गुण्डा कहानी समीक्षा सारांश उद्देश्य

गुण्डा कहानी समीक्षा – गुण्डा कहानी भाव प्रधान आदर्शवादी कहानी है। इस कहानी में प्रेम करुणा और आनंद के पूर्व संयोजन पर सामाजिक मर्यादाओं तथा मान्यताओं के प्रति विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है। गुण्डा कहानी समीक्षा के मुख्य बिंदु इस प्रकार है।

गुण्डा कहानी सारांश
गुण्डा कहानी समीक्षा

गुण्डा कहानी समीक्षा

जयशंकर प्रसाद जी एक समूचे योग तथा समस्त भाव धारा में तारतम्यता लाने के प्रयास में अपनी संवेदनाओं को विस्तृत कर कथा में चारुता उपस्थित कर देते हैं। प्रेम की उदारता और कर्तव्य की महानता व्यक्तित्व और राष्ट्रीयता में अद्भुत सामंजस्य कर कल्पना के रंगों में सजाकर आदर्श और यथार्थ के समन्वय से इस कहानी का निर्माण किया गया है। विद्वानों ने प्रसाद की गुंडा कहानी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है कहानी कला की दृष्टि से गुण्डा कहानी समीक्षा निम्नलिखित है।

कथानक

इस कहानी का कथानक अत्यंत सशक्त एवं मार्मिक है। कथानक का आधार सांस्कृतिक चेतना मनोवैज्ञानिक सौंदर्य एवं प्रेम तथा कर्तव्य के अनुसार संयोजन से है। कहानी की कथावस्तु में क्रमबद्ध बता के साथ-साथ कौतूहल एवं चमत्कार का भी महत्व है। इस कहानी की कथावस्तु बनारस से संबंधित है। जिसमें तमाम राजनीतिक उथल-पुथल के बीच नानकू सिंह जैसे नामधारी गुंडे के स्वर पूर्ण बलिदान की कथा है।

यह बलिदान सामान्य ना होकर विशेष हो जाता है क्योंकि उसने प्रेमास पद की रक्षा की है। नन्हकू सिंह एक प्रतिष्ठित जमीदार का पुत्र था। अपने जीवन की किसी अलभ्य अभिलाषा को ना पूरी होने पर वह विरक्त हो गया। लेकिन वह विराग उसे सन्यासी ना बना सका। वह एक साथी गुंडा बन गया वेश्यालय में जाना जुआ खेलना तथा लोगों की मदद करना उसका शौक था। वह जुए में जीती गई धनराशि गरीबों में बांटता था।

वेश्यालय में मुजरा सुनने का शौकीन अनुकूकुंडा मौलवी के क्रूर आचरण से क्रुद्ध होकर उन्हें बनारसी झापड़ मारता है। कोबरा अंग्रेजी की चापलूसी करने वाला दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति है वह अंग्रेज रेजिडेंट के पास जाकर पूरा वेतन सुनाता है। (गुण्डा कहानी समीक्षा)

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पात्र एवं चरित्र चित्रण

गुंडा कहानी के पात्र बहुत ही सशक्त हैं इस के पात्रों में नानकू सिंह बौद्ध सिंह मलूक की दुलारी कुकड़ा मौलवी पन्ना राजा चेतन सिंह लेफ्टिनेंट इंस्पेक्टर तथा मनिहार सिंह आदि हैं। नन्हकू सिंह बाबू निरंजन सिंह के पुत्र हैं साथ ही पन्ना से प्रेम करते हैं लेकिन प्रेम में असफल होने के बाद गुंडा का रूप धारण कर लेते हैं। पन्ना को प्राप्त ना कर सकने के बावजूद उनकी प्रेम भावना पन्ना के प्रति कम नहीं होती है।

संकटा पन्ने एवं उसके पुत्र चेतन सिंह को बचाने के लिए नानकू सिंह अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। यही उनके चरित्र का सर्वाधिक उदात्त पक्ष है प्रसाद जी नन्हकू सिंह का चित्रण निम्न शब्दों में करते हैं।

