जंतु व पादप में अंतर – जीव विज्ञान के अंतर्गत सजीव या चेतन (लिविंग और एनिमेट) का अध्ययन सम्मिलित है। सजीव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- पहला जंतु तथा दूसरा पादप। यद्यपि सजीवों की शारीरिक रचना कोशिकीय होती है और दोनों में ही अनेकों जैविक क्रियाएं होती है फिर भी जंतुओं एवं पादपों के लक्षणों में कुछ विशेष अंतर पाए जाते हैं। जंतु व पादप में अंतर से संबंधित जानकारी नीचे दी गई है।

जंतु व पादप में अंतर
पादप बहुकोशिक जीव है जिनमें जीवनपर्यन्त निरंतर वृद्धि करने का विशेष गुण पाया जाता हैं. यह वृद्धि पादप के शीर्ष भाग पर पाए जाने वाले विशेष प्रकार के ऊतक जिन्हें विभज्योतक ऊतक कहते हैं, के कारण होती है। जंतु व पादप में अंतर निम्न है-
क्र• सं• | जंतु | पादप |
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1. | सक्रिय, तीव्र एवं स्वेच्छा से प्रचलन की क्षमता होती है। | प्रचलन का अभाव; केवल मंद गति शैवाल एवं जीवाणु में होती है। |
2. | शरीर अशाखान्वित होता है। | शरीर शाखान्वित होता है। |
3. | शरीर की निश्चित आकृति एवं रूप अपरिवर्तनीय होता है अर्थात सकल संरचना होती है। | शरीर की आकृति एवं रूप परिवर्तनशील होता है। |
4. | कोशिका भित्ति सजीव व लचीली झिल्ली प्रोटीन वसा की निर्मित के रूप में होती है। | कोशिका भित्ति कठोर व निर्जीव तथा सेलुलोज की बनी होती है। |
5. | हरितलवक का अभाव होता है | हरितलवक पाया जाता है। |
6. | प्राणीसम पोषण होता है, अर्थात भोजन स्वयं नहीं बना पाते, पौधों पर निर्मित रहते हैं, इसे परपोषण या विषमपोषी कहते हैं। | पादपसम पोषण होता है, अर्थात जल, सूर्य का प्रकाश व हरितलवक की उपस्थिति में पौधे, प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वत: भोजन बनाते हैं। इसे स्वयंपोषी कहते हैं। |
7. | जंतुओं में सौर ऊर्जा को बांधने की क्षमता का पूर्ण अभाव होता है। | सूर्य की गतिज ऊर्जा उत्पादकों के पढ़ना हरित क सहायता से |
8. | एक निश्चित समय तक अंगो द्वारा वृद्धि होती है। | अनिश्चित व अनियमित वृद्धि होती है। |
9. | जंतु कोशिका में कार्बोहाइड्रेट का संचय ग्लाइकोजन के रूप में होता है। | पादप कोशिकाओं में कार्बोहाइड्रेट्स का संग्रहण स्टार्च के रूप में होता है। |
10. | उपापचय ठीकरिया तेजी से होती है | उपापचय मंद गति से होता है। |
11. | अपचय की क्रियाएं अधिक तेजी से होती हैं। | अपचय की क्रिया मंद गति से होती है। |
12. | अपाच्य पदार्थों को त्यागने के लिए विसर्जन अंग होते हैं। | अपाच्य पदार्थ को त्यागने के लिए विसर्जन अंग का अभाव होता है। |
13. | उद्दीपनों को ग्रहण करने की क्षमता का विशेष अंग निर्धारित होते हैं | बाह्य उद्दीपनो को ग्रहण करने की क्षमता नगण्य होती है। |
14. | स्वास नाग पाए जाते हैं | श्वसनांगों का अभाव होता है। |
15. | ज्ञानेंद्रियां विकसित देखने व सुनने आदि क क्षमता | पूर्ण अभाव होता है। |
16. | कोशिकाओं में तारककाय रचनाएं होती हैं। | तारककाय रचनाओं का पूर्ण अभाव होता है। |
17. | कोशिकाओं में रिक्तकाओ का पूर्ण अभाव होता है। | कोशिकाओं में कोशारस से भरी रिक्तकाये होते हैं। |
18. | अंतः स्रावी ग्रंथियां पाई जाती हैं। | अंतः स्रावी ग्रंथियों का पूर्ण अभाव होता है। |
19. | प्रजनन अंडा देने या बच्चे देने के अतिरिक्त अलिगी जी भी हो सकता है। | प्रजनन बीजाणु या बीज द्वारा या कायिक जनन द्वारा भी हो सकता है। |