त्रिभाषा सूत्र – मुदालियर आयोग ने भाषा के संबंध में जो द्विभाषा सूत्र का सुझाव दिया था। जिसमें अंग्रेजी भाषा की उपेक्षा की गई थीी। जिसका अंग्रेजी समर्थकों ने विरोध किया था और 15 वर्षों तक अंग्रेजी भाषा चलती रहने की बात को लेकर हिंदी समर्थकों ने अंग्रेजी का विरोध किया। इन परिस्थितियों में भाषा संबंधी विवाद को अंतिम रूप से सुलझाने के लिए सन् 1956 में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद ने त्रिभाषा सूत्र को प्रस्तुत किया।
त्रिभाषा सूत्र
त्रिभाषा सूत्र की प्रमुख बातें निम्न थीं-
- प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा हो।
- अंग्रेजी या अन्य कोई आधुनिक यूरोपीय भाषा।
- हिंदी तथा अन्य कोई आधुनिक भारतीय भाषा।
इस भाषा सूत्र के अनुसार, बालक को तीन भाषाएं पढ़नी पड़ेगी जिसके कारण इसको त्रिभाषा सूत्र कहा गया।


त्रिभाषा सूत्र के दोष
त्रिभाषा सूत्र में अनेक गुण होने के बावजूद आशातीत सफलता न मिल सकी, उल्टे संसद के अंदर तथा बाहर वाद विवाद और विरोध होने लगा। इसका मुख्य कारण यह था कि हिंदी भाषा क्षेत्रों में अन्य किसी भारतीय भाषा की व्यवस्था के स्थान पर संस्कृत के पढ़ने की ही व्यवस्था की गई थी और हिंदी भाषी प्रदेशों नें इस भाषा सूत्र का विरोध किया क्योंकि उनको हिंदी पढ़नी अनिवार्य थी।
1961 में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में इस भाषा सूत्र का एक सरल रूप स्वीकार किया गया जिसके कारण शैक्षिक कम सामाजिक तथा राजनीतिक अधिक था। इतने सरल त्रिभाषा सूत्र द्वारा हिंदी भाषी राज्य का छात्र अपनी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा के अलावा राष्ट्रभाषा और अंग्रेजी भाषा अर्थात मातृभाषा राष्ट्रभाषा तथा अंतरराष्ट्रीय भाषा का अध्ययन कर सकेगा। इस नए सरल त्रिभाषा सूत्र में कुछ दोष थे-
- माध्यमिक स्तर पर बालक का पाठ्यक्रम अत्यंत बोझिल बन गया था क्योंकि उसे अनिवार्य एवं वैकल्पिक विषयों के अलावा तीन भाषाएं और भी पढ़नी पड़ेगी।
- नए त्रिभाषा सूत्र के अंतर्गत छात्र विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं को वैकल्पिक विषय के रूप में स्वीकार करे तो विद्यालय के लिए विभिन्न भाषाओं के अध्ययन कराने की व्यवस्था करना संभव न हो सकेगा।
- यदि सभी भाषाओं के पठन-पाठन की योजना तैयार की जाए तो बहुत बड़ी संख्या में प्रशिक्षित अध्यापकों की उपलब्धता एक समस्या बनेगी।
- त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन में धन तथा समय की अत्यधिक आवश्यकता पड़ेगी जो कि व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था।


कोठारी आयोग की संशोधित त्रिभाषा सूत्र
कोठारी आयोग ने शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न सुझावों के साथ साथ त्रिभाषा सूत्र को संशोधित करके पुनः प्रस्तुत किया। जिसमें कुछ परिवर्तन करने का सुझाव दिया। इस परिवर्तन के अनुसार हिंदी को राज्य भाषा के रूप में मान्यता दी जाए, साथ ही इस बात को भी स्पष्ट कर दिया किसी असहमत राज्यों पर इसे रोका न जाए। भाषा अध्ययन के संबंध में आयोग ने निम्न सुझाव प्रस्तुत किए-
- प्राथमिक स्तर पर केवल मातृभाषा का अध्ययन कराया जाए।
- उच्च प्राथमिक स्तर पर दो भाषाएं मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा तथा केंद्र की सरकारी भाषा का अध्ययन कराया जाए।
- माध्यमिक स्तर पर छात्र त्रिभाषा सूत्र के अनुसार 3 भाषाओं का अध्ययन करें जिसे मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा तथा केंद्र की सरकारी भाषा हिंदी तथा अंग्रेजी।
- उच्चतर माध्यमिक स्तर पर छात्र केवल दो भाषाओं का अध्ययन करें। इसमें एक आधुनिक भारतीय भाषा तथा दूसरी कोई विदेशी भाषा या शास्त्रीय भाषा।
- विश्वविद्यालय स्तर पर किसी भी भाषा का अध्ययन अनिवार्य न हो।
संक्षेप में कोठारी आयोग द्वारा प्रस्तावित त्रिभाषा सूत्र का प्रारूप निम्नवत् था-
- मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा।
- संघीय भाषा।
- एक आधुनिक भारतीय भाषा तथा विदेशी भाषा जो माध्यम के रूप में चुनी गई हो।
त्रिभाषा सूत्र का मूल्यांकन
त्रिभाषा सूत्र तथा संशोधित त्रिभाषा सूत्र का मूल उद्देश्य यह है कि मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा का अध्ययन प्राथमिक से माध्यमिक स्तर पर सभी विद्यार्थी निश्चित रूप से करें। संघीय भाषा का अध्ययन पूरे देश में किया जाना चाहिए यह राष्ट्रीय तथा भावात्मक एकता के लिए अनिवार्य है। संघीय भाषा के रूप में हिंदी तथा सह संघीय भाषा अंग्रेजी जोकि सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में प्रचलित है।
दूसरी भाषा का अध्ययन दो दृष्टिकोण से आवश्यक है। एक शैक्षिक दृष्टिकोण से तथा दूसरा राष्ट्रीय स्तर के दृष्टिकोण से।
शैक्षिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो आधुनिक युग वैज्ञानिक एवं तकनीकी का युग है। जिसमें नवीनतम ज्ञान को प्राप्त किए बिना युग के साथ-साथ नहीं चला जा सकता। ज्ञान-विज्ञान तथा तकनीकि की दृष्टि से विश्व में कई देश संबंध है जो कि हमसे अग्रणी भी है। इन देशों के संपर्क में आने के लिए उनकी भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। अतः विभिन्न विदेशी भाषाओं की शिक्षा की जानकारी के लिए त्रिभाषा सूत्र का ज्ञान होना आवश्यक है।
राष्ट्रीय दृष्टिकोण की बात की जाए तो यह किसी भी राष्ट्र की सर्वोच्च प्राथमिकता मानी जाती है। आज भारत को राष्ट्रीय एकीकरण की जरूरत है। भारत एक विभिन्न संस्कृति से युक्त राष्ट्र है जिसमें अनेक जातियां, संप्रदाय, वर्ग, धर्म, पहनावा, रीति रिवाज भाषा तथा भौगोलिक स्थिति के लोग निवास करते हैं। ऐसे में सभी को एक सूत्र में पिरोना अत्यंत सूझबूझ का काम है।
इसके लिए उनको एक ऐसे माध्यम की आवश्यकता है इसके लिए अपने विचारों को एक दूसरे को समझा सके एवं समझ सकें। इसके लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है जो कि सामान्य हो जो राष्ट्र गौरव तथा अस्मितता की पहचान हो। भारत राष्ट्र भाषा हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दिलाना ही हम सबका कर्तव्य है।