुण निम्न है-
- यह बहुत लचीली प्रणाली है जो कि समय तथा स्थान के बंधनों से दूर है।
- दूरस्थ शिक्षा प्राइमरी से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा तक कहीं पर भी प्रयुक्त हो सकती है।
- यह नियमित विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए संपर्क का कार्य कर सकता है।
- इस विधि में एक विद्यार्थी अपनी गति से पढ़ता है।
- अनियमित औपचारिक शिक्षा की विधि की अपेक्षा कम खर्च की शिक्षण विधि है। इसकी पढ़ाई पर वह उस समय से कम आता है जो कि नियमित औपचारिक शिक्षा विधि में करना पड़ता है। यह दोनों विधियों के अध्ययन से पता लगा है।
- सीखने वाला बहुत से निपुण वक्ताओं के लक्षणों का लाभ उठा सकता है जो कि दूसरी परंपरागत संस्थाओं में संभव नहीं है।
- इसी परिपाटी का सबसे उत्तम भाग लिया है कि यह डाक सेवा द्वारा किसी भी दूरदराज के क्षेत्र तक पहुंचाया जा सकता है यदि टेलीविजन द्वारा संभव न हो।
- यह बहुत से शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है जो पारस्परिक पढ़ाई को किन्ही कारणों से छोड़ दिया है अथवा जो नौकरी करते हैं तथा कहीं जाने के लिए उनके पास समय नहीं है।