आज प्राचीन गुफाएं स्तूप चैत्य गृह के बारे में संक्षेप में जानेगे। ये गुफाएं, स्तूप आज भी यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। अजन्ता एलौरा की गुफाएं हिन्दु शासकों द्ववारा बनवाई गई थी। सांची का महान मुख्य स्तूप सम्राट अशोक ने बनवाया। चैत्य एक बौद्ध या जैन मंदिर है जिसमे एक स्तूप समाहित होता है।
प्राचीन गुफाएं स्तूप चैत्य
गुफाएं स्तूप चैत्य का इतिहास, वास्तुकला, कला और धर्म की दृष्टि से एक विशेष महत्व है। जोकि आज के आधुनिक समाज में यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। ये ऐतिहासिक स्मारक बौद्ध वास्तुकला और मूर्तिकला की शानदार कृति हैं। विश्व भर के वैज्ञानिकों द्वारा सदियों से इन गुफाओं से प्राचीन मानव के इतिहास के बारे में जानकारी खोजने का प्रयास किया जा रहा है। आप गुफाएं स्तूप चैत्य Hindibag पर पढ़ रहे हैं।


गुफाएं
भारत में प्राचीन काल में कई गुफाओं का निर्माण कराया गया, जिनमें से कुछ निम्न है-
- अजंता गुफाएं
- एलोरा गुफाएं
- अमरावती
- एलिफेंटा
- बाघ की गुफा
अजंता गुफाएं
अजंता गुफाएं जलगांव से 64 किलोमीटर या औरंगाबाद से 104 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। इन गुफाओं का निर्माण ईसा से 2 शताब्दी पूर्व प्रारंभ हुआ। यह तथ्य गुफा नंबर 9 और 10 के चित्र और लेखों से सिद्ध होता है। अजंता की गुफाओं का निर्माण कार्य लगभग 1000 वर्ष तक चला।
अजंता में कुल 30 गुफाएं हैं। उनमें पांच आयत मंदिर और शेष जनसभा और निवास के लिए बड़े हाल है। चाहत हाल में पत्थर का काम आश्चर्यजनक है। गुफाओं के बाहरी भाग पर अत्यधिक सजावट है। अजंता की गुफाओं का वास्तविक गौरव अधिकार गुफाओं में रंगों की सजावट की पंक्ति से है। आरंभ में प्रायः सभी गुफा चित्र थी, लेकिन केवल गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 11, 16 और 17 में यह चित्र पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
गुफा नंबर 10 में नहाते हुए शक्ति परीक्षा में लगे हुए छोटे बड़े हाथियों के झुंड को सभी विचारणीय स्थितियों में अधिक स्वतंत्रता से चित्रित किया गया है। गुफा नंबर 9 तथा 10 के चित्र दूसरी और पहली सदी ईसा पूर्व के हैं। इसके बाद अजंता में अनेक शताब्दियों तक निर्माण कार्य नहीं हुआ। मगध में गुप्त वंश के उत्थान के पश्चात अजंता में कार्य का एक नया प्रयोग आरंभ हुआ। वह कार्य 400 वर्षों तक जारी रहा। इस काल में गुफा नंबर 9 और 10 को आंशिक रूप से पन्ना सजाया गया। अनेक गुफाओं का इस काल में निर्माण हुआ।


इस काल में अजंता में विचित्र अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। इन चित्रों में यह अधिकांश शाक्यमुनि एवं तत्व से संबंधित है। बुद्ध के जीवन की महान घटनाएं जन्म, गृह त्याग, ज्ञान प्राप्ति, प्रथम उद्देश्य तथा अनेक अन्य घटनाएं जातकों के अनेक दृश्य को भी चित्रित किया गया है। चित्रों को विषय वस्तु केवल धार्मिक नहीं पृथ्वी भूमि चट्टाने वनस्पति और मानव भी है। इन चित्रों में महिलाओं तथा दरबारों की विलासिता राज से जीवन के साथ गरीब और साधारण व्यक्ति के जीवन का चित्रण किया गया है।
गुफा नंबर 1 में बोधिसत्व पद्मपाणि अवलोकितेश्वर आकृति चित्र में भारतीय चित्रकला की सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध को प्रकट करती है। गुफा नंबर 16 में मरणासन्न राजकुमारी का अत्यंत सजीव चित्र है। गुफा नंबर 17 में आकर्षक माता और बच्चों के समूह के दर्शन होते हैं। जिनमें बुद्ध की पत्नी अपने पुत्र राहुल को बुद्ध को दे रही है।


