कारखाना अधिनियम 1948 के सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान

कारखाना अधिनियम 1948 में दिए गये सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान निरपेक्ष एवं वाध्यकारी प्रकृति के है तथा प्रत्येक कारखाने का परिभोगी इनका पालन करेगा। यह निम्न है –

  1. यन्त्रों की घेरावन्दी
  2. गतिमान यंत्रों पर या उसके निकट कार्य करना
  3. नवयुवकों की खतरनाक यंत्रों पर नियुक्ति
  4. शक्ति से सम्बन्ध विच्छेदक उपकरण एवं अन्य साधन
  5. स्वचालित यन्त्र
  6. नये यंत्रों को ढककर रखना
  7. कपास निकासक यंत्रों के पास महिलाओं और बच्चों की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध
  8. माल एवं मनुष्यों को ऊपर-नीचे ले जाने वाले यन्त्र
  9. वजन उठाने वाले यंत्र, जंजीरें, रस्सियाँ एवं उपकरण
  10. घूमने वाली मशीनेंदबाव यंत्र
  11. फर्श, सीढ़ियाँ व पहुँच के अन्य साधन
  12. गड्ढे, हौज, फर्श के सूराख आदि
  13. अत्यधिक बोझ
  14. आँखों की रक्षा
  15. हानिकारक धुएँ से बचाव के उपाय
  16. विस्फोटक या प्रज्वलन
  17. शील धूल, गैस आदि के बचाव के उपाय
  18. दोषयुक्त भागों के विवरण माँगने या स्थायित्व के परीक्षण का अधिकार
  19. आग लगने की दशा में सावधानियाँ
  20. भवन तथा यंत्रों की सुरक्षानियम बनाने का अधिकार

1. यन्त्रों की घेरावन्दी [धारा 21] –

यंत्रों की घेराबन्दी का आशय उन्हें इस प्रकार से सुरक्षित रखना है जिससे कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे तथा उन्हें दुर्घटनाग्रस्त न होना पड़े। प्रत्येक कारखाने में यंत्रों के खतरनाक भाग को स्थायी निर्माण के बचाव द्वारा उचित रूप से घेरे के अन्दर सुरक्षित स्थिति में रखा जायगा जिससे उसके गतिमान होने पर श्रमिकों को किसी प्रकार की क्षति की आशंका न रहे। इस धारा के अन्तर्गत निम्नलिखित यंत्रों की घेराबन्दी के सन्दर्भ में व्यवस्था की

किसी भी इन्जन मोटर या अन्य शक्ति उत्पादक उपकरण का गतिमान भाग गई है तथा इनसे जुड़ा हुआ चक्केदार पहिया जल चक्र जल चक्की को चलाने वाली जल धारा का मुख्य नाला;
खराब मशीन के कुण्डे या स्टॉक बार का वह भाग जो यंत्र के सिरे को थामने वाले भाग से बाहर की ओर निकला हो। यदि कुछ यंत्र इस प्रकार के हैं जो काम करने में उतने ही सुरक्षित रहते हैं जितने कि घेराबन्दी करने पर सुरक्षित रहते हैं तो ऐसे यन्त्रों की घेराबन्दी करना अनिवार्य नहीं है। जैसे इलेक्ट्रिक जनरेटर, ट्रान्समीटर आदि का कोई खतरनाक भाग। राज्य सरकार यदि आवश्यक समझे तो विशेष शर्तों के अन्तर्गत यंत्र के किसी भाग की घेराबन्दी से मालिक को मुक्त कर सकती है या उसके लिए ऐसे नियम बना सकती है जो श्रमिकों की सुरक्षा के लिए आवश्यक हों।

2. गतिमान यंत्रों पर या उसके निकट कार्य करना [ धारा 22 ] –

जब किसी कारखाने में यंत्र की चालू दशा में इसके किसी भाग की जाँच करना, तेल देना या पट्टे उतारना चढ़ाना हो, तो यह कार्य विशेष रूप से प्रशिक्षित, प्रौढ़ पुरुष श्रमिक द्वारा (जो चुस्त कपड़े पहने हो) ही किया जायेगा। ऐसे पुरुष श्रमिक का नाम सम्बन्धित रजिस्टर में लिखा होना चाहिए। राज्य सरकार राजपत्र में घोषणा करके किसी भी कारखाने में यंत्रों के निर्दिष्ट भागों को इनके गतिमान अवस्था में किसी व्यक्ति द्वारा साफ करने, तेल देने या ठीक करने पर रोक लगा सकती है।

3. नवयुवकों की खतरनाक यंत्रों पर नियुक्ति [धारा 23] –

कोई भी नवयुवक किसी खतरनाक मशीन पर तभी नियुक्त किया जा सकता है जबकि –

  • उसे खतरों की जानकारी दे दी गयी हो तथा उन खतरों से बचने के उपाय भी सुझा दिये गये हो।
  • उसे ऐसे यंत्र पर कार्य करने का पर्याप्त प्रशिक्षण दे दिया गया हो, या उसने किसी ऐसे व्यक्ति से निरीक्षण में कार्य किया हो जिसे ऐसे खतरनाक यंत्र का पर्याप्त ज्ञान एवं अनुभव हो।

4. शक्ति से सम्बन्ध विच्छेदक उपकरण एवं अन्य साधन [धारा 24] –

प्रत्येक कारखाने में चालक पट्टों को एक चरखी से दूसरी चरखी पर सरकाने के लिए उपयुक्त शक्ति से सम्बन्ध विच्छेदक उपकरण की व्यवस्था होनी चाहिए और इसका कुशल ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए। चालक पट्टों का यदि उपयोग न हो रहा हो तो उन्हें गतिमान धुरी से हटा लेना। कारखाने के प्रत्येक कार्यकक्ष में आकस्मिक घटना की स्थिति में यंत्र का शक्ति से सम्बन्ध विच्छेद करने के लिए उपयुक्त साधनों का प्रबन्ध होना चाहिए।

यदि कोई कारखाना इस अधिनियम के लागू होने के पहले से ही चल रहा हो तो इस अधिनियम का यह प्रावधान कारखाने के केवल उन्हीं कार्यकक्षों में लागू होगा जहाँ पर शक्ति के रूप में बिजली का प्रयोग किया जाता हो। यदि कारखाने में कोई ऐसे शक्ति से चालित यंत्र लगे हुए हों जिनमें शक्ति की थोड़ी सी असावधानी होने पर उनके चालू होने की सम्भावना हो तो ऐसे कारखानों में शक्ति को सुरक्षित रूप से बन्द रखने की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे असावधानी होने पर भी यंत्र का कोई भाग चालू न हो सके।

5. स्वचालित यन्त्र [धारा 25] –

यदि कारखाने कुछ ऐसी स्वचालित मशीनें लगी हुई हों जिनके चलने से उनके कुछ भाग या उन पर चल रही वस्तुएँ बहुत आगे पीछे या दायें बायें निकलती रहती हों, तथा उन मशीनों के बीच से ही आने जाने का रास्ता पड़ता हो, तो ऐसी दशा में उस मशीन का कोई भाग या चलने वाली वस्तु जिस सीमा तक पहुँचती हो, उस सीमा से अन्य मशीन के बीच कम से कम 45 सेमी. दूर का स्थान रखना आवश्यक है।

6. नये यंत्रों को ढककर रखना [धारा 26] –

कारखाने के उन समस्त यंत्रों को जो शक्ति द्वारा संचालित होते हैं इस प्रकार ढक्कर अथवा अन्य किसी प्रभावकारी ढंग से सुरक्षित रखना चाहिए जिससे खतरे से बचाव हो सके।

7. कपास निकासक यंत्रों के पास महिलाओं और बच्चों की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध [ धारा 27] –

कपास निकासक यंत्र का एक सिरा जहाँ से रुई निकलती है इतना खतरनाक तथा खुला हुआ रहता है कि जरा सी असावधानी पर कोई भी खतरा उत्पन्न हो सकता है अतः ऐसे स्थानों पर किसी भी महिला या बालक को श्रमिक पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।

8. माल एवं मनुष्यों को ऊपर-नीचे ले जाने वाले यन्त्र [धारा 28] –

माल एवं मनुष्यों को ऊपर-नीचे ले जाने वाले यंत्र तंत्रिक दृष्टि से अच्छी प्रकार के सुदृढ़ पदार्थ के व उपयुक्त शक्ति के बने होने चाहिए। किसी योग्य व्यक्ति द्वारा हर छ: महीने में कम से कम एक बार उसकी पूर्ण रूप से जाँच होनी चाहिए तथा इन्हें सुरक्षित रूप से रखा जाना चाहिए। ऐसी प्रत्येक जाँच के विवरण का रिकार्ड रखने हेतु एक रजिस्टर की भी व्यवस्था होनी चाहिए।

