कारखाना अधिनियम 1948 के स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रावधान

कारखाना अधिनियम 1948 के स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रावधान – स्वास्थ्यप्रद वातावरण के अभाव में श्रमिकों की कार्यकुशलता धीमी होगी जिसके परिणामस्वरूप औद्योगिक उत्पादन भी धीमी गति से होगा जिससे श्रमिकों तथा नियोक्ता दोनों की क्षति होगी। इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु कारखाना अधिनियम में विभिन्न प्रावधान बनाये गये हैं-

  1. सफाई
  2. बेकार एवं गन्दे पदार्थ हटाने की व्यवस्था
  3. रोशनदान एवं तापमान की व्यवस्था
  4. धूल एवं धुआँ को दूर करने की व्यवस्था
  5. कृत्रिम नमी की व्यवस्था
  6. अत्यधिक भीड़-भाड़
  7. प्रकाश की व्यवस्था
  8. पेय जल
  9. शौचालय एवं मूत्रालय
  10. थूकदान की व्यवस्था

1. सफाई [ धारा 11 ] –

प्रत्येक कारखाने को साफ-सुथरा एवं नालियों की दुर्गन्ध से मुक्त रखना चाहिए। कारखाने की सफाई के लिए विशेष रूप से निम्न व्यवस्था की जानी चाहिए –

  • धूल एवं धुएँ को प्रतिदिन साफ किया जाना चाहिए।
  • प्रत्येक कार्यकक्ष का फर्श सप्ताह में कम से कम एक बार धोकर साफ अवश्य करना चाहिए।
  • यदि किसी निर्माणी प्रक्रिया के कारण कार्यकक्ष का फर्श गीला हो जाता हो या पानी बहता हो तो ऐसे मैले पानी को निकालने के लिए नाली की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए।
  • यदि कार्यकक्ष की सभी दीवारें छतें, रास्ते एवं सीढ़ियाँ पेण्ट या वार्निश की हुई हैं तो धोये जाने योग्य पानी पेण्ट के अतिरिक्त प्रति पाँच वर्ष की अवधि में कम से कम एक बार पुनः पेण्ट या वार्निश की जानी चाहिए तथा 14 माह की अवधि में कम से कम एक बार उनकी पुताई भी अवश्य की जानी चाहिए।

यदि कार्यकक्ष की सभी दीवारें, छतें, रास्ते एवं सीढ़ियाँ धोये जाने योग्य पानी पेण्ट से पुती हुई हैं तो ऐसे स्थानों की तीन वर्ष में कम से कम एक बार पुनः पेण्ट तथा प्रति 6 माह में सफाई की जायेगी। इसी प्रकार सभी दरवाजों, खिड़कियों तथा शटर्स में पेण्ट या वार्निश होने पर 5 वर्ष में पुनः पेण्ट या वार्निश की जायेगी।

यदि कुछ कारणों से उपर्युक्त सफाई की व्यवस्था मालिक द्वारा करना सम्भव नहीं है तो ऐसी अवस्था में राज्य सरकार यदि चाहे तो मालिक को उपर्युक्त सफाई की सभी व्यवस्थाओं से या कुछ व्यवस्थाओं से मुक्त कर सकती है या सफाई के लिए कोई अन्य तरीका सुझा सकती है।

2. बेकार एवं गन्दे पदार्थ हटाने की व्यवस्था [धारा 12] –

यदि किसी निर्माणी प्रक्रिया के कारण कारखाने में बेकार व गन्दे पदार्थ इकट्ठे हो जाते हैं तो उन्हें हटाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। जब बेकार व गन्दे पदार्थ हटाने के लिए अपनायी जाने वाली व्यवस्था की स्वीकृति प्राप्त करने हेतु कोई आवेदन पत्र दिया जाता है और ऐसे आवेदन पत्र पर विचार नहीं किया जाता है तो कारखाने को यह अधिकार है कि वह अपने द्वारा प्रस्तावित व्यवस्था जारी रख सकता है।

3. रोशनदान एवं तापमान की व्यवस्था [धारा 13] –

कारखाने के प्रत्येक कार्यकक्ष में शुद्ध वायु प्रवाह के लिए उपयुक्त रोशनदान एवं श्रमिकों के लिए आरामदायक तथा स्वास्थ्य को हानि से बचाने के लिए उपयुक्त तापमान रखने की व्यवस्था की जानी चाहिए। कार्यकक्ष की दीवारें एवं छतें ऐसे पदार्थ की बनायी जानी चाहिए जो कारखाने में उपयुक्त तापमान बनाये रखें। राज्य सरकार उपयुक्त रोशनदान एवं उपयुक्त तापमान का स्तर निर्धारित कर सकती है तथा निश्चित स्थानों पर तापमापक यन्त्र रखने का भी आदेश जारी कर सकती है।

यदि मुख्य निरीक्षक को यह पता चल जाये कि किसी कारखाने में अत्यधिक ऊँचा तापमान उपयुक्त उपायों को अपनाने से कम किया जा सकता है तो वह नियोक्ता को उन उपायों का पालन करने के लिए लिखित आदेश दे सकता है। ऐसे उपाय निर्दिष्ट तिथि के पूर्व पालन किये जाने चाहिए।

4. धूल एवं धुआँ को दूर करने की व्यवस्था [धारा 14] –

यदि कारखाने में किसी निर्माणी प्रक्रिया के कारण धूल या धुआँ उड़ता है जो कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक एवं दुःखदायी है तो उसे कार्यकक्ष में एकत्र होने या फैलने से रोकने के लिए उपयुक्त व्यवस्था की जानी चाहिए। यदि उसे एकत्र होने या फैलने से रोकने के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता हो तो उसकी भी व्यवस्था की जानी चाहिए। स्थायी आन्तरिक दाहक इन्जन कारखाने में तब तक नहीं चलाया जाना चाहिए जब तक कि उसके धुएँ को निकालने की उपयुक्त व्यवस्था न कर दी गयी हो ।

5. कृत्रिम नमी की व्यवस्था [धारा 15] –

राज्य सरकार ऐसे समस्त कारखानों के लिए नियम बना सकती है जिनमें कृत्रिम नमी का वातावरण रखना आवश्यक हो। ये नियम निम्नलिखित हो सकते हैं.

  • नमी का प्रमाप निर्धारित करना।
  • हवा की कृत्रिम नमी को बढ़ाने के तरीकों का नियमन करना।
  • हवा की कृत्रिम नमी की उपयुक्तता की जाँच के लिए निर्देश देना।
  • कार्यकक्ष में पर्याप्त हवादार एवं शीतल वायु प्रवाह के लिए उपयुक्त साधनों की व्यवस्था करना।
  • कृत्रिम नमी की व्यवस्था करने के लिए पेय जल को ही लिया जायेगा। यदि पेय- जल सुलभ न हो तो शुद्ध किया हुआ जल लिया जायेगा।

यदि कारखाना निरीक्षक को यह ज्ञात हो जाये कि कारखाने में हवा की नमी को बढ़ाने के लिए प्रयुक्त पानी प्रभावकारी ढंग से शुद्ध नहीं किया जाता है तो वह कारखाने के प्रबन्धकों को लिखित आदेश द्वारा वे उपाय सुझा सकता है जो उसकी राय में उपयुक्त हों। उसे यह भी आदेश देने का अधिकार है कि निश्चित तिथि के पूर्व इन उपायों को कार्यान्वित किया जाये।

यह धारा उन कारखानों में लागू होती है जहाँ निर्माण प्रक्रिया की प्रकृति ऐसी हो कि प्राकृतिक वातावरण एवं जलवायु पर उसका प्रभाव पड़ता है और इसलिए वातावरण तथा जलवायु में आवश्यक सुधार करना अनिवार्य प्रतीत हो जैसे सूती वस्त्र एवं सिगरेट बनाने के कारखाने।”

6. अत्यधिक भीड़-भाड़ [धारा 16] –

कारखाने के किसी भी कार्यकक्ष में इतनी भीड-भाड़ नहीं होनी चाहिए जिससे श्रमिकों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचे। कारखाने में भीड़-भाड़ को रोकने के लिए वर्तमान कारखाने में प्रति व्यक्ति 9.9 घनमीटर का अन्तर तथा अधिनियम के प्रवर्तनीय होने के बाद वाले कारखाने में प्रति व्यक्ति 14.2 घनमीटर का अन्तर अवश्य होना चाहिए। उपर्युक्त गणना में कमरे की सतह से 42 मीटर से अधिक ऊँचाई नहीं सम्मिलित की जानी चाहिए। मुख्य निरीक्षक यदि उपयुक्त समझे तो यह आदेश दे सकता है कि किसी भी कार्यकक्ष में अधिक से अधिक किंतने श्रमिक नियुक्त किए जायेंगे।

7. प्रकाश की व्यवस्था [धारा 17] –

कारखाने के प्रत्येक भाग में प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनों प्रकाश की पर्याप्त तथा उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे चिकनी या चमकीली सतहों पर प्रतिबिम्ब के कारण श्रमिक चकाचौंध न हों तथा ऐसी परछायी न पडे जिससे श्रमिकों की आँखों पर जोर पड़े या श्रमिक दुर्घटनाग्रस्त हो जाए। राज्य सरकार किसी भी कारखाने में किसी निर्माणी प्रक्रिया के लिए उपयुक्त प्रकाश की व्यवस्था का प्रमाप निर्धारित कर सकती है।

8. पेय जल [धारा 18] –

प्रत्येक कारखाने में श्रमिकों की दृष्टि से उपयुक्त स्थानों पर शुद्ध पेय जल प्रदान किए जाने की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसे समस्त स्थानों में शुद्ध पेय जल उस भाषा में स्पष्ट शब्दों में लिख देना चाहिए जिसे अधिकतर श्रमिक समझ सकें। ऐसा स्थान स्नानागार, मूत्रालय व शौचालय से कम से कम 6 मीटर दूर स्थित होना चाहिए। ऐसे कारखाने में जहाँ कम से कम 250 श्रमिक कार्यरत हों वहाँ गर्मी की ऋतु में ठण्डे पेय जल की भी व्यवस्था होनी चहिए।

9. शौचालय एवं मूत्रालय [धारा 19] –

प्रत्येक कारखाने में महिला एवं पुरुष श्रमिक के लिए अलग-अलग और चारों ओर से घिरे हुए शौचालयों एवं मूत्रालयों की पर्याप्त व्यवस्था होनी चहिए। ये स्थान पर्याप्त प्रकाशित, हवादार, साफ तथा स्वास्थ्यकर दशाओं में होने चाहिए। ऐसे कारखाने जहाँ पर 250 से अधिक श्रमिक कार्यरत हों सभी शौचालय एवं मूत्रालय निर्धारित स्वास्थ्यप्रद प्रमाप के होने चाहिए तथा 90 सेंटीमीटर ऊँचाई तक उनके अन्दर की दीवारें चिकनी टाइल्स से बनी होनी चाहिए जिससे वे चिकनी व साफ रह सकें। उनकी सप्ताह में एक बार कीटाणुनाशक दवाइयों से अवश्य धुलाई होनी चाहिए। राज्य सरकार किसी भी कारखाने के स्त्री व पुरुषों की संख्या के अनुपात में कारखाने के लिए शौचालयों एवं मूत्रालयों की संख्या निर्धारित कर सकती है।

10. थूकदान की व्यवस्था [ धारा 20] –

प्रत्येक कारखाने में उपयुक्त स्थानों पर थूकदानों की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए, उन्हें साफ एवं स्वच्छ भी रखना चाहिए। किसी भी श्रमिक को थूकदान के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर नहीं थूकना चाहिए। यदि कोई श्रमिक उपर्युक्त नियम का उल्लंघन करता है तो उसे 5 रु. तक के लिए दण्डित किया जा सकता है।

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