कारखाना अधिनियम 1948 के अवयस्क के सेवायोजन सम्बन्धी प्रावधान

बच्चों का कारखानों में नियोजन सम्बन्धी प्रावधान

कारखाना अधिनियम 1948 के लागू होने के पूर्व भारत में स्त्री एवं अवयस्क श्रमिकों का ही विभिन्न उद्योगों में शोषण किया जाता था। उस समय न तो इनके कार्य करने के घंटे निश्चित थे और न ही पारिश्रमिक उद्योगपति इनसे मन चाहे समय तक कार्य लिया करते थे और मन चाहा पारिश्रमिक देते थे, परन्तु कारखाना अधिनियम 1948 की जैसे ही व्यवस्था की गयी, वैसे ही उरा व्यवस्था में स्त्री एवं अवयस्क श्रमिकों के कार्यशील घंटे एवं उनके नियोजन की दशाओं के प्रावधानों का भी उल्लेख किया गया।

कारखाना अधिनियम 1948 में अवयस्क श्रमिकों का नियोजन

  1. तरुण बालक श्रमिकों की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध [धारा 67] – कोई भी ऐसा चालक जिसने 14 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर ली है किसी भी कारखानों में कार्य करने के लिए न तो लगाया जायेगा और न ही उसे कार्य करने की अनुमति प्रदान की जायेगी।
  2. अवयस्क श्रमिकों द्वारा टोकन रखा जाना [धारा 68] – कोई भी ऐसा श्रमिक जिसने 14 वर्ष की आयु तो पूरी कर ली है परन्तु 18 वर्ष की आयु नहीं पूरी की है किसी भी कारखाने में तब तक कार्य नहीं कर सकता जब तक कि उसने अपनी स्वस्थता का प्रमाण-पत्र कारखाने के प्रबन्धक के पास न जमा कर दिया हो अथवा ऐसे प्रमाण पत्र का टोकन उसके पास कार्य करते समय न हो।
  3. उपयुक्तता का प्रमाण-पत्र [धारा 69] – उपयुक्तता प्रमाण पत्र एक प्रमाण पत्र होता है जिसे प्रमाणनकर्ता चिकित्सक द्वारा नवयुवकों को जारी किया जाता है। इस प्रमाण पत्र में वह प्रमाणित करता है कि व्यक्ति कारखाने में कार्य करने हेतु उपयुक्त है। इस प्रमाणपत्र को प्राप्त करने के लिए प्रमाणनकर्ता चिकित्सक को एक आवेदन पत्र नवयुवक द्वारा अथवा प्रबन्धक अथवा माता-पिता द्वारा दिया जा सकता है।
  4. किशोर को स्वीकृत योग्यता प्रमाण-पत्र का प्रभाव [धारा 70] – यदि किसी किशोर श्रमिक को वयस्क की तरह कार्य करने के लिए उपयुक्तता प्रमाण-पत्र प्रदान कर दिया जाता है तो उसे वयस्क श्रमिक माना जायगा और ऐसा श्रमिक कारखाने में कार्य करते समय अपने पास इस आशय का टोकन रखेगा। परन्तु ऐसा श्रमिक जब तक अपनी आ के 17 वर्ष पूरे नहीं कर लेगा, रात्रि के समय कारखाने में न तो उसे कार्य करने की अनुमति प्रदान की जायेगी, और न ही कार्य पर लगाया जायगा। उससे प्रातः 6 बजे से सायं 7 बजे तक की अवधि में ही काम लिया जायेगा । यदि किसी किशोर को वयस्क के रूप में कार्य करने के लिए उपयुक्तता का प्रमाण-पत्र नहीं प्रदान किया जाता है तो ऐसे किशोर को इस अधिनियम के समस्त उद्देश्यों के लिए एक बालक ही समझा जायेगा, चाहे उसकी आयु कुछ भी क्यों न हो।
  5. बालकों के लिए कार्यशील घंटे [धारा 71] – किसी भी कारखाने में बालक श्रमिक को एक दिन में 44 घंटे से अधिक कार्य करने के लिए तथा रात्रि में कार्य करने के लिए न तो नियुक्त किया जायेगा और न ही उसे अनुमति दी जायेगी । रात्रि का आशय उस 8 घंटे की समयावधि से है जो 10 बजे रात्रि से 6 बजे प्रातः के बीच हो।
    • धारा 71 (2) के अनुसार कारखाने में सभी नियुक्त बालकों का कार्यकाल दो पारियों में सीमित रहेगा तथा प्रत्येक पारी परस्पर एक ही समय में नहीं होगी, और प्रत्येक पारी का समय 5 घंटे से अधिक नहीं होगा। प्रत्येक बालक केवल एक ही पारी में कार्य करेगा। पारी में एक माह में केवल एक ही बार परिवर्तन किया जा सकेगा। पारी में एक से अधिक बार परिवर्तन करने के लिए मुख्य निरीक्षक की लिखित अनुमति प्राप्त करनी आवश्यक होगी।
    • धारा 71 (3) के अनुसार धारा 52 के साप्ताहिक अवकाश सम्बन्धी प्रावधान बालक श्रमिकों पर भी लागू होंगे। इस धारा के प्रावधानों से किसी भी बालक श्रमिक को छूट नहीं प्रदान की जा सकेगी।
    • धारा 71 (4) के अनुसार कोई भी बालक श्रमिक से किसी कारखाने में किसी ऐसे दिन कार्य करने के लिए न कहा जायेगा न ही उसे अनुमति प्रदान की जायेगी, जिस दिन वह पहले से ही किसी कारखाने में कार्य करता रहा हो या कर चुका हो। बालिका से प्रातः आठ बजे से रात्रि सात बजे तक की अवधि में ही काम लिया जा सकेगा अन्य अवधि में नहीं।
  1. कार्य करने की अवधि की सूचना [धारा 72] – ऐसे प्रत्येक कारखाने में जहाँ बालक कार्य पर नियुक्त है उनकी कार्यावधि की सूचना प्रदर्शित की जानी चाहिए ताकि उसका सही रूप से पालन किया जा सके और प्रत्येक दिन के कार्य करने की अवधियों स्पष्ट हो सकें।
    • धारा 72 (2) के अनुसार उक्त सूचना प्रदर्शित समयावधियाँ धारा 61 में वयस्क श्रमिकों के लिए निर्धारित की गयी रीति के अनुसार पहले से ही निश्चित होनी चाहिए इन अवधियों का इस प्रकार से निर्धारण होना चाहिए जिससे धारा 71 से किसी भी प्रावधान का उल्लंघन न हो सके।
    • धारा 72 (3) के अनुसार धारा 61 (8) (9) (10) के प्रावधान उपर्युक्त सूचना पर भी यथा लागू रहेंगे।
  2. बालक श्रमिकों का रजिस्टर [धारा 73] – प्रत्येक कारखाने का प्रबन्धक जिसमें बालक श्रमिकों की नियुक्ति की गयी है बालक श्रमिकों का एक रजिस्टर रखेगा। यह रजिस्टर कार्यशील घंटों में कारखाना निरीक्षक को निरीक्षण के लिए प्राप्त होगा। इसमें निम्नलिखित बातें उल्लेख की जायेंगी।
    • कारखाने के प्रत्येक बालक श्रमिक का नाम
    • उसके कार्य की प्रकृति
    • यदि किसी समूह में बालक श्रमिक को सम्मिलित किया गया है तो वह समूह;
    • जहाँ उसका समूह पालियों में कार्य करता है तो उस पारी का नाम जिसमें उसके लिए कार्य करना निश्चित है
    • धारा 69 के अन्तर्गत बालक श्रमिक को प्रदान किये गये उपयुक्तता प्रमाण-पत्र का नम्बर‌।
  3. कार्यशील घंटे धारा 72 के अन्तर्गत दी गयी सूचना और धारा 73 के अन्तर्गत रखे रजिस्टर के अनुरूप होंगे [धारा 74] – एक बालक श्रमिक को किसी भी कारखाने में धारा 72 में वर्णित कार्यविधि सूचना तथा धारा 73 में वर्णित रजिस्टर में अंकित कार्यशील घंटों के अतिरिक्त कार्य करने के लिए नहीं नियुक्त किया जायेगा।
  4. डॉक्टरी जाँच सम्वन्धी आदेश देने का अधिकार [धारा 75] – यदि कारखाना निरीक्षक की राय में कोई नवयुवक बिना उपयुक्तता