9. वजन उठाने वाले यंत्र, जंजीरें, रस्सियाँ एवं उपकरण [धारा 29] –

वजन उठाने वाले यंत्र, जंजीरें, रस्सियाँ एवं उपकरण तांत्रिक दृष्टि से अच्छी प्रकार के सुदृढ़ पदार्थ के व उपयुक्त शक्ति के बने होने चाहिए। ऐसे यंत्र खराबियों से भी मुक्त होने चाहिए, तथा इनकी किसी योग्य व्यक्ति द्वारा 12 महीने की अवधि में कम से कम एक बार पूर्ण जाँच होनी चाहिए। ऐसी प्रत्येक जाँच के विवरण का रिकार्ड रखने हेतु एक रजिस्टर की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। इन यंत्रों पर ले जाये जाने वाले वजन की सीमा इनमें स्पष्ट रूप से अंकित कर देनी चाहिए। इस सीमा से ज्यादा वजन इनमें नहीं लाया जाना चाहिए। वजन की अधिकतम सीमा जहाँ दर्ज की जाये उसकी पहचान के लिए कोई उपयुक्त निशान भी लगा देना चाहिए।

10. घूमने वाली मशीनें [धारा 30] –

कारखाने की प्रत्येक कार्यशाला में (जहाँ पीसने की क्रिया की जाती हो) प्रयोग की जाने वाली प्रत्येक मशीन में या उसके समीप स्थायी रूप से एक सूचना लगा दी जायेगी, जिसमें अधिकतम सुरक्षित गति का स्पष्ट उल्लेख होगा। इस सूचना में यह भी स्पष्ट कर दिया जायेगा कि, अधिकतम सुरक्षित कार्यशील गति से अधिक गति नहीं बढ़ायी जा सकेगी।

11. दबाव यंत्र [धारा 31] –

यदि किसी कारखाने में किसी यंत्र का कोई भाग किसी निर्माणी क्रिया में उपयोग करते समय वायुमण्डल में दबाव से अधिक दबाव पर चलता है तो वहाँ इस बात के प्रभावकारी उपाय कर लिये जाने चाहिए कि सुरक्षित कार्यशील दबाव सीमा पार न हो।

12. फर्श, सीढ़ियाँ व पहुँच के अन्य साधन [धारा 32] –

प्रत्येक कारखाने के सभी फर्श, सीढ़ियाँ, रास्ते तथा गलियारे मजबूत बने होने चाहिए तथा उनको ठीक प्रकार से सुरक्षित रखना चाहिए। जहाँ आवश्यक हो वहाँ सुरक्षा के लिए सीढ़ियों या गलियारे पर सहारे के लिए रैलिंग या सरियों का प्रबन्ध कर देना चाहिए।

13. गड्ढे, हौज, फर्श के सूराख आदि [धारा 33] –

प्रत्येक कारखाने में गड्ढे, हौज, फर्श के सुराख आदि जो खतरे के कारण हैं उन्हें या तो सुरक्षित रूप से ढक दिया जाना चाहिए या उसकी घेराबन्दी कर देनी चाहिए।

14. अत्यधिक बोझ [धारा 34] –

किसी भी कारखाने में किसी ऐसे श्रमिक को इंतना भार उठाने ले जाने अथवा एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखने के लिए नियुक्त नहीं किया जायेगा जिससे उसे हानि पहुँचने की आशंका हो। राज्य सरकार यदि आवश्यक समझे तो वह किसी भी वयस्क पुरुष, महिला, युवक या बालक श्रमिक के लिए भार उठाने की अधिकतम सीमा निर्धारित कर सकती है।

15. आँखों की रक्षा [धारा 35] –

यदि किसी कारखाने में किसी निर्माणी क्रिया से कुछ चिनगारियाँ या छोटे-छोटे कण उड़ते हैं तथा जिनसे आँखों को क्षति पहुँचने की आशंका हो तो राज्य सरकार नियम बनाकर यह अनिवार्य कर सकती है कि ऐसी निर्माणी क्रिया के समीप नियुक्त श्रमिकों के लिए उपयुक्त पदों तथा धूप के चश्मों की व्यवस्था की जाये। चश्मे श्रमिकों की आँखों के अनुकूल होने चाहिए अन्यथा निर्माता उत्तरदायी होगा।

