जैव विविधता ह्रास के कारण – वर्तमान समय में जैव-विविधता का विलोपन बहुत तीव्रता से हो रहा है। इसके लिए प्राकृतिक – तथा मानवीय दोनों कारक उत्तरदायी हैं। प्राकृतिक कारक जैसे जलवायु परिवर्तन, ज्वालामुखी विस्फोट, भूकम्प, भू-स्खलन, अतिवृष्टि, शीतलहरी, हिमावरण, हिमद्रवण, मृदा अपरदन, आँधी-तूफान आदि के कारण जीव-जातियों का क्षरण हो रहा है।
जैव विविधता
जैव विविधता में पौधों तथा जंतुओं की विभिन्न प्रजातियां सम्मिलित होती हैं, जो किसी पारिस्थितिकी तंत्र में पारस्परिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप निवास करती है। जैव विविधता में पौधों तथा जंतुओं की विभिन्न प्रजातियां सम्मिलित होती हैं। जैव विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वाल्टर जी• रोसेन नामक जीव विज्ञानी ने किया। उनके अनुसार “पादपों, जंतुओं तथा सूक्ष्म जीवों की विविधता तथा भिन्नता जैव विविधता कहलाती है।”
जीव जंतुओं में मिलने वाली भिन्नता, विषमता तथा पारिस्थितिकी जटिलता को जैव विविधता कहा जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार
जैव विविधता ह्रास के कारण
नगरीकरण, औद्योगिकीकरण, कृषि का आधुनिकीकरण, सड़क निर्माण, वन विनाश, खनिज संसाधनों का उत्कर्षण आदि अनेक मानवीय क्रियायें हैं जिनसे जीवों एवं वनस्पतियों का तीव्रगति से क्षरण हो रहा है। निम्नांकित महत्वपूर्ण कारण हैं, जिनके द्वारा जैव विविधता ह्रास हो रहा है-
- आवास विनाश
- आवास खण्डन
- आवास निम्नीकरण तथा प्रदूषण
- विदेशी जाति का प्रवेश
- रोग
- अतिशोषण
- जैविक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
- प्राकृतिक प्रकोप
- जलवायु परिवर्तन
- उन्नतशील प्रजातियों का प्रचलन
- अनेक फसलें
1. आवास विनाश
जैव विविधता ह्रास सबसे अधिक मानव जनसंख्या की बढ़ती दर तथा मानवीय क्रिया-कलापों के द्वारा हो रही है, क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए नये-नये आवास बनाने के लिए वनों तथा प्राकृतिक स्थलों का विनाश किया जा रहा है। जिससे वहाँ पर रहने वाले जीव जन्तुओं पर संकट आ जाता है। जैव समुदाय का सर्वाधिक विनाश पिछले 150 वर्षों के अन्दर हुआ है। अधिकतर कशेरुकी जीवों के विलोपन के लिए मुख्य खतरा आवास विनाश ही है। कई देशों जहाँ पर मानव की जनसंख्या का घनत्व ज्यादा है वहाँ पर सबसे अधिक प्राकृतिक आवासों का नष्टीकरण किया गया है।
IUCN तथा UNEP के डाटा के अनुसार उष्ण कटिबन्धीय एशिया में लगभग 65 प्रतिशत वन्य जीवन आवास विलुप्त हो गया है। एशियाई देशों जैसे- भारत बांग्लादेश, श्रीलंका, हांगकांग तथा वियतनाम में विनाश की दरें सबसे अधिक हैं। आवास की बड़ी मात्रा प्रतिवर्ष विलुप्त हो रही है क्योंकि विश्व के वनों का विनाश हो रहा है। वर्षा चन, उष्ण कटिबन्धीय शुष्क वन, आर्द्र भूमियाँ, मैन्यूव और घास भूमि खतरनाक आवास हैं तथा इनमें मेरुस्थलीकरण (destrification) बढ़ रही है।

2. आवास खण्डन
आवास खण्डन वह प्रक्रिया है जिसमें आवास के बड़े क्षेत्रों के क्षेत्रफल कम हो गये हैं तथा दो या अधिक खण्डों में बैंट गये हैं। जब कोई आवास खण्डित होता है तो वहाँ प्रायः आवास खण्ड का छोटा भाग बचा रह जाता है। बड़े-बड़े आवासीय क्षेत्रों में सड़क, नाले, कस्बों, खेतों, पावर लाइनों आदि के निर्माण हो जाने के कारण वे अब छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित हो गये है। आप जैव विविधता ह्रास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
आवास खण्ड प्राकृतिक आवास से दो रूपों में भिन्नता रखते हैं (i) खण्डों में आवास के क्षेत्र के लिए बड़ी मात्रा अच्छी स्थिति में होती है (ii) प्रत्येक आवास खण्ड का केन्द्र सिरा के पास होता है। आवास खण्डन जाति के विभव को प्रकीर्णन या परिक्षेपण (dispersal) तथा उपनिवेशन (colonisation) के लिए सीमित कर सकता है। आवास खण्डन प्राणियों के चरने की क्षमता कम करता है। आवास खण्डन का प्रभाव जाति पर ठीक उसी प्रकार पड़ता है जैसे प्रकाश, ताप, वायु तथा जलवायु में परिवर्तन का।
3. आवास निम्नीकरण तथा प्रदूषण
आवास निम्नीकरण का सबसे प्रमुख कारण पर्यावरणीय प्रदूषण है जो कि पीडकनाशी (Pesticides), औद्योगिक अपशिष्ट तथा रसायन, कल-कारखानों तथा मोटर गाड़ियों (automobiles) से निकलने वाले धुएँ तथा अपरक्षित पहाड़ी किनारे (croded hill sides) से अवसाद निक्षेप आदि से उत्पन्न होते हैं। (जैव विविधता ह्रास)
ये कारक समुदाय में मुख्य जाति को नहीं प्रभावित करते हैं परन्तु अन्य जातियाँ आवास निम्नीकरण से अत्यधिक प्रभावित होती हैं। जैसे वन आवास में भौतिक कारकों (जैसे अनियंत्रित धरातलीय अग्नि) से बड़े वृक्षों को कम प्रभावित कर पाते हैं परन्तु इस आपदा से छोटे जीव तथा वन पृष्ठ पर समृद्ध बारहमासी वन्य पादप समूह आदि सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।

4. विदेशी जाति का प्रवेश
विदेशी जाति का किसी देशज समुदाय में प्रवेश मुख्यतः तीन कारकों पर निर्भर करता है यूरोपियाई उपनिवेशन, उद्यान, कृषि तथा कृषि एवं आकस्मिक अभिगमन, अधिकांशतः सभी विदेशी जातियाँ नई जगहों पर अपना जीवन व्यतीत करने में अक्षम होती है, परन्तु कुछ जातियाँ उस दशा में अपने आपको स्थापित करने की सक्षमता उत्पन्न कर लेती हैं। इस प्रकार की सक्षम जातियाँ देशज जातियों को अपने भोजन के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर देती हैं। ये विदेशी जातियों देशज जातियों को इतना प्रभावित कर देती हैं कि वह विलोपन की स्थिति तक पहुँच जाती हैं तथा उन परिस्थितियों में जीवित रहने में अक्षम होती हैं। विदेशी जातियों का प्रभाव द्वीपों पर ज्यादा देखने को मिलता है।
5. रोग
यदि उन जीवों को (सूक्ष्म जीव) जो रोग उत्पन्न करते हैं उन्हें नये आवासीय या प्राकृत क्षेत्र में लाया जाता है तो वे महामारी उत्पन्न कर सकते हैं, जिसके कारण देशज जाति विलुप्त हो जाती हैं। मानव के क्रियाकलाप भी वन्य जातियों में रोगों को बढ़ावा देते हैं। जब इन वन्य जीवों को सीमित दायरे में रखा जाता है तो वे अत्यधिक रोगग्रस्त हो जाते हैं या अधिक रोगग्रस्त होने की आशंका रहती है जिसके फलस्वरूप जीवों की विलुप्ति हो सकती है। जैव विविधता ह्रास

6. अतिशोषण
आज जिस गति से मानव जनसंख्या बढ़ रही हैउसी गति से वह प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन भी कर रहा है। इस दोहन से वह अपने उपयोग में आनेवाली वस्तुओं का प्रयोग करता है। आज पूरे विश्व में प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की दर में लगातारवृद्धि हो रही है। आज अधिकतम लाभ पाने के लिए पैदावार की कटाई के लिए नये-नये तरीके रूपान्तरितकर लिये गये है। जोकि जैव विविधता ह्रास का मुख्य कारण है।
प्राकृतिक सम्पदाओं का अतिशोषण पूर्व अवशोषित या किसी स्थानीय जाति के द्वारा तभीहोता है जब उसकी व्यवसायिक बाजार में भागीदारी अधिक होती है। उदाहरण में व्यापार। आजसंसार में संकटग्रस्त जातियों का लगभग एक-तिहाई हिस्सा तथा इनके साथ-साथ अन्य जातियाँ भी खतरेमें पड़ गई हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण गांवों में गरीबी बढ़ रही है। पैदावार की नई-नई योग्यतमविधियों और आर्थिक व्यवस्था का भूमण्डलीकरण मिलकर जातियों के विलोपन की दर को बढ़ा रहे हैं।
7. जैविक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
औद्योगीकरण, जनसंख्या वृद्धि आदि के कारण मनुष्य जैविक संसाधनों का अत्यधिक व अन्धाधुन्ध प्रयोग कर रहा है। पेड़-पौधों तथा जीवों पर आधारितअनेक उद्योगों को विकसित किया गया है। इससे जैव विविधता के क्षरण में तीव्रता आयी है। जंगलों मेंपाये जाने वाले महत्वपूर्ण वृक्षों जैसे देवदार, सागौन, चीड, सॉल, साखू, गर्जन, चन्दन आदि कीअन्धाधुन्ध कटाई करने के कारण इन वृक्षों का विलोपन तेजी से हो रहा है तथा इनका क्षेत्र सीमित होता जा रहा है।
हाथी, शेर, चीता, बाघ, बारहसिंघा आदि पशुओं एवं अनेक सुन्दर पक्षियों का शिकार मानवविभिन्न उपयोगों तथा शान-बान के लिए कर रहा है जिसके कारण ये पशु-पक्षी तीव्रता से विलुप्त हो रहे हैं। कुछ के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया है। समुद्रों, तालाबों, नदियों आदि से मत्स्य का दोहन अधिकहो रहा है। उत्पादन से अधिक इनका निष्कर्षण किया जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप इनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है। जोकि जैव विविधता ह्रास का मुख्य कारण है।

