चिंतन स्तर शिक्षण, शिक्षण का उच्चतम स्तर माना जाता है। यह शिक्षण स्तर, स्मृति तथा बोध स्तरों की अपेक्षा सर्वाधिक विचार युक्त माना जाता है। इस स्तर के शिक्षण में शिक्षण सम्बन्धी सभी कार्य उच्च मानसिक स्तर पर किये जाते हैं। छात्रों की मानसिक शक्तियों तथा बौद्धिकता को अपनी चरम सीमा तक पहुँचाने का कार्य इसी स्तर के शिक्षण द्वारा अच्छी तरह से किया जा सकता है।
किसी भी प्रकार के तथ्य एवं सामग्री को पढ़ने-सुनने, देखने तथा समझने के पश्चात् उस पर पुनर्विचार करने एवं उसके बारे में चिन्तन करने की बारी आती है। अर्थात स्मृति एवं बोध स्तर के . शिक्षण से छात्र जब तथ्यों को याद करके उसके बारे में समझ एवं सूझ का विकास कर लेते हैं तब उसके आगे का शिक्षण चिन्तन या मनन स्तर के शिक्षण द्वारा किया जाता है।
किसी तथ्य के अध्ययन में उसके प्रत्येक पहलू पर गम्भीरता से निरीक्षण तथा गहन अध्ययन किया जाता है, चिन्तन, मनन एवं मंथन किया जाता है जिससे उसके बारे में कोई नवीन तथ्य उभर कर सामने आये, कोई नवीन सूझ विकसित हो सके जिसके आधार पर नियमों एवं सिद्धान्त में परिवर्तन लाया जा सके या नये नियमों को प्रतिपादित करके समस्याओं के लिये नये समाधान ढूँढ़े जा सकें।
चिंतन स्तर शिक्षण
चिंतन स्तर शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है। इसमें छात्र मौलिक रूप से चिंतन करते हैं। विषय-वस्तु के बारे में आलोचनात्मक दृष्टिकोण को अपनाकर अपने सीखे हुये तथ्यों एवं सामान्यीकरण को परखते है एवं नवीन तथ्यों को प्रतिपादित करते हैं। चिंतन स्तर शिक्षण को परिभाषित करते हुये मौरिस एल. विग्गी ने कहा है कि-
“चिंतन स्तर शिक्षण में कक्षा में एक ऐसा वातावरण विकसित किया जाता है, जो अधिक सजीव, प्रेरणादायक, सक्रिय, आलोचनात्मक, संवेदनशील हो और नवीन एवं मौलिक चिंतन को खुला अवसर प्रदान करे। इस प्रकार का शिक्षण बोध स्तर की शिक्षण के अपेक्षा अधिक कार्य उत्पादन को बढ़ावा देता है।”
इस स्तर पर शिक्षण छात्रों के बौद्धिक विकास के लिये अवसर प्रदान करता है एवं उनकी सृजनात्मक क्षमताओं को विकसित करता है। चिंतन स्तर शिक्षण, स्मृति एवं बोध स्तर के शिक्षण से भिन्न होता है परन्तु चिंतन स्तर शिक्षण में स्मृति तथा बोध दोनों ही निहित होते हैं। इस स्तर के शिक्षण में छात्र सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं। कक्षा का वातावरण खुला होता है। शिक्षक छात्रों के सम्मुख समस्या प्रस्तुत करता है जिससे छात्र तनाव में आ जाते हैं और उस समस्या के समाधान के लिये परिकल्पनाओं का निर्माण करने लगते हैं।
इस स्तर पर छात्र स्वयं रुचि लेकर स्वेच्छा से चिंतन, मनन, तर्क व कल्पना की सहायता से समस्या समाधान करने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को अधिक क्रियाशील आत्मविश्वासी एवं सक्रिय बनाते हैं। इस स्तर पर शिक्षण कार्य करने के लिये शिक्षक को योग्य, अनुभवी, विषय विशेषज्ञ, क्रियाशील एवं प्रभावशील होना चाहिये ।






चिंतन स्तर शिक्षण के लिये प्रयुक्त शिक्षण विधियाँ
इस शिक्षण स्तर पर प्रयुक्त होने वाली शिक्षण विधियाँ छात्र केन्द्रित होती हैं। चिन्तन स्तर पर छात्रों को ज्ञान थोपा नहीं जाता है बल्कि छात्रों को अपनी तरह से तथ्यों का पता लगाने, नई सूझ विकसित करने तथा समस्या के समाधान ढूंढ़ने में लगाया जाता है। इसलिये इस स्तर के शिक्षण में ऐसी विधियों को अपनाया जाता है जो विचार, तर्क, कल्पना, निरीक्षण तथा सामान्यीकरण योग्यता के द्वारा चिन्तन में सहायक हों, कक्षा में अधिकाधिक अन्तः प्रक्रिया को बढ़ाने में सहायता करें।
इस आधार पर चिंतन स्तर शिक्षण के लिये विश्लेषण विधि ( Analytical method), खोज विधि (Discovery method), समस्या समाधान विधि (Problem solving method), योजना विधि (Project method), अधिन्यास विधि ( Assignment method) आदि अधिक उपयोगी हैं।
चिंतन स्तर शिक्षण के गुण
चिंतन स्तर शिक्षण में निम्नलिखित विशेषताओं का समावेश होता है जिसके कारण यह उच्चस्तरीय शिक्षण माना जाता है-
- इस स्तर पर शिक्षण अध्यापक या विषय पर केन्द्रित होने के बजाय छात्र केन्द्रित होता है।
