किशोरावस्था में सामाजिक विकास – 8 Top Best Qualities

किशोरावस्था में सामाजिक विकास – किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। उसमें सभी प्रकार के सौंदर्य की रुचि उत्पन्न होती है और बालक इसी समय नए नए और ऊँचे ऊँचे आदर्शों को अपनाता है। जो बालक किशोरावस्था में समाज सुधारक और नेतागिरी के स्वप्न देखते हैं, वे आगे चलकर इन बातों में आगे बढ़ते है। किशोर बालक उपर्युक्त मन:स्थितियों को पार करके, विषमलिंगी प्रेम अपने में विकसित करता है और फिर प्रौढ़ अवस्था आने पर एक विषमलिंगी व्यक्ति को अपना प्रेमकेंद्र बना लेता है, जिसके साथ वह अपना जीवन व्यतीत करता है।

किशोरावस्था में सामाजिक विकास
किशोरावस्था में सामाजिक विकास

किशोर बालक की सामाजिक भावना प्रबल होती है। वह समाज में सम्मानित रहकर ही जीना चाहता है। वह अपने अभिभावकों से भी सम्मान की आशा करता है। उसके साथ 10, 12 वर्ष के बालकों जैसा व्यवहार करने से, उसमें द्वेष की मानसिक ग्रंथियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिससे उसकी शक्ति दुर्बल हो जाती है और अनेक प्रकार के मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

सामाजिक व्यवहारों का विकास यद्यपि शैशवावस्था से ही आरंभ हो जाता है परन्तु बाल्यावस्था में, सामाजिक विकास के संरूपों में गुणात्मक तथा मात्रात्मक परिवर्तन तीव्रतर  गति से परिलक्षित होने लगते हैं| पूर्व बाल्यावस्था तथा उत्तर बाल्यावस्था में होने वाले सामाजिक विकास के संरूपों का विवेचन आगे किया जा रहा है|

किशोरावस्था में सामाजिक विकास

क्रो एवं क्रो के अनुसार जब बालक 13 या 14 वर्ष की आयु में प्रवेश करता है। तब उसके प्रति दूसरों के और दूसरों के प्रति उसके कुछ दृष्टिकोण से उनके अनुभवों में एक सामाजिक संबंधों में परिवर्तन होने लगता है। इस परिवर्तन के कारण उसके सामाजिक विकास का स्वरूप निम्नांकित होता है-

  1. बालकों और बालिकाओं में एक दूसरे के प्रति बहुत आकर्षण उत्पन्न होता है। अतः वे सर्वोत्तम वेशभूषा और श्रंगार में अपने को एक दूसरे के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
  2. बालक और बालिका ने दोनों अपने-अपने समूह का निर्माण करते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है, जैसे मनोरंजन, पर्यटन, पिकनिक, नृत्य, संगीत इत्यादि।
  3. कुछ बालक और बालिका है किसी भी समूह के सदस्य नहीं बनते हैं, वह उनसे अलग रहकर अपने या विभिन्न लिंग के व्यक्ति से घनिष्ठता स्थापित कर लेते हैं और उसी के साथ अपना समय व्यतीत करते हैं।
  4. किशोरावस्था में सामाजिक विकास बालकों में अपने समूह के प्रति अत्यधिक भक्ति होती है वह उसके द्वारा स्वीकृत वेशभूषा आचार विचार व्यवहार आदि को अपना आदर्श बनाते हैं।
  5. समूह की सदस्यता के कारण उनमें नेतृत्व, उत्साह, सहानुभूति, सद्भावना आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है।
  6. इस अवस्था में बालक और बालिकाओं का अपने माता पिता से किसी ना किसी बात पर संघर्ष या मतभेद हो जाता है ।
  7. किशोर बालक अपने भावी व्यवसाय का चुनाव करने के लिए सदैव चिंतित रहता है। इस कार्य में उसकी सफलता या असफलता उसके सामाजिक विकास को निश्चित रूप से प्रभावित करती है।
  8. किशोर बालक और बालिकाओं की चिंता या समस्या में उलझे रहते हैं। जैसे- प्रेम विवाह, कक्षा में प्रगति, पारिवारिक जीवन इत्यादि यह समस्याएं उनके विकास की गति को तीव्र या मंद, उचित या अनुचित दिशा प्रदान करती हैं।
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments