कारखाना अधिनियम 1948 के श्रम कल्याण सम्बन्धी प्रावधान

श्रम कल्याण से आशय उन समस्त क्रियाकलापों से होता है जिनके द्वारा श्रमिकों का जीवन सुखमय हो जाता है और जिनसे उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है। श्रम कल्याण शब्द आवश्यक रूप से लचीला है। इसका अर्थ भी एक देश तथा दूसरे देश में विभिन्न सामाजिक प्रथाओं, शैक्षिक विकास और औद्योगीकरण के स्तर के अनुसार भिन्न होता है। इसके अन्तर्गत वेतन के अतिरिक्त उन सभी सुविधाओं को शामिल किया जाता है। जो श्रमिकों की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक प्रगति में सहायक होती हैं।

सरकार ने श्रमिकों के कल्याण सम्बन्धी व्यवस्था कारखाना अधिनियम के अधीन की है जो कि निम्नलिखित प्रकार हैं-

  1. कपड़े धोने की सुविधा
  2. कपड़े रखने एवं सुखाने की सुविधा
  3. बैठने की सुविधा
  4. प्राथमिक उपचार के उपकरण
  5. जलपान गृह
  6. विश्राम कक्ष,
  7. आराम कक्ष एवं भोजन कक्ष की व्यवस्थाएँ
  8. शिशु गृहों की व्यवस्था
  9. श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति

1. कपड़े धोने की सुविधा [धारा 42] –

प्रत्येक कारखाने में श्रमिकों के लिए कपड़े धोने की पर्याप्त सुविधाएँ होनी चाहिए, तथा उन्हें स्थायी रूप से कायम रखना चाहिए। ये सुविधाएँ पुरुष तथा महिला श्रमिकों के लिए अलग- अलग तथा पर्देदार होनी चाहिए। ऐसे स्थानों को साफ तथा स्वच्छ भी रखा जाना चाहिए। राज्य सरकार कपड़े धोने हेतु पर्याप्त एवं उचित सुविधाओं के सम्बन्ध में मानक निर्धारित कर सकती है।

2. कपड़े रखने एवं सुखाने की सुविधा [धारा 43] –

प्रत्येक कारखाने में गीले कपड़े सुखाने के लिए एवं कार्य करते समय न पहने जाने वाले कपड़ों को सुरक्षित स्थान पर रखने के लिए उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।

3. बैठने की सुविधा [धारा 44] –

प्रत्येक कारखाने में ऐसे श्रमिकों के लिए जिन्हें खड़े होकर कार्य करना पड़ता है बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे उन्हें जब अवसर मिले, उनका लाभ उठा सकें। यदि श्रमिक बैठकर अधिक सुविधा से कार्य कर सकता है तो निरीक्षक कारखाना प्रबन्धक को लिखित आदेश देकर निश्चित तिथि के पूर्व ऐसी सुविधा उपलब्ध कराने की माँग कर सकता है। राज्य सरकार यदि चाहे तो वह किसी भी कारखाने को उपर्युक्त प्रावधानों से मुक्त कर सकती है।

4. प्राथमिक उपचार के उपकरण [धारा 45] –

प्रत्येक कारखाने के कार्यशील घण्टों में प्राथमिक उपचार के डिब्बे या अलमारियों की व्यवस्था की जानी चाहिए। कारखाने में नियुक्त 150 श्रमिकों पर कम से कम एक प्राथमिक उपचार डिब्बा होना चाहिए। प्रत्येक प्राथमिक उपचार बॉक्स ऐसे व्यक्ति के नियंत्रण में होना चाहिए जो प्राथमिक उपचार कार्य में दक्ष हो। ऐसा व्यक्ति चिकित्सा में राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाण-पत्र रखता हो तथा कारखाने के कार्यशील घण्टों में उपस्थित रहे। प्रत्येक ऐसे कारखाने में जहाँ 500 या 500 से अधिक श्रमिक कार्यरत हों वहाँ एक सुसज्जित उपचार कक्ष होना चाहिए। इस उपचार कक्ष में सभी निर्धारित की गयी वस्तुएँ होनी चाहिए। ये सुविधाएँ कारखाने के कार्यशील घण्टों में हमेशा उपलब्ध रहनी चाहिए।