- छात्रों को शिक्षण-प्रक्रिया के मार्ग पर स्वयं चलकर निर्धारित लक्ष्य को पाने की स्वतन्त्रता प्राप्त रहती है।
- शिक्षण की प्रक्रिया स्मृति स्तर व बोध स्तर की तुलना में अधिक विचार युक्त होती है।
- इस स्तर के शिक्षण में विद्यार्थियों को मानसिक शक्तियों के प्रयोग एवं उन्हें विकसित करने के लिये प्रचुर मात्रा में अवसर उपलब्ध रहते हैं।
- चिंतन स्तर शिक्षण में छात्रों को समस्याओं को अच्छे से समझने, उनका सामना करने एवं उनका समाधान करने की क्षमता का विकास किया जाता है जिसका उपयोग वे अपने व्यावहारिक जीवन को सफल बनाने में कर सकते हैं।
- चिंतन स्तर के शिक्षण द्वारा कक्षा में वातावरण को लोकतान्त्रिक, सक्रिय, प्रेरणादायक व जीवन्त बनाने में सहायता मिलती है।
- चिंतन स्तर शिक्षण में स्मृति एवं बोध स्तर के शिक्षण के अधिगम स्वयं ही सम्मिलित हो जाते हैं क्योंकि इन स्तरों के शिक्षण के बिना चिंतन स्तर का शिक्षण संभव नहीं है।
- चिंतन स्तर का शिक्षण देश के लिये ऐसे सुयोग्य नागरिकों को तैयार करने का कार्य करता जो नित्य परिवर्तन एवं प्रगति करते हुये विश्व के आवश्यकताओं की अनुरूप स्वयं को ढाल सकें।
- चिन्तन स्तर से प्राप्त ज्ञान विद्यालय के बाहर की समस्याओं को सुलझाने में भी उतना ही सफल रहता है जितना कि विद्यालय के अन्दर विषयगत समस्याओं के समाधान में होता है।
- चिंतन स्तर शिक्षण सभी विषयों एवं प्रकरणों के शिक्षण अधिगम के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है।
- नियोजन एवं आयोजन की दृष्टि से भी यह काफी लचीली एवं गतिशील शिक्षण प्रक्रिया होती है। शिक्षक व छात्र दोनों ही स्वतन्त्र होकर कार्य करते हैं इसलिये मौलिक चिन्तन, मनन, सृजन तथा अनुसंधान को अधिक से अधिक अच्छे ढंग से सम्पादित किया जा सकता है।
चिंतन स्तर शिक्षण के दोष
चिंतन स्तर का शिक्षण सबसे अधिक विचार युक्त माना जाता है फिर भी इस शिक्षण में भी कुछ दोष या कमियाँ परिलक्षित होती हैं जो इस प्रकार से हैं-
- चिंतन स्तर शिक्षण के लिये विकसित मानसिक शक्तियों, बौद्धिक क्षमताओं तथा उच्चस्तरीय विचार प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। अतः छोटी कक्षा एवं छोटे आयु वर्ग के बालकों के लिये सर्वथा अनुपयुक्त है।
- इस स्तर के शिक्षण में स्मृति एवं स्तर की शिक्षण के भांति एक निश्चित कार्यक्रम का अनुसरण नहीं किया जा सकता हैं।
- यह कहना भी ठीक नहीं है कि चिन्तन स्तर का शिक्षण सभी विषयों में किया जा सकता है। क्योंकि यह केवल उन्ही विषयों के शिक्षण के लिये उपयोगी है जिनमें आलोचनात्मक चिंतन, गहन अध्ययन तथा विधि का प्रयोग किया जा सके।
- इस प्रकार के शिक्षण के नियोजन में शिक्षक का कार्यभार एवं उत्तरदायित्व अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाता है। व्यावहारिक रूप में इतना अधिक कार्य का भार उठाने वाला योग्य अनुभवी तथा विषय विशेष से सम्बन्धित शिक्षकों का मिलना कठिन होता है जिसके अभाव में चिंतन स्तर शिक्षण का फलीभूत होना अत्यन्त कठिन है।
- शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है तथा केवल सामूहिक वाद-विवाद को ही शिक्षण का प्रभावशाली शिक्षण व्यूह रचना माना जाता है, शेष विधियों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है।






चिंतन स्तर के शिक्षण के लिये सुझाव
इस स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये गये हैं-
- इस शिक्षण के पूर्व छात्रों को स्मृति स्तर एवं बोध स्तर का पूर्ण ज्ञान अवश्य होना चाहिये।
- शिक्षण में प्रत्येक चरण का क्रमबद्ध रूप में अनुसरण होना चाहिये।
- छात्रों का आकांक्षा स्तर भी उच्चस्तरीय होना चाहिये तभी चिंतन स्तर शिक्षण का लाभ प्राप्त हो सकेगा।
- छात्रों को समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिये।
- इस स्तर के शिक्षण में ज्ञानात्मक क्षेत्र मनोविज्ञान पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिये।
- छात्रों को समस्या की अनुभूति होनी चाहिये तभी वे उचित परिकल्पना का निर्माण कर सकेंगे।
- शिक्षक को कक्षा में ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिये जो छात्रों को मौलिक चिंतन के विकास का सही अवसर प्रदान कर सके ।