वह 50 वर्ष से ऊपर था। तब भी युवकों से अधिक बलिष्ट और दृढ़ था चमड़े पर झुर्रियां नहीं पड़ी थी। वर्षा की झड़ी में पूछ की रातों की छाया में कड़कती हुई जेट की धूप में नंगे शरीर घूमने में वह सुख मानता था। उसकी चढ़ी मुझे बिच्छू के डंक की तरह देखने वालों की आंखों में चुभती थी। उसका सावला रंग सांप की तरह चिकना और चमकीला था। उसकी ना पूरी धोती का लाल रेशमी किनारा दूर से भी ध्यान आकर्षित करता था। (गुण्डा कहानी समीक्षा)

कमर में बनारसी सेल है का बेटा जिस में शिव की मूर्ति का बिछुआ खुश रहता था उसके घुंघराले बालों पर सुनहरे पल लेके साफे का चोर उसकी चौड़ी पीठ पर फैला रहता था मुझे कंधे पर टिका हुआ चूड़ीदार का गड़ासा यह थी उसकी ध्वज पंजों के बल जवा चलता था तो उसकी न सच बोलती थी वह गुंडा था कोबरा मौलवी एक दुष्ट प्रकृति का व्यक्ति है क्रूरता निर्दयता उसके रग रग में समाई है पन्ना गुंडा कहानी की प्रमुख स्त्री पात्र है।

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वह धार्मिक प्रवृत्ति की संगीत प्रेमी नारी है यद्यपि पन्ना और ननकू सिंह में पारस्परिक प्रेम है किंतु कन्या का विवाह बलवंत सिंह से हो जाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं गुंडा कहानी में प्रसाद जी ने जिन चरित्रों की सृष्टि की है। वह कहानी की कथावस्तु को सशक्त बनाने में पूर्णता समर्थ है।

कथोपकथन

अशोक कथन कहानी के विकास में अधिक सहायक नहीं होता किंतु भावों और विचारों के आदान-प्रदान के लिए इसकी आवश्यकता अनिवार्य होती है गुंडा कहानी में संवादों की बहुलता है लेकिन इसके संवाद कथा को गति प्रदान करते हैं साथ ही इनके काव्य सौंदर्य में चारुता उत्पन्न करते हैं कथाकथन में कहीं-कहीं उदासीनता और वैराग्य की तो कहीं छोड़ और व्यंग की अभिव्यक्ति हुई है। आप गुण्डा कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं। (गुण्डा कहानी समीक्षा)

देशकाल एवं वातावरण

कथाकार कहानी की भाव प्रवणता में वृद्धि करने के लिए वातावरण की सृष्टि करता है। इस कहानी का वातावरण 18वीं शताब्दी का है। यद्यपि यह काल्पनिक है फिर भी कल्पना बहुत उच्च कोटि की है। लेखक की विशेषता है कि वह अतीत की किसी घटना में कल्पना का रंग भरकर उसे वर्तमान से जोड़ देते हैं। के प्रारंभ में लेखक ने वातावरण का निर्माण करते हुए लिखा है। आप गुण्डा कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं।

ईसा की 18वीं शताब्दी के अंतिम भाग में वही काशी नहीं रह गई थी। जिसमें उपनिषद के अजातशत्रु की परिषद में ब्रह्म विद्या सीखने के लिए विद्वान ब्रह्मचारी आते थे गौतम बुद्ध शंकराचार्य के धर्म दर्शन के वाद विवाद कई शताब्दियों से लगातार मंदिरों और मठों के ध्वंस और तपस्या के वध के कारण प्रायः बंद हो गए थे।

आधुनिक हिंदी काव्य
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भाषा शैली

जयशंकर प्रसाद जी की भाषा परिष्कृत कलात्मक एवं संस्कृत निष्ठ है तथा ललित शैली का माधुर्य नाथ की एकता और काव्य मई भाषा का गरिमा में प्रयोग उसकी चारुता को और बढ़ा देता है कहानी के उदात्त एवं ऐतिहासिक धरातल के अनुरूप भाव चित्र एवं वातावरण उपस्थित करने में प्रसाद जी की कहानी पूर्णतया समर्थ है। भाषा शैली का स्वाभाविक कलात्मक एवं सशक्त कविता पूर्ण चित्रण मोहक अलंकार विधान और तत्सम प्रधान रोज भाषा के कारण या कहानी प्रसाद की प्रतिनिधि कहानी कही जा सकती है। आप गुण्डा कहानी समीक्षा पढ़ रहे हैं।

गुंडा कहानी उद्देश्य

गुण्डा कहानी इनके उडान तो रूप को सामने लाती है एक ऐसा प्रेम जिसे वासना नहीं केवल भावना है। कहानी का नायक नन्हकू सिंह अपने अभीष्ट प्रेम को प्राप्त न कर सकने के कारण अपना जीवन उद्देश्य बदल देता है। लेकिन चरित्र को नहीं गिराता है। वह प्रारंभिक प्रेम के ताप को जीवन पर्यंत महसूस करता है और अविवाहित रहता है वह दुलारी से कहता है कि हृदय को मैं बेकार समझ कर तो उसे मेरे लिए फिर रहा हूं। कोई कुछ कर देता है, कुशलता चीरता उड़ता मर जाने के लिए सब कुछ तो करता हूं पर मरने नहीं पाता हूं।

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जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय

 
जयशंकर प्रसाद
कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार
जन्म

30 जनवरी 1889

जन्म स्थान

वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

मृत्यू

15 नवंबर 1937

पिता

बाबू देवीप्रसाद

सम्मान

जयशंकर प्रसाद को ‘कामायनी’ पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे। जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं।

नाटक लेखन में भारतेन्दु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। 48 वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की।

शिक्षा – दीक्षा

प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान्‌ इनके संस्कृत के अध्यापक थे। इनके गुरुओं में ‘रसमय सिद्ध’ की भी चर्चा की जाती है।

घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही रुचि थी। कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था। वे बाग-बगीचे तथा भोजन बनाने के शौकीन थे और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। वे नियमित व्यायाम करनेवाले, सात्विक खान पान एवं गंभीर प्रकृति के व्यक्ति थे। वे नागरी प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष भी थे। मात्र 48 वर्ष की उम्र में क्षय रोग से 14 नवम्बर 1937 को प्रातःकाल उनका देहान्त काशी में हुआ।

रचनाएँ
काव्य
  1. प्रेम पथिक
  2. कानन कुसुम
  3. कामायनी
कहानी

कथा के क्षेत्र में प्रसाद जी आधुनिक ढंग की कहानियों के आरंभयिता माने जाते हैं। सन्‌ 1912 ई. में ‘इंदु’ में उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ प्रकाशित हुई। उन्होंने कुल 72 कहानियाँ लिखी हैं।

उपन्यास

प्रसाद ने तीन उपन्यास लिखे हैं।

  1. कंकाल
  2. तितली
  3. इरावती (अपूर्ण)

इन्होंने अपने उपन्यासों में ग्राम, नगर, प्रकृति और जीवन का मार्मिक चित्रण किया है, जो भावुकता और कवित्व से पूर्ण होते हुए भी प्रौढ़ लोगों की शैल्पिक जिज्ञासा का समाधान करता है।

नाटक

जयशंकर प्रसाद ने कुल 13 नाटकों की रचना की। जिनमें 8 ऐतिहासिक, तीन पौराणिक तथा दो भावात्मक नाटक थे।

  1. उर्वशी
  2. बभ्रुवाहन
  3. कामना
  4. एक घूंट
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Sonu
Sonu
2 years ago

त धन्यवाद आपका हमारी इतनी मदद करने के लिए

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