वर्तमान युग में जनसंचार के माध्यमों का बड़ा ही शैक्षिक महत्व है। जनसंचार के माध्यमों के महत्व को आधुनिक युग में सभी के द्वारा स्वीकार किया जा रहा है। जनसंचार के माध्यम शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों के अन्तर्गत आते हैं। जनसंचार हेतु आंग्ल भाषा में ‘Mass Media’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। सामान्य रूप में ‘जनसंचार माध्यम’ का अभिप्राय है ऐसे अभिकरण जिनके प्रयोग से विभिन्न प्रकार की सूचनायें दूर-दूर तक लोगों के पास पहुँचाने का प्रयास करना।
जनसंचार के इन साधनों में रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र पत्रिकायें इत्यादि आते हैं। जब इन साधनों का प्रयोग शिक्षा के लिये किया जाये तब ये शिक्षा के साधन अथवा अभिकरण कहलाते हैं। इन अनौपचारिक अभिकरणों के प्रयोग द्वारा शिक्षा से जुड़े विभिन्न उद्देश्यों या शैक्षिक कार्यों को पूर्ण करने का प्रयास किया जाता है। उदाहरणस्वरूप, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में ‘सबके लिए शिक्षा’ पहुँचाने के कार्य को इन अभिकरणों की सहायता से पूर्ण किया जाता है। जनसंचार के अभिकरणों के द्वारा कम समय में अधिक व्यक्तियों को शिक्षा तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है। यह शिक्षा का बहुत ही प्रभावी साधन है।
जनसंचार की परिभाषा
मनुष्यों के मध्य विचारों के आदान-प्रदान का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि मानवीय सम्बन्ध संचार पर आधारित होते हैं। परस्पर मानवीय समूहों में एक-दूसरे पर प्रभाव डालने हेतु भी संचार के माध्यमों का प्रयोग करते हैं। संचार को और अधिक स्पष्ट करने हेतु कुछ परिभाषायें दृष्टव्य है-
संचार सूचना, आदर्शों एवं अभिवृत्तियों का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने की कला है।
सूमरी
संचार सूचना व्यक्त अथवा अव्यक्त रूप से सूचनाओं का प्रेषण एवं स्वीकरण है।
डॉ. गोकुलचन्द्र पाण्डेय



जनसंचार की आवश्यकता तथा महत्त्व
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः विचारों का आदान-प्रदान वह प्रारम्भ से ही करता आया. है। जनसंचार के माध्यमों का वर्तमान में महत्व अत्यधिक हो गया है। इसके महत्व तथा आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत देखा जा सकता है-
- जनसंचार के माध्यमों का महत्व इसलिए भी अत्यधिक है कि इनके माध्यम से एक ही समय में विशाल जनसमूह को शिक्षित किया जा सकता है।
- व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने में जनसंचार के माध्यमों का महत्व अत्यधिक है। रेडियो में किसानों के लिए कार्यक्रम इत्यादि का प्रसारण कर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जाती है।
- जनसंचार के साधन जनसमूह को नवीन सूचनायें प्रदान करने के साथ-साथ मनोरंजन भी करते हैं। इस कथन का समर्थन करते हुए एडवर्ड विल्सेन ने कहा है- “अधिकतर नवयुवक लोग वास्तव में अधिकतर अध्यापक भी अवश्यमेव कुछ समय किसी प्रकार के समूह साधनों के साथ लगायेंगे और कुछ चुनाव करने पर इन समूह साधनों में कुछ चीजें ऐसी मिलती हैं जो समसामयिक, सजीव और मनोरंजनकारी होती हैं।”
- संविधान की धारा 4-5 के राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करना जनसंचार के माध्यमों द्वारा।
- सामाजिक दृष्टि से जनसामान्य में जागरूकता उत्पन्न करना।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पाठ्यवस्तु अथवा सूचनाओं को सरल, सुबोध बनाना।
- सूचनाओं को शीघ्रता से दूर-दूर तक पहुँचाना।
- दिन-प्रतिदिन की देश-विदेश की घटनाओं से जनसामान्य को अवगत कराकर उन्हें देश-विदेश से जोड़े रखना।
- देश के विभिन्न भागों की संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों के प्रदर्शन द्वारा जनसामान्य को अपने देश की संस्कृति से अवगत कराना। ]
- शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए औपचारिक शिक्षा से सम्बद्ध कठिन संकल्प वाले पाठों को सर्वसुलभ बनाना ।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुसार, “आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी से यह सम्भव हो गया है कि पहले की दशाब्दियों में शिक्षा को जिन अवस्थाओं और क्रमों से गुजरना पड़ता था, उनमें से कइयों को लाँघकर आगे बढ़ा जाये। इस टेक्नोलॉजी से देश और काल के बन्धनों पर काबू पाना सम्भव हो गया है।शैक्षिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग उपयोगी जानकारी के लिए, शिक्षकों के प्रशिक्षण और पुनः प्रशिक्षण के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए और कला और संस्कृति के प्रति जागरूकता और स्थायी मूल्यों के संस्कार उत्पन्न करने के लिए किया जायेगा। औपचारिक और औपचारिकेतर ‘दोनों प्रकार की शिक्षा में इसका प्रयोग होगा।” इस प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का ज्ञान प्राप्त करने हेतु अपनी योग्यताओं और क्षमताओं के उपयोग हेतु जनसंचार के साधन आवश्यक हैं।
- जनसंचार के साधनों द्वारा मानवीय सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं जिससे मनुष्य सम्पूर्ण विश्व की प्रगति में सहायता करने में सक्षम होते हैं।



