तक्षशिला विश्वविद्यालय वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिडी शहर से 35 कि•मी• उत्तर की ओर स्थित था। तक्षशिला नगर तत्कालीन राज्य की राजधानी था। वैदिक काल में यह वैदिककालीन शिक्षा का मुख्य केंद्र था। बाद में यह बौद्धकालीन शिक्षा के मुख्य केंद्र के रूप में विकसित हुआ।
तक्षशिला विश्वविद्यालय
यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय के बड़े-बड़े शिक्षण कक्ष सभा भवन, विशाल पुस्तकालय, शिक्षक निवास भवन, छात्रावास तथा भोजनालय आदि का निर्माण एवं संचालन प्रारंभ हुआ। इस विश्वविद्यालय का प्रमुख शिक्षक कुलपति होता था। जिसकी अध्यक्षता में प्रमुख समितियों का गठन किया जाता था जो विश्वविद्यालय के विभिन्न कार्यों के संपादन एवं देख-रेख के लिए उत्तरदाई होते थे।

तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश की न्यूनतम आयु 16 वर्ष थी, प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा होती थी। केवल सफल छात्रों को ही प्रवेश दिया जाता था। प्रवेश के समय प्रत्येक छात्र को तत्कालीन 1000 मुद्राएं शुल्क के रूप में देनी पड़ती थी जो एक साथ सारी मुद्राएं नहीं दे सकते थे। वह सुविधानुसार दे सकते थे। जो शुल्क नहीं दे सकते थे, वह विश्वविद्यालय में सेवा कार्य करके शिक्षा प्राप्त करते थे।
प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार कौटिल्य, जीवक, चन्द्रगुप्त, पाणिनी, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। इसी विश्वविद्यालय में वैदिक एवं बौद्ध धर्म की शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत, पालि भाषा, वैदिक बौद्ध साहित्य, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष, अर्थशास्त्र की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था थी। शिक्षा पूरी होने पर छात्रों की परीक्षा होती थी तथा सफल छात्रों को प्रमाण पत्र दिए जाते थे।
यह संसार का सबसे पहला विश्वविद्यालय था जिसे यूनेस्को ने इसे अंतरराष्ट्रीय धरोहर माना है। पांचवी सदी में बर्बर हूणों ने इसे नष्ट कर दिया।