8. प्राकृतिक प्रकोप
ज्वालामुखी उद्गार, भूकम्प, भू-स्खलन, बाढ़, सूखा, आँधी-तूफान,जलवायविक घटनायें आदि हैं जिनसे जैव विविधता का क्षरण हो रहा है। कुछ प्राकृतिक घटनाये अकस्मात्होती हैं जिनसे तत्काल जीव-जन्तु तथा पेड़-पौधों का विनाश हो जाता है। आप जैव विविधता ह्रास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
9. जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया आदि समय से ही संचालित है। जलवायुमें अनेक बार परिवर्तन हो चुके हैं जिसका प्रभाव स्थलाकृतियों, वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं पर पड़ा है।एक विशेष प्रकार की जलवायु में विशेष प्रकार के जीव-जन्तुओं का विकास होता है। अनेक स्थान परविकसित वनस्पतियाँ और जीव-जन्तु जलवायु परिवर्तन से नष्ट हो गये। कुछ स्थानों पर नवीन वनस्पतियों,एवं जीव-जन्तुओं का उद्भव हुआ।
औद्योगीकरण, नगरीकरण, कृषि का विज्ञानीकरण आदि मानवीयक्रियाओं के तीव्रता से बढ़ने के कारण ग्रीन हाउस प्रभाव भी बढ़ रहा है। भू-तल के तापमान में निरन्तरवृद्धि हो रही है जिसके कारण जैव-विविधता का क्षरण हो रहा है। ताप वृद्धि का प्रभाव जीवों की प्रजनन एवं उत्पादन क्षमता पर पड़ रहा है। घड़ियाल में लिंग निर्धारण तापमान के कारण होता है। ताप वृद्धि इसमें व्यवधान उक्पन्न हो जायेगा। स्थानीय जैव-विविधता की मौलिकता समाप्त हो जायेगी। तापमान की वृद्धि तथा समुद्र तल के उत्थान से तटीय तथा स्थलीय जैव-विविधता प्रभावित होगी।
वर्तमान में जिस गति से ताप में वृद्धि हो रही है उससे अंटार्कटिका महाद्वीप की बर्फ भी पिघल रही है। जिससे हिन्द महासागर तथा अन्य महासागरों का जल स्तर ऊँचा हो जायेगा तथा समुद्र तट जलमग्न हो जायेगा जिसके कारण अनेक जीवों का विनाश हो जायेगा। वनस्पतियाँ नष्ट हो जायेगी। तटीय जैव-विविधता का क्षरण होगा।

10. उन्नतशील प्रजातियों का प्रचलन
वैज्ञानिक प्रगति के कारण पेड़-पौधों, फसलों, अनेकजन्तुओं आदि को उन्नतशील जातियों का आविष्कार कर लिया गया है। जिससे प्राचीन परम्परागत-वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं का लोप हो रहा है। आप जैव विविधता ह्रास Hindibag पर पढ़ रहे हैं।
11. अनेक फसलें
गेहूँ, चावल, ज्वार- बाजरा, मक्का, सब्जी, फल, दलहन, तिलहन, जानवर – गाय-बैल,भेड़-बकरी, सुअर, बहुमूल्य पक्षियों जिनका पालन परम्परागत रूप से किया जाता था उनका विगत वर्षों सेक्षरण हो रहा है। उन्नतशील जातियों के आगमन से प्राचीन जातियाँ विलुप्त होती जा रही हैं।जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखकर किसान अब अधिक उपज वाली फसलों का उत्पादन करते हैं।

देशी गायों एवं मुर्गियों के स्थान पर अधिक दूध देने वाली गायों एवं अधिक अण्डे देने वाली मुर्गियों का उत्पादन किया जा रहा है। वास्तव में परम्परागत उत्पादित फसलों एव पालित पशुओं की गुणवत्ता अधिक थी, परन्तु उपज की मात्रा कम थी जिस कारण बहुमूल्य देशी एवं उपयोगी प्रजातियों की कीमत पर अधिक उपज वाली फसलों का उत्पादन किया जाने लगा है। इसका सीधा सम्बन्ध जैव-विविधता पर पड़ रहा है।