एलोरा गुफाएं
एलोरा की गुफाएं अपने विस्तार बृहद लंबाई चौड़ाई एवं परिश्रम से की गई खुदाई के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है। इनकी कुल संख्या 34 है। उनमें से 12 बौद्ध गुफाएं, 17 हिंदू गुफाएं और पांच जैन गुफाएं हैं। हिंदू गुफाएं आठवीं तथा नवी सदी में तथा जैन गुफाएं 12वीं और 13वीं सदी में बनी है।
हिंदू गुफाओं में से सबसे प्रमुख गुफा आठवीं सदी का कैलाश मंदिर है। यह भारत में चट्टान से काटकर बनाई गई मंदिर गुफाओं में सबसे बड़ी है। इसमें विश्व की सबसे बढ़िया एवं शानदार एक ही पत्थर को काटकर बनाई गई मूर्ति है। इसे खंबो और बहुत बड़े-बड़े खुदे हुए हाथियों का सहारा दिया गया है।
जैन गुफाओं में इंद्रसभा और जगन्नाथ सभा सबसे प्रमुख है। इंद्रसभा की दो मंजिलें हैं तथा इनमें मूर्ति बनाने के भौतिक रूप तथा सजावट के विचार से कारीगर ने अधिक श्रेष्ठ कार्य किया है। जगन्नाथ सभा में महावीर स्वामी की मूर्ति एक सिंहासन पर विराजमान है।
अमरावती की गुफाएं
अमरावती दक्षिण रेलवे के गुंटूर स्टेशन से मोटा सड़क पर 64 किलोमीटर दूर है। अमरावती के सभी महान मंदिर खंडहर हैं, लेकिन सफेद एवं भूरे रंग की चूना पत्थर की बहू से टिकुरिया इसकी इमारतों के गत वैभव तथा मूर्तिकारों की ऊंची चातुर्य को अभिव्यक्त करती है।
इतिहासकारों ने अमरावती कला के विकास के काल को चार भागों में बांटा है पहले भाग में 200 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व शैली बहुत के समान थी। दूसरा काल 100 ईस्वी तक था और इसने कला निश्चित रूप से आगे बढ़ी तीसरा काल दूसरी सदी तक था। इस काल में महान स्तूप के चारों ओर अलगनी का निर्माण हुआ। चौथा कारिसा की तीसरी सदी में था इस काल की मुखाकृति आतंकी और दुर्बल है। इस काल की अधिकांश संगतराश आरंभिक अलगनी के टुकड़ों पर की गई।


तोरण के बौद्ध स्तूप के द्वार के विकास का प्रारंभिक रूप अमरावती में मिलता है। प्रारंभिक तोरण तू पतली खंभों से बनता था। यह बात अमरावती के प्रारंभिक मांस टूट के तत्कालीन संगतराश के ढांचे में उसकी सजावट के पत्थर के टुकड़ों से स्पष्ट है। उनकी शुरू की दो-चार से रक्षा करते थे इसके चारों ओर की और घनी चादर को जोड़ती थी।
एलिफेंटा
मुंबई में स्थित इस गुफा में पौराणिक देवता की भव्य मूर्तियां हैं। इनमें सर्वाधिक लोकप्रिय त्रिदेव की मूर्ति है। इस गुफा मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट ओके समय में हुआ। इस पहाड़ी में श्लोक पर उत्कृष्ट शिव की मूर्ति आठवीं शताब्दी की है।
बाघ की गुफा
मध्य प्रदेश के बाग नामक स्थान पर या गुफा स्थित है। इनमें गुफा नंबर दो पांडव गुफा के नाम से प्रसिद्ध है। तीसरी गुफा हाथीखाना तथा चौथी गुफा राजमहल के नाम से जानी जाती है इनका निर्माण 5-6 शताब्दियों में हुआ।
स्तूप
स्तूप का शाब्दिक अर्थ है किसी वस्तु का ढेर बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं जन्म धर्म चक्र प्रवर्तन संबोधी निर्माण से संबंधित स्थानों पर 20 तोपों का निर्माण हुआ।
भरहुत
दूसरी सदी ईसा पूर्व में बने इस स्तूप को 1877 में अलेक्जेंडर कनिंघम ने खोजा। भगवान बुद्ध के पशुओं के ऊपर निर्मित या स्तूप सतना जिला में स्थित है। इस स्तूप के लकड़ी के जंगले को सुन शासकों ने पत्थर के जंगले में प्रवर्तित किया यहां सर्वाधिक प्राचीन स्तूप है।


सांची
रायसेन जिला में स्थित सचिव नितिन मुकेश धूप है सबसे बड़ा स्तूप मांस तू कहा जाता है। अशोक ने तीसरी सदी सुई में इस स्तूप के ढांचे को बनवाया था तथा सुन शासकों ने इसका विस्तार किया। इस स्तूप की ऊंचाई 16 से 50 मीटर तथा व्यास 40 मीटर है। इस स्तूप के एक और के जंगले तथा तोरण द्वार सातवां युग में बने यह बहुत स्तूपोर में सबसे विशाल और श्रेष्ठ है।
बोधगया
वाराणसी में स्थित मौर्य तो युग में इस स्तूप की न्यू अशोक द्वारा ही रखी गई थी। तीसरे वाले इस स्तूप का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है।
सारनाथ
वाराणसी के निकट इट से बने इस स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था। इसे धमेख स्तूप के नाम से भी जाना जाता है। इसका एक अन्य नाम धर्मराज स्तूप भी है। इसका निर्माण अनुस्तूप की तरह चबूतरे पर ना होकर धरातल पर हुआ है।
नालंदा
राजगृह से 5 मील दूर नालंदा नामक बौद्ध स्थल पर इस स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था।


चैत्य गृह (गुहा मंदिर)
बौद्ध धर्म के अनुयाई मूर्ति पूजा विरोधी होने के कारण प्रीति के रूप में बुध की पूजा करते थे। इस पूजा के लिए निर्मित वस्तु को चैत्य कहा जाता था। बौद्धों द्वारा वंदन ध्यान आदि क्षेत्रों से मैं ही होता था। ग्रह के समीप ही निवास के लिए बिहार बना होता था। इन जातियों के अंदर अपने छोटे-छोटे स्तूपोर को दगोव कहा जाता था।