5. जलपान गृह [धारा 46 ] –

राज्य सरकार ऐसे कारखानों में श्रमिक के हितार्थ मालिकों से जलपान गृह की व्यवस्था कराने के लिए नियम बना सकती है जहाँ पर 250 या 250 से अधिक श्रमिक कार्यरत हों। इन नियमों में निम्न बातें हो सकती हैं-

  • (A) दिनांक, जिससे जलपान गृह की व्यवस्था की जायेगी।
  • (B) बनावट, जगह, फर्नीचर एवं अन्य साधनों के लिए प्रमाण।
  • (C) उसमें दिया जाने वाला भोजन तथा उसकी कीमत।
  • (D) जलपान गृह के लिए प्रबन्ध समिति एवं उसमें श्रमिकों का प्रतिनिधित्व।
  • (E) जलपान गृह के चालू खर्चों को भोजन सामग्री की कीमतों के निर्धारण में नहीं लिया जायेगा। चालू खर्च मालिक द्वारा वहन किये जायेंगे।
  • (F) मुख्य निरीक्षक को भोजन सामग्री के बारे में नियम बनाने के अधिकार देना आदि।

6. विश्राम कक्ष, आराम कक्ष एवं भोजन कक्ष की व्यवस्थाएँ [धारा 47] –

प्रत्येक कारखाने में जहाँ 150 या इससे भी अधिक श्रमिक कार्यरत हों श्रमिकों के हितार्थ पर्याप्त एवं उपयुक्त विश्राम कक्ष, आराम कक्ष एवं भोजन कक्ष जिसमें पेयजल उपलब्ध हो की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि किसी कारखाने में धारा 46 के अधीन जलपान गृह की व्यवस्था की गयी है तो भोजन कक्ष की व्यवस्था करना आवश्यक नहीं है। यदि किसी कारखाने में भोजन कक्ष की व्यवस्था की गयी है तो कोई भी श्रमिक कार्यकक्ष में भोजन नहीं करेगा। ऐसे विश्राम कक्ष, आराम कक्ष एवं भोजन कक्षों में प्रकाश एवं हवा की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

7. शिशु गृहों की व्यवस्था [ धारा 48] –

ऐसे प्रत्येक कारखाने में जहाँ 30 या 30 से अधिक महिला श्रमिक कार्यरत हैं, उनके ऐसे बच्चों के लिए जिनकी उम्र 6 वर्ष से कम है पर्याप्त एवं उपयुक्त शिशु गृहों की व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसे शिशु गृहों में पर्याप्त जगह पर्याप्त प्रकाश एवं शुद्ध वायु की व्यवस्था होनी चाहिए। इन्हें साफ एवं स्वच्छ भी रखा जाना चाहिए। इनकी देख-रेख ऐसी प्रशिक्षित महिलाओं द्वारा की जानी चाहिए जो शिशुओं की देखभाल के कार्य में दक्ष हों। इन शिशु गृहों में शिशुओं के लिए उनके कपड़े धोने एवं बदलने की सुविधाएँ उनके लिए निःशुल्क दूध व नाश्ते की व्यवस्थाएँ तथा समय-समय पर दूध पिलाने के लिए इनकी माताओं के पास पहुँचाने की सुविधाएँ होनी चाहिए। राज्य सरकार निम्नलिखित नियम बना सकती है :

निर्माण, भवन, फर्नीचर एवं कक्ष का अन्य उपकरणों के बारे में स्थान एवं मानकों का निर्धारण करना ।
उन कारखानों के सम्बन्ध में बच्चों की देखभाल सम्बन्धी प्रावधान करना जिन पर यह धारा लागू होती है।
कारखाने में बच्चों हेतु मुफ्त दूध या नाश्ता या दोनों की व्यवस्था करना। राज्य सरकार यह व्यवस्था कर सकती है जिसमें यह आवश्यक होगा कि बच्चों की माताएँ आवश्यक अन्तराल पर दूध पिला सके।

8. श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति [धारा 49] –

ऐसे प्रत्येक कारखाने में जहाँ 500 या 500 से अधिक श्रमिक कार्यरत हों, कारखाने का स्वामी निर्धारित संख्या में श्रम कल्याण अधिकारियों की नियुक्ति कर सकता है। ऐसे अधिकारी की योग्यताएँ, कर्तव्य तथा नौकरी की शर्तें राज्य सरकार निर्धारित कर सकती है।

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