16. हानिकारक धुएँ से बचाव के उपाय [धारा 36] –

किसी भी कारखाने में कोई भी व्यक्ति किसी भी चेम्बर, टैक पाइप या किसी अन्य घिरी हुई जगह में, जहाँ हानिप्रद धुआ इस सीमा तक एकत्रित हो जाता है कि वह उसमें घिर जाये, और उसे हानि पहुँचने की सम्भावना हो, प्रवेश नहीं करेगा, और न ही उसे प्रवेश करने की अनुमति दी जायेगी। परन्तु यदि ऐसे स्थानों मे धुआँ निकलने की उपयुक्त व्यवस्था है तो किसी भी श्रमिक का प्रवेश निषेध नहीं किया जायेगा।

17. विस्फोटक या प्रज्वलनशील धूल, गैस आदि के बचाव के उपाय [धारा 37] –

यदि किसी कारखाने में किसी निर्माणी क्रिया के कारण इतनी अधिक मात्रा में गैस, धुआँ या कोई भाप उत्पन्न हो जाती है जिससे अग्नि प्रज्वलित होने की आशंका हो तो इसे रोकने के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिए –

  • (i) निर्माणी क्रिया में प्रयोग किये जाने वाले यन्त्रों एवं मशीनों को चारों तरफ से घेर देना चाहिए।
  • (ii) ऐसी धूल, गैस, धुआँ या भाप को हटा देना चाहिए या उसे रोक देना चाहिए।
  • (iii) प्रज्वलन के सभी स्रोतों को घेर देना चाहिए या उन्हें अलग कर देना चाहिए। किसी भी संयंत्र या टंकी जिसमें विस्फोटक या प्रज्वलनशील गैस या भाप आदि भरी हो, की वैल्डिंग, जोड़ व टाँके लगाने या काटने की क्रिया तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि उसमें उत्पन्न होने वाली गैस या भाप को हटाने के प्रभावकारी उपाय न अपना लिये गये हों।

18. आग लगने की दशा में सावधानियाँ [धारा 38] –

प्रत्येक कारखाने में भीतर या बाहर आग लगने तथा उसके फैलने की दशा में बचाव के समस्त व्यावहारिक उपाय किये जाने चाहिए तथा निम्नलिखित बातों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए-

  • आग लगने की दशा में सभी व्यक्तियों के बचने के सुरक्षित साधन तथा
  • आग बुझाने के सभी आवश्यक उपकरण तथा सुविधाएँ।
  • आग लगने की दशा में सभी श्रमिकों को बचाव के साधनों की भली-भाँति जानकारी होनी चाहिए तथा आग लगने की दशा में पालन की जाने वाली सामान्य बातों के सम्बन्ध में उन्हें पूर्णतः प्रशिक्षित करने के लिए प्रभावकारी उपाय किए जाने चाहिए।

19. दोषयुक्त भागों के विवरण माँगने या स्थायित्व के परीक्षण का अधिकार [धारा 39] –

यदि निरीक्षक को यह ज्ञात हो जाये कि कारखाने में कोई भवन या भवन का कोई भाग या रास्ते का कोई भाग या मशीनरी अथवा प्लाण्ट ऐसी स्थिति में है जो मानव जीवन को खतरा पहुँचा सकता है तो वह कारखाने के स्वामी या प्रबन्धक दोनों को यह लिखित आदेश दे सकता है कि वह निश्चित तिथि के पूर्व दोषयुक्त भागों की सुरक्षा की व्यवस्था कर दे।

20. भवन तथा यंत्रों की सुरक्षा [धारा 40] –

यदि कारखाने में कोई दोषयुक्त भाग है जो श्रमिक के जीवन को या उसकी सुरक्षा को खतरा पहुँचा सकता है तो निरीक्षक को यह अधिकार है कि वह कारखाने के स्वामी को या प्रबन्धक को या दोनों को लिखित आदेश देकर ऐसे दोषयुक्त स्थानों पर श्रमिकों को जाने से तब तक रुकवा सकता है जब तक कि ऐसे दोषयुक्त भागों को सुरक्षित न कर दिया जाय।

21. नियम बनाने का अधिकार [ धारा 41] –

कारखाने में नियुक्त श्रमिकों की सुरक्षा की व्यवस्था के लिए यदि कोई नियम राज्य सरकार आवश्यक समझे तो उन्हें बना सकती है तथा अधिनियम के अधीन प्रावधान भी बना सकती है।

Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments