कारखाने में कार्यशील घंटों का अपना अलग ही महत्व है। किसी भी श्रमिक से (चाहे वह मानसिक श्रम करने वाला हो या शारीरिक) लगातार अधिक समय तक कार्य लेने से उसकी कार्य कुशलता में ही केवल कमी नहीं आती बल्कि उसका स्वास्थ्य भी निरन्तर गिरता जाता है जिससे वह अधिक समय तक कार्य करने योग्य नहीं रहता है। अतः श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि से लिए यह आवश्यक है कि उनके कार्यशील घंटे कम हों तथा कार्यशील घंटों के बीच में उन्हें विश्राम- मध्यान्तर भी मिले ताकि वे पुनः उतनी ही कुशलता से कार्य कर सकें जितनी कि विश्राम मध्यान्तर के पूर्व करने में समर्थ थे। कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत प्रौढ़ श्रमिकों के कार्यशील घंटों के सम्बन्ध में नियम बनाये गये हैं जो निम्नलिखित हैं
1. साप्ताहिक घंटे [धारा 51]
प्रत्येक कारखाने में किसी भी प्रौढ़ श्रमिक से सप्ताह में 48 घंटे से अधिक कार्य नहीं लिया जा सकता है तथा कारखाने का प्रबन्धक किसी भी श्रमिक को वैधानिक रूप से अधिसमय में कार्य करने के लिए तब तक बाध्य नहीं कर सकता है जब तक कि उसने राज्य सरकार या मुख्य निरीक्षक से अनुमति न ले ली हो। यदि कारखाने का प्रबन्धक बिना अनुमति के ऐसा कार्य करता है तो उसे दंडित किया जा सकता है । अतः श्रमिकों के कार्य शील घंटों में पारस्परिक ठहराव द्वारा भी कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
2. साप्ताहिक अवकाश [धारा 52]
प्रत्येक प्रौढ श्रमिक सप्ताह के प्रथम दिन अवकाश प्राप्त करने का अधिकारी है अतः किसी भी प्रौढ श्रमिक से सप्ताह के प्रथम दिन जो “रविवार” है न तो कारखाने में कार्य करने के लिए कहा जायेगा और न ही उसे कार्य करने की अनुमति ही प्रदान की जायेगी । यदि प्रबन्धक आवश्यक समझे तो रविवार के लिए उस दिन के तुरन्त तीन दिन पूर्व एक पूर्ण दिवस का अवकाश या इस दिन के तुरन्त तीन दिन बाद एक पूर्ण दिवस का ‘अवकाश प्रतिस्थापित कर सकता है।
परन्तु इसकी सूचना स्थानापन्न दिन के पूर्व मुख्य निरीक्षक को भेज देनी चाहिए। ऐसी सूचना कारखाने के मुख्य द्वार में भी लगा देनी चाहिए। परन्तु ऐसा कोई प्रतिस्थापन नहीं हो सकेगा जिससे श्रमिकों को एक पूर्ण दिवस का अवकाश मिले बिना निरन्तर 10 दिन से अधिक कार्य करना पड़े।
3. क्षतिपूरक अवकाश [धारा 53]
यदि कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत किसी आदेश के जारी होने के परिणामस्वरूप उसमें कार्य करने वाला कर्मचारी साप्ताहिक अवकाश से वंचित रहा है तो ऐसी दशा में उसे उसी माह में (जिसमें अवकाश मिलना था) अथवा उस माह के पश्चात् तुरन्त दो माह के अन्दर उतने ही क्षतिपूरक अवकाश प्राप्त करने का अधिकार है जितने अवकाशों से वह वंचित रहा है।
4. दैनिक कार्यशील घंटे [धारा 54]
साप्ताहिक घंटों को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रौढ़ श्रमिक से किसी भी दिन 9 घंटे से अधिक कार्य नहीं लिया जा सकता है तथा न उसे अधिक कार्य करने की अनुमति ही दी जा सकती है। पाली के परिवर्तन की दशा में मुख्य निरीक्षक की पूर्व लिखित लेकर ही दैनिक कार्यशील घंटों में वृद्धि की जा सकती है।


5. विश्राम मध्यान्तर [धारा 55]
कारखाने में कार्यरत श्रमिकों से लगातार 5 घंटे कार्य लेने के बाद, उन्हें कम से कम आधा घंटे का विश्राम मध्यान्तर देना आवश्यक है। राज्य सरकार अथवा मुख्य निरीक्षक एक लिखित आदेश द्वारा किसी भी कारखाने को उपर्युक्त प्रावधानों से मुक्त कर सकते हैं परन्तु किसी भी दशा में विश्राम मध्यान्तर दिये बिना किसी भी श्रमिक से लगातार 6 घंटे से अधिक कार्य नहीं लिया जा सकता है।
6. कार्यशील घंटों का विस्तार [धारा 56]
कारखाने के किसी भी प्रौढ़ श्रमिक से दैनिक कार्यशील घंटों का विश्राम मध्यान्तर सहित 10½ घंटे से अधिक विस्तार नहीं किया जा सकता है किन्तु यदि मुख्य निरीक्षक आवश्यक समझे तो कार्यशील घंटों का विस्तार 12 घंटे तक कर सकता है।
7. रात्रि पालियाँ [धारा 57]
यदि किसी भी कारखाने में कोई श्रमिक किसी ऐसी पाली में कार्य करता है जो मध्य रात्रि के बाद तक चलती हैं तो उसका साप्ताहिक या क्षतिपूरक अवकाश 24 घंटे का उस समय से माना जायेगा, जबसे उसकी पाली समाप्त होगी तथा आगामी दिन का तात्पर्य 24 घंटे की उस अवधि से होगा जो उस समय से प्रारम्भ हो जबकि पाली समाप्त होती है तथा अर्द्धरात्रि के कार्यशील घंटे पिछले दिन में गिने जायेंगे।
8. एक के बाद दूसरी पाली में काम लेने या करने पर प्रतिबन्ध [धारा 58]
किसी भी कारखाने में किसी भी श्रमिक से एक पाली में काम लेने के बाद तुरन्त उसी दिन दूसरी पाली में काम नहीं लिया जा सकता है। राज्य सरकार अथवा मुख्य निरीक्षक यदि चाहें तो किसी भी कारखाने को इस धारा के प्रावधानों से मुक्त कर सकते हैं।


9. अधिसमय के लिए अतिरिक्त मजदूरी [धारा 59]
यदि कोई श्रमिक किसी कारखाने में प्रतिदिन 9 घंटे से अधिक अथवा सप्ताह में 48 घंटे से अधिक कार्य करता है तो उसे अधिक समय के लिए अतिरिक्त मजदूरी पाने का अधिकार है। अतिरिक्त मजदूरी प्रायः सामान्य मजदूरी से दुगनी भुगतान की जायेगी। यदि किसी कारखाने में मजदूरी का भुगतान कार्यानुसार किया जाता हो तो राज्य सरकार सम्बन्धित नियोक्ता और श्रमिकों के प्रतिनिधियों से परामर्श लेकर समयानुसार मजदूरी की दर निश्चित कर सकती है।
निश्चित की हुई मजदूरी की दर श्रमिकों द्वारा अर्जित औसत मजदूरी की दरों के बराबर होगी। राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी की दर ही श्रमिकों की साधारण मजदूरी की दर मानी जायेगी। साधारण मजदूरी की दर का आशय मूल मजदूरी तथा ऐसे भत्तों से है जिनमें श्रमिकों को मिलने वाले उस लाभ का नकद मूल्य भी शामिल है जो खाद्यान्न एवं वस्तुएँ उन्हें रियायती मूल्य पर मिलते हैं किन्तु इसमें बोनस भत्ते तथा अधिक समय की मजदूरी को सम्मिलित नहीं किया जायेगा।
10. दोहरे रोजगार पर प्रतिबन्ध [धारा 60]
किसी ऐसे वयस्क श्रमिक को किसी भी कारखाने में कार्य करने की अनुमति नहीं दी जायेगी, जो उसी दिन किसी अन्य कारखाने में कार्य कर चुका हो । परन्तु यदि राज्य सरकार उचित समझे तो किसी भी कारखाने को इस धारा के प्रावधानों से मुक्त कर सकती है।
11. वयस्क श्रमिकों के कार्य अवधियों की सूचना [धारा 61]
प्रत्येक कारखाने में वयस्क श्रमिकों के कार्य की अवधियों की सूचना स्पष्ट रूप से लगायी जानी चाहिए। ऐसी सूचना में इस बात का भी उल्लेख होना चाहिए कि प्रत्येक दिन वयस्क श्रमिकों को किन-किन अवधियों में कार्य करना है। धारा 108 के अनुसार ऐसी सूचना अंग्रेजी तथा ऐसी भाषा में होनी चाहिए जिसे कारखाने के अधिकांश श्रमिक पढ़ एवं समझ सकें। ऐसी सूचना कारखाने के प्रवेश द्वार में लगायी जानी चाहिए तथा इसे साफ एवं स्वच्छ भी रखा जाना चाहिए।
- धारा 61 (2) के अनुसार उपर्युक्त सूचना में बताई गयी कार्य अवधियाँ पहले से ही निर्धारित कर ली जानी चाहिए तथा कार्य अवधियों का निर्धारण करते समय धारा 51, 52, 54, 55, 56 तथा 58 का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए।
- धारा 61 (3) के अनुसार यदि किसी कारखाने में समस्त वयस्क श्रमिकों को एक ही अवधि में कार्य करना पड़ता है, तो कारखाने का प्रबन्धक ऐसे श्रमिकों के लिए सामान्यतया उनकी कार्य अवधियों को निश्चित करेगा।”
- धारा 61 (4) के अनुसार जहाँ पर श्रमिकों को एक ही अवधियों में कार्य नहीं करना पड़ता है, तो कारखाने का प्रबन्धक उन्हें कार्य की प्रकृति एवं पालियों के अनुसार समूहों में विभक्त कर देगा।
- धारा 61 (5) के अनुसार प्रत्येक ऐसे समूह के लिए जिसे पालियों की व्यवस्था के आधार पर कार्य नहीं करना पडता है, कारखाने का प्रबन्धक उन अवधियों को निश्चित करेगा, जिनमें वे कार्य करेंगे।
- धारा 61 (6) के अनुसार यदि समूह पालियों की व्यवस्था के अनुसार कार्य करता है और समूह को पालियों के पूर्व निर्धारित आवधिक परिवर्तनों के अधीन कार्य नहीं करना हो तो ऐसी दशा में कारखाने का प्रबन्धक उन पालियों का निर्धारण करेगा, जिनमें प्रत्ये ऐसा समूह कार्य करेगा।
- धारा 61 (7) के अनुसार यदि कोई समूह पंक्तियों की व्यवस्था के आधार पर कार्य करता है और समूह को पंक्तियों की पूर्व निर्धारित आवधिक परिवर्तनों के अधीन कार्य करता है तो कारखाने का प्रबन्धक एक योजना तैयार करेगा, इस योजना में यह स्पष्ट किया जायेगा कि कौन सा समूह किस अवधि में कार्य करेगा।
- धारा 61 (8) के अनुसार राज्य सरकार इस बात का निर्धारण करेगी कि इस धारा की उप-धारा के अन्तर्गत दी जाने वाली सूचना का क्या प्रारूप होगा।
- धारा 61 (9) के अनुसार उपर्युक्त सूचना की एक प्रतिलिपि कारखाने में कार्य प्रारम्भ होने से पूर्व मुख्य निरीक्षक को भी भेजी जानी चाहिए।
- धारा 61 (10) के अनुसार किसी भी कारखाने में यदि कार्य पद्धति में कोई ऐसा परिवर्तन करना हो, जिससे उपर्युक्त सूचना में परिवर्तन करना आवश्यक हो जाये, तो ऐसा परिवर्तन करने के पूर्व निरीक्षक को परिवर्तन की सूचना दे देनी चाहिए। बिना निरीक्षक की सहमति के कोई भी परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए। इसी प्रकार से एक सप्ताह में कोई भी दो परिवर्तन नहीं किये जाने चाहिए अर्थात् दो परिवर्तनों के बीच कम से कम एक सप्ताह का अन्तर अवश्य होना चाहिए।
12. वयस्क श्रमिकों का रजिस्टर [धारा 62]
प्रत्येक कारखाने का प्रबन्धक वयस्क श्रमिकों का रजिस्टर बनायेगा, जिसमें प्रत्येक वयस्क श्रमिक का नाम, उसके कार्य की प्रकृति एवं अन्य आवश्यक बातें जो उचित होंगी उल्लिखित की जायेंगी। कोई भी वयस्क श्रमिक किसी भी कारखाने में उस समय तक न तो कोई कार्य कर सकेगा और न ही काम करने की अनुमति दी जायेगी जब तक कि उसका नाम व अन्य विवरण वयस्क श्रमिकों के रजिस्टर में न लिख लिये जायें।
ऐसा रजिस्टर कारखाने के कार्यशील घंटों में मुख्य निरीक्षक द्वारा माँगे जाने पर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। राज्य सरकार यदि चाहे तो ऐसे रजिस्टर का प्रारूप व इसके रखने की विधि निर्धारित कर सकती है।
13. कार्यशील घंटे लगायी गयी सूचना एवं रखे गये रजिस्टर के अनुसार होना [धारा 63]
किसी भी वयस्क श्रमिक से धारा 61 के अन्तर्गत लगाई गई कार्य अवधियों की सूचना तथा धारा 62 के अन्तर्गत रखे गये रजिस्टर के विपरीत न तो कार्य लिया जायेगा और न ही उसे कार्य करने की अनुमति ही प्रदान की जायेगी।
14. छूट सम्बन्धी नियम बनाने का अधिकार [धारा 64]
राज्य सरकार किसी कारखाने में निरीक्षण या प्रबन्ध सम्बन्धी पदों पर अथवा गोपनीय पदों पर कार्य करने वाले व्यक्तियों को धारा 66 (1) (b) के अतिरिक्त इस अधिनियम की अन्य सब धाराओं के आदेशों से मुक्त करने के नियम बना सकती है।
उपर्युक्त पदों में नियुक्त ऐसे व्यक्तियों जिन्हें मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 में निर्धारित मासिक मजदूरी से अधिक मजदूरी नहीं मिलती है अधिसमय के लिए अतिरिक्त मजदूरी पाने का अधिकार है।
धारा 64 (2) के अनुसार राज्य सरकार उस सीमा तक ऐसी शर्तों के अधीन जोकि निर्धारित की जायें, किसी भी वयस्क श्रमिक के लिए इस अधिनियम के प्रावधान को निम्न प्रकार से मुक्त कर सकती हैं –
- (i) अत्यावश्यक मरम्मत कार्य में संलग्न श्रमिकों को 51, 54, 55 और 56वीं धाराओं से मुक्त कर सकती है।
- (ii) जो श्रमिक ऐसे प्रारम्भिक अथवा अनपूरक स्वभाव के कार्य में लगे हों जो कारखाने के सामान्य कार्य की सीमाओं के अतिरिक्त करना अत्यंत आवश्यक हो, तो उन्हें धारा 51. 54, 55 तथा 56 के प्रावधानों से छूट दी जा सकती है।
- (iii) ऐसे कार्य में लगे हुए श्रमिकों को जिन्हें कि इतने मध्यान्तर मिलते हैं जो 55 के अन्तर्गत मिलने वाले विश्राम मध्यान्तरों से कहीं अधिक हैं तो ऐसे व्यक्तियों को धारा 51, 54, 55 व 56 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
- (iv) ऐसे श्रमिकों को जोकि टेक्नीकल कारणों से निरन्तर किये जाने वाले कार्यों में नियुक्त हैं धारा 51, 52, 54, 55 व 56 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है। (v) ऐसे श्रमिकों को जोकि प्राथमिक आवश्यकता की वस्तुओं को बनाने या पूर्ति करने में संलग्न हैं, धारा 51 व 52 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
- (vi) ऐसे श्रमिक जो किसी मौसमी निर्माणी प्रक्रिया में कार्यरत हैं तो उन्हें धारा 51, 52 व 54 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
- (vii) यदि श्रमिक किसी ऐसी निर्माणी प्रक्रिया में कार्यरत है जो प्राकृतिक शक्तियों के अनियमित आचरण पर निर्भर समय के अलावा नहीं की जा सकती तो ऐसे श्रमिकों को धारा 52 व 55 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
- (viii) इंजन कक्षों अथवा बॉयलर कक्षों में कार्यरत श्रमिक अथवा पावर प्लान्ट या ट्रांसमिशन मशीनरी पर कार्यरत श्रमिकों को धारा 51 व 52 के प्रावधानों से सकता है।
- (ix) समाचार पत्रों के मुद्रण में लगे हुए श्रमिकों को जिनका कार्य मशीनरी के टूटने से रुक गया है धारा 51 54 व 56 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
- (x) रेल के डिब्बों में व लारी में माल चढ़ाने और उतारने के कार्य में लगे श्रमिकों को धारा 51 52 54, 55 व 56 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
- (xi) ऐसा कोई कार्य जो राज्य सरकार ने राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया हो, ऐसे कार्य में लगे श्रमिकों को धारा 51, 52, 54 व 56 के प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है।
धारा 64 (3) के अनुसार यदि राज्य सरकार उचित समझे तो धारा 64 (2) के छूट सम्बन्धी प्रावधानों में धारा 61 के प्रावधानों में छूट देने सम्बन्धी नियमों को सम्मिलित किया जा सकता है। यह उन शर्तों के अधीन होगा जिन्हें राज्य सरकार निर्धारित करे।
15. छूट सम्वन्धी आदेश जारी करने का अधिकार [धारा 65 (1)]
यदि राज्य सरकार इस बात से सन्तुष्ट हो – जाये कि वयस्क श्रमिकों के कार्यशील घंटे जो सूचना में निश्चित किये गये हैं उचित नहीं वह प्रावधानों में सुधार कर सकती है या उसके सम्दर्भ में कुछ छूट सम्बन्धी आदेश जारी कर सकती है।
धारा 65 (2) के अनुसार यदि राज्य सरकार उचित समझती है कि वयस्क श्रमिकों पर कार्य का भार अधिक है तो साप्ताहिक घंटे साप्ताहिक अवकाश और दैनिक कार्यशील घंटों के प्रावधानों में छूट देने सम्बन्धी आदेश जारी कर सकती है। धारा 65 (3) के अनुसार धारा 65 (2) के प्रावधानों से छूट निम्न शर्तों के अन्तर्गत दी जा सकेगी।
- (i) एक दिन में श्रमिकों के कार्यशील घंटे 12 से अधिक नहीं होंगे।
- (ii) कार्यशील घंटों का विस्तार जिसमें मध्यान्तर का समय भी शामिल है उसे मिलाकर एक दिन में 13 घंटे से अधिक नहीं होगा।
- (iii) अधिसमय को मिलाकर एक सप्ताह में कार्यशील घंटे 60 से अधिक नहीं होंगे।
- (iv) एक तिमाही में कुल अधिसमय के कार्यशील घंटे 75 से अधिक नहीं होंगे तथा एक साथ एक श्रमिक 7 दिन से अधिक अधिसमयं कार्य नहीं करेगा।