जनसंख्या के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा मानव में उसके अस्तित्वकाल से ही रही है। जनांकिकी का अस्तित्व मानव समाज के प्रारम्भ से ही रहा है भले ही उसे विशिष्ट विज्ञान के रूप में डनांकिकी का स्वरूप प्राप्त न रहा हो। वर्तमान समय में विश्व के सभी राष्ट्र मानव संसाधनों के विकास पर ध्यान दे रहे हैं तथा देश में विद्यमान मानव के संख्यात्मक तथा गुणात्मक पहलू को जानने की जिज्ञासा रखते हैं। इसीलिए जनाकिकी अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों आदि के लिए अध्ययन की व्यापक विषय-वस्तु बन चुका है।
जनांकिकी
“Demography’ शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Demo” जिसका अर्थ है जनता तथा ‘Graphy’ जिसका अर्थ है ‘लिखना’ से मिलकर बना है। जनांकिकी (Demography) शब्द का आशय जनता के विषय में लिखना है। इस शब्द को सर्वप्रथम प्रयोग करने का श्रेय फांसीसी लेखक आशिले मुइलार्ड (Achille Guillard) को प्राप्त है। इन्होंने सन् 1855 में इस शब्द का प्रयोग किया था। आशिले गुइलाई के विचार में जनांकिकी एक ऐसा विज्ञान है जो मनुष्यों की संख्या के सम्बन्ध में अध्ययन करता है।”



प्राचीनकाल में जनसंख्या सम्बन्धी समंक किसी उद्देश्य हेतु एकत्र किये जाते थे तथा के जनगणना तक ही सीमित होते थे, परन्तु वर्तमान समय में जनसंख्या का तथ्यात्मक सांख्यिकीय एवं गणितीय विश्लेषण किया जाता है तथा इस अध्ययन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को एक विषय की भाँति जनांकिकी की संज्ञा प्रदान की गयी है।
जनांकिकी का अर्थ
सामान्य शब्दों में कहा जा सकता है कि जनांकिकी का तात्पर्य ज्ञान की उस शाखा से है जिसके द्वारा जनसंख्या के आकार, परिवर्तन तथा जनसंख्या सम्बन्धी विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। डेविस का कथन है कि जनांकिकी एक ऐसा विज्ञान है जिसका सम्बन्ध सांख्यिकीय गणना से होने के कारण इसे अक्सर बहुत नीरस प्रकृति का समझा जाता है। इसके बाद भी जनसंख्यात्मक विशेषताओं तथा सामाजिक कारकों के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण जनांकिकी एक महत्वपूर्ण विज्ञान है। कुछ प्रमुख परिभाषाओं के द्वारा जनांकिकी की प्रकृति को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है:
जनांकिकी वह विज्ञान है जो किसी समाज की जनसंख्या के आकार, घनत्व तथा इसकी वृद्धि अथवा हास में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों को स्पष्ट करता है।
सॉरोकिन
जनांकिकी मानव जनसंख्या का वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसमें मुख्यतः जनसंख्या के आकार, उसकी संरचना तथा विकास का विश्लेषण किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ
जनांकिकी की परिभाषाएं
जनांकिकी की परिभाषाओं में एकत्व का अभाव देखने को मिलता है। विभिन्न अर्थशास्त्रियों समाजशास्त्रियों तथा शिक्षाविदों ने इसकी विषय वस्तु वैज्ञानिकता, उपादेयता आदि को आधार मानकर जनांकिकी को परिभाषित किया है। सामान्य रूप से जनांकिकी की परिभाषाओं का अध्ययन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है-
संकुचित दृष्टिकोण वाली परिभाषाएं
वान मेयर जी के अनुसार, “जनांकिकी, जनसंख्या की स्थिति एवं गतिशीलता का साख्यिकीय विश्लेषण है. जिसके अन्तर्गत जनगणना एवं जैवकीय घटनाओं का पंजीयन किया जाता है तथा इस प्रकार जनगणना एवं पंजीकरण से प्राप्त मूल समको के आधार पर जनसंख्या की दशा एवं गतिशीलता का सांख्यिकीय विश्लेषण किया जा सकता है।”
जनांकिकी सामूहिक रूप से मानव जनसंख्या की वृद्धि, विकास तथा गतिशीलता से संबंधित अध्ययन है।
बेन्जागिन बी के अनुसार
जनांकिकी जनसंख्या की सामान्य गति और भौतिक, सामाजिक तथा बौद्धिक दशाओं का गणितीय ज्ञान है।’ लिवासियर के अनुसार, “जनांकिकी सामान्यतः जनसंख्या का वह विज्ञान है जो प्रमुख रूप से जन्मों, विवाहों, मृत्युओं तथा जनसंख्या के प्रवासों की गति को निश्चित करने के साथ ही साथ उन नियमो की खोज करने का भी प्रयत्न करता है जो इन गतियों का नियमन करते हैं।
आशिले गुइलार्ड के अनुसार
जनांकिकी वह विज्ञान है जो मानव पीढ़ी, उसकी वृद्धि हास मृत्यु का साख्यिकीय पद्धति से अध्ययन करता है।
हिपिल जी. सी. के अनुसार
जनांकिकी वह विज्ञान है जिसमें मानव जनसंख्या के अध्ययन में सांख्यिकीय पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है तथा यह मुख्य रूप से जनसंख्या के आकार वृद्धि अथवा ह्रास, जीवित व्यक्तियों की संख्या तथा अनुपात, किसी क्षेत्र विशेष में जन्मे तथा मृत ऐसे फलनों की माप जैसे उर्वरता, मृत्यु तथा विवाह दरों से सम्बन्धित है।
पी. आर. कॉक्स के अनुसार
व्यापक दृष्टिकोण वाली परिभाषाएं
जनांकिकी जनसंख्या के आकार, क्षेत्रीय वितरण, संरचना एवं उनमें परिवर्तन और इन परिवर्तनों के घटक, जोकि जन्म, मृत्यु, क्षेत्रीय गमन (प्रवास) एवं सामाजिक गतिशीलता (स्तर में परिवर्तन) के रूप में जाने जाते हैं, का अध्ययन करता है।
जनसंख्या के आकिक चित्रण को कभी-कभी जनांकिकी के रूप में जाना जाता है तथा इसमें कुछ विशेष प्रकार के समंकों के द्वारा निरूपित व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।
डब्ल्यू. जी बर्कले
जनाकिकी पाँच प्रकार की जनांकिकीय प्रक्रियाओं प्रजननशीलता, मृत्युक्रम, विवाह, प्रवास तथा सामाजिक गतिशीलता (सामाजिक स्तर अथवा दशा में परिवर्तन) का परिमाणात्मक अध्ययन है।
प्रो. डोनाल्ड जे. बोग
जनांकिकी के क्षेत्र को वर्तमान स्तर के वर्णन तथा कालान्तर में जनसंख्या के आकार, संरचना तथा वितरण में हो रहे परिवर्तन तथा इन घटनाओं के वैज्ञानिक स्पष्टीकरण के विकास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
प्रो. बोग
जनांकिकी वह विज्ञान है जो जनसंख्या की संरचना तथा आवागमन का अध्ययन करता है।
विक्टर पेट्रोव के अनुसार




जनांकिकी की विशेषताएं
जब हम भारत की सामाजिक जनांकिकी से सम्बन्धित प्रमुख लक्षणों का अध्ययन करते हैं तो इनसे अनेक ऐसी विशेषताएं स्पष्ट होती है जो संसार के बहुत से देशों से काफी भिन्न है। इन विशेषताओं को संक्षेप में निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है-
- भारत में स्वतन्त्रता के बाद जन्म दर और मृत्यु दर दोनों में कमी होने के बाद भी हमारी जनसंख्या का आकार बहुत तेजी से बढ़ा है। इस समय भारत से अधिक जनसंख्या केवल चीन में है, लेकिन चीन में परिवार नियोजन की नीति बहुत कड़ाई से लागू होने के कारण जनसंख्या की वृद्धि रुक गई है। दूसरी ओर भारत में अभी भी प्रत्येक वर्ष लगभग 1.80 करोड़ जनसंख्या बढ़ जाती है।
- भारतीय जनसंख्या में विभिन्न धर्मों और रामादायों से सम्बन्धित लोगों का समावेश है। यहां इस्लाम को मानने वाले लोगों की संख्या लगभग 15 करोड़ है। मुसलमान यह मानते हैं कि परिवार नियोजन के साधनों का उपयोग करना उनके धर्म के विरुद्ध है। अनेक जनजातियों के लोग भी परिवार नियोजन में विश्वास नहीं करते।
- भारत में आज भी लगभग 72 प्रतिशत लोग गांवों में निवास करते हैं। गांवों में साक्षरता की कमी होने के साथ ही संयुक्त परिवारों का प्रचलन अधिक है। इसके फलस्वरूप बढ़ती हुई जनसंख्या के प्रति ग्रामीणों में कोई जागरुकता नहीं है। जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने समय-समय पर अनेक कार्यक्रम और नीतियां बनायी हैं लेकिन कोई भी ऐसा कानून नहीं है जिसके द्वारा सभी लोगों को परिवार का आकार सीमित रखने के लिए बाध्य किया जा सके।
- भारत में जीवन अवधि तुलनात्मक रूप से कम होने के कारण जनसंख्या में अनुभवी लोगों की काफी कमी है। पहले दी गई तालिका से स्पष्ट होता है कि यहां केवल 8.21 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनकी आयु 60 वर्ष से अधिक है।
- पिछले कुछ वर्षों से एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ है कि हमारे समाज की जनसंख्या में 15 से 59 वर्ष तक की आयु के लोगों की संख्या बढ़ी है। इस आयु वर्ग को हम कार्यशील जनसंख्या मानते हैं। इसी का परिणाम है कि भारत में कुल उत्पादन के साथ आर्थिक विकास की दर में काफी वृद्धि सम्भव हो सकी है।
- स्वतन्त्रता के बाद साक्षरता की दर दोगुने से अधिक हो जाने के बाद भी भारतीय समाज के परम्परागत सामाजिक ढांचे में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुए। शायद इसका मुख्य कारण नगरीय जनसंख्या की तुलना में ग्रामीण जनसंख्या कहीं अधिक होना है।
- जनसंख्या में शिशु मृत्यु-दर आज भी काफी अधिक है। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों का अनुपात कम होने और उन्हें स्वास्थ्य की कम सुविधाएं मिलने के कारण सामाजिक संरचना में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों की स्थिति आज भी कमजोर है।
- स्वतन्त्रता के वाद जनसंख्या में स्थान परिवर्तन करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। इसी दशा को हम प्रवास अथवा स्थानीय गतिशीलता कहते हैं। स्थान परिवर्तन की प्रवृत्ति बढ़ने के फलस्वरूप ही ग्रामीण जनसंख्या में कमी हो रही है, जबकि नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।
- विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व एक-दूसरे से बहुत भिन्न होने के कारण यहां की राजनीतिक व्यवस्था पर उन क्षेत्रों का प्रभाव अधिक हैं जहां जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इसका तात्पर्य है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में जनसंख्या का घनत्व भी किसी प्रदेश को कम या अधिक प्रभावशाली बनाता है।
- भारतीय समाज की सामाजिक जनांकिकी की एक मुख्य विशेषता इसमें विभिन्न धर्मों, भाषाओं सम्प्रदायों, क्षेत्रों और सांस्कृतिक परम्पराओं वाले लोगों का समावेश होना है। जनसंख्या की इसी विशेषता के कारण भारतीय समाज को हम एक ‘बहुजन समाज’ कहते हैं।
जनसंख्या की इन सभी विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि एक ओर भारत में हम जनसंख्या – विस्फोट की दशा से गुजर रहे हैं से दूसरी ओर जनसंख्या के गुणों में होने वाले परिवर्तनों के कारण ही हमारी सामाजिक और आर्थिक संरचना में भी स्पष्ट परिवर्तन होने लगे हैं। आज जनसंख्या सम्बन्धी विशेषताओं के आधार पर ही हम अपने समाज में प्रति व्यक्ति कम कृषि भूमि, निम्न जीवन स्तर निर्धनता, बेरोजगारी, आवास, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं के कारणों को समझ सकते हैं।