जनसंचार के साधनों का वर्गीकरण
जनसंचार के साधनों को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, मुद्रित साधन तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया।
- मुद्रित साधन- समाचार पत्रों, पैम्फलेट इत्यादि के माध्यम से आज व्यक्ति अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, उन्हें जन-जन तक पहुँचाते हैं। ये जनसंचार के साधन ही मुद्रित तथा लिखित साधन कहलाते हैं। भारत में इस प्रकार के साधनों का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में हो रहा है। 31 मार्च सन् 2009 तक भारत में कुल 73146 समाचार पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो चुका था। समाचार पत्र आवधिक अंग्रेजी तथा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित 21 भाषाओं में प्रकाशित हुए। क्षेत्रीय भाषाओं तथा कुल विदेशी भाषाओं सहित 127 अन्य भाषाओं में भी समाचार-पत्रों तथा आवधिकों का प्रकाशन हुआ। इनकी कुल प्रसार संख्या 2008-09 में 25 करोड़ 79 लाख 53 हजार 373 प्रतियाँ प्रति दिवस थीं। किसी भारतीय भाषा में सर्वाधिक समाचार-पत्र-पत्रिकायें आवधिक हिन्दी (29094 ) के हैं। तत्पश्चात् अंग्रेजी का स्थान है।
मुद्रित साधनों में खासतौर पर समाचार-पत्रों, जनजागरूकता एवं शिक्षा से सम्बन्धित निम्न संस्थायें हैं-
- प्रेस ट्रस्ट ऑफ इण्डिया – यह भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेन्सी है। इसकी स्थापना 27 अगस्त, 1947 को हुई तथा इसकी सेवायें 1 फरवरी, 1949 से प्रारम्भ हुईं। यह एजेन्सी अंग्रेजी तथा हिन्दी में अपनी सेवायें दे रही है। वर्तमान में भारत में न्यूज एजेन्सी में इसका 90 प्रतिशत पर अधिकार है।
- यूनाइटेड न्यूज ऑफ इण्डिया – 1956 में इसकी स्थापना कम्पनी कानून के तहत हुई। इसने 21 मार्च, 1961 से कुशलतापूर्वक कार्य कर अपनी सेवायें देना प्रारम्भ किया ।
- भारतीय प्रेस परिषद् – इस परिषद् की स्थापना समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता की रक्षा करने और भारत में समाचार-पत्रों और समाचार एजेन्सियों के स्तर को बनाये रखने तथा उसमें सुधार लाने के उद्देश्य से संसद के अधिनियम के अन्तर्गत की गयी। इसके अध्यक्ष भारत के उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होते हैं तथा साथ ही इसके 28 सदस्य होते हैं।
- गुटनिरपेक्ष समाचार नेटवर्क – गुटनिरपेक्ष समाचार नेटवर्क इण्टरनेट आधारित समाचार और फोटो आदान-प्रदान की व्यवस्था गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के सदस्य देशों की समाचार एजेन्सियों की व्यवस्था है। प्रेस ट्रस्ट इण्डिया सहित गुटनिरपेक्ष समाचार एजेन्सियों के समाचार और फोटो एन. एन. एन. बेवसाइट http/www.namnewsretwork.org/ पर अपलोड किये जाते हैं ताकि सभी को ऑन लाइन उपलब्ध हो सकें।
- प्रकाशन विभाग इस विभाग की स्थापना 1941 में हुई थी। इसने अब तक अंग्रेजी, हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में करीब 8000 शीर्षक प्रकाशित किये हैं। इस विभाग का मुख्यालय दिल्ली में है। इसकी विभिन्न क्षेत्रीय इकाइयाँ विक्रय केन्द्र नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, पटना, लखनऊ, हैदराबाद, तिरुवनन्तपुरम् और योजना कार्यालय नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, अहमदाबाद, गुवाहाटी, हैदराबाद तथा बंगलौर में हैं।
- फोटो प्रभाग – यह ऐसी स्वतन्त्र मीडिया इकाई है जो भारत सरकार की गतिविधियों के लिए दृश्य सहायता उपलब्ध कराती है। यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का अधीनस्थ कार्यालय है तथा फोटोग्राफी के क्षेत्र में अपनी तरह की सबसे बड़ी उत्पादन इकाई है।
- भारतीय जनसंचार संस्थान – इसकी स्थापना 17 अगस्त, 1965 को समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 के अन्तर्गत की गयी, जिसे संचार शिक्षण, प्रशिक्षण तथा अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट केन्द्र के रूप में जाना जाता है।
- जन सूचना अभियान (PIC) – इस अभियान की रणनीति सूचना सम्प्रेषण का विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में लाभार्थियों के लिए उनके द्वार पर सेवायें पहुँचाने के मिश्रण की है। यह सीधे आम आदमी तक पहुँचता है और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को शक्ति सम्पन्न बनाता है।
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – नवीन तकनीकी के परिणामस्वरूप नये-नये यन्त्रों का आविष्कार हुआ, जिससे संचार साधनों में क्रान्ति आयी। इन साधनों से हजारों किलोमीटर दूर बैठे लाखों की संख्या में व्यक्तियों तक सूचना तथा ज्ञान का आदान-प्रदान बड़ी सरलता से किया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत रेडियो, टेलीफोन, फैक्स, इण्टरनेट इत्यादि साधन आते हैं।
- अन्य साधन – इसके अन्तर्गत नाटक, समाज कल्याण समितियाँ, व्याख्यान, नाट्यशाला, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, युवक कल्याण समिति, महिला समिति आदि आते हैं।