पाठ्यपुस्तक का महत्व – पाठ्य पुस्तक का उपयोग करने में विशेष सावधानी आवश्यक है। गणित में पाठ्य पुस्तक का महत्व विशेष ही है। पाठ्य पुस्तक का प्रयोग इस प्रकार से किया जाए कि बालक शिक्षक द्वारा मौखिक विधि से सीखने के पश्चात पाठ को और अधिक दृढ़ता से हृदय गम कर ले। अतः गणित की पाठ्यपुस्तक का स्थान अध्यापक व छात्रों के लिए एक साधन के रूप में होना चाहिए। वर्तमान शिक्षा पद्धति की कमियों तथा अध्यापकों की अध्यापन कार्य में अरुचि के कारण पाठ्यपुस्तक आज साधन ना होकर साध्य बन गई है। वर्तमान समय में शिक्षक पाठ्यपुस्तक का उपयोग ना करें पाठ्यपुस्तक विधि का प्रयोग शिक्षण हेतु करता है।
अतः पाठ्यपुस्तक शिक्षक की सेविका ना होकर आज स्वामिनी के पद पर आरूढ़ हो गई है। अगर उचित पाठ्य पुस्तकों का चयन करके उन्हें अच्छी तरह उपयोग में लाया जाए तो यह अभिशाप ना बनकर शिक्षक का दाया हाथ बन सकती हैं।


गणित शिक्षण में पाठ्यपुस्तक का महत्व
शिक्षण में पाठ्य पुस्तक का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। बाजार में बहुत अधिक मात्रा में पाठ्य सामग्री उपलब्ध है। गणित शिक्षण में पाठ्यपुस्तक तो होना चाहिए लेकिन उचित। गणित शिक्षण में पाठ्यपुस्तक का महत्व निम्न प्रकार है –
1. पाठ्य सामग्री के चुनाव व संगठन में
पाठ्य पुस्तक से शिक्षक को विस्तृत रूप से यह ज्ञात हो जाता है कि अमुक कक्षा में कितनी विषय सामग्री पढ़नी है। उस तक उसे पाठ्यक्रम से पूर्णतया परिचित कराती है। जिससे अध्यापक उद्देश्यों को उचित रूप से प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से पाठ्यवस्तु को संगठित करके पढ़ाया जा सकता है। जैसे एक विद्वान का मत है “पाठ्य पुस्तकों का शिक्षा में एक महत्वपूर्ण स्थान है पाठ्य पुस्तकों से ही पाठ्यवस्तु को संगठित रूप से पढ़ाया जाता है इन्हीं की सहायता से सभी शिक्षार्थियों को अधिवेशन तथा प्रेरणा मिलती है और अनेक समस्याओं को हल करने का अवसर प्राप्त होता है।”
2. स्वाध्याय के लिए
शिक्षक को स्वाध्याय के लिए भी पाठ्य पुस्तकों का प्रयोग करना चाहिए इससे अध्यापक नवीन विधियों तथा नवीन पाठ्य सामग्री अर्जन करके एवं उनका प्रयोग करके अपने शिक्षण कार्य को और प्रभावशाली बना सके तथा छात्र लाभान्वित हो सकें। स्वाध्याय करने वाले विद्यार्थियों के लिए पाठ्यपुस्तक एक गुरु के समान होती है।
एक उत्तम पुस्तक शिक्षकों की शिक्षक होती है।
Dr. Thring


3. कक्षा कार्य तथा गृह कार्य हेतु
अनुभवी शिक्षकों द्वारा लिखित पुस्तकों में प्रकरण के अंत में उत्तम प्रकार के प्रश्न दिए गए होते हैं जिससे छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन किया जा सके। वैसे शिक्षकों को मूल्यांकन एवं गृह कार्य हेतु पूर्णतया पाठ्यपुस्तक पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, फिर भी अच्छे-अच्छे प्रश्नों को चुनकर छात्रों से अभ्यास कार्य संपादित करवाने में पाठ्यपुस्तक की सहायता अवश्य लेनी चाहिए।
4. प्रश्न पत्र के निर्माण हेतु
पाठ्य पुस्तक से छात्रों के मानसिक व बौद्धिक स्तर का पता चल जाता है। जिससे शिक्षक पाठ्य पुस्तक में दिए गए उदाहरणों एवं प्रश्नों के आधार के द्वारा प्रश्न पत्र हेतु प्रश्नों का निर्माण कर सकता है।
5. समय की मितव्ययता
पाठ्य पुस्तक का प्रयोग समय की बचत की दृष्टि से भी किया जाता है इसके द्वारा उद्देश्यों के अनुरूप पाठ्य सामग्री एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाती है। अतः इसके द्वारा कक्षा के लिए पाठ्यवस्तु चयन व संगठन में अभ्यास कार्य व गृह कार्य देने में मूल्यांकन के संपादन हेतु प्रश्नों के चयन में जो समय नष्ट होता है उसकी बचत हो जाती है।
इस प्रकार उत्तम पाठ्यपुस्तक आधारभूत ज्ञान की प्राप्ति का साधन है तथा चिंतन है तो यह मार्गदर्शिका का कार्य करती है।
शिक्षक एवं पाठ्यपुस्तक विद्यालय का निर्माण करते हैं।
Douglous
पुस्तक ही वह माध्यम है जिसके द्वारा शिक्षक विषय को कक्षा के सामने प्रस्तुत करता है।
Maxwell
पाठ्यपुस्तक की इतनी अधिक उपयोगिता के कारण ही भारत में पाठ्य पुस्तकों के चयन हेतु विभिन्न तरीके अपनाए गए हैं। कुछ राज्यों में कक्षा 8 तथा कुछ में कक्षा 12 तक राष्ट्रीय कृत पुस्तकें निर्धारित की गई है। इसके अतिरिक्त एनसीईआरटी भी विशेषज्ञ समितियों का निर्माण करके पुस्तकों का निर्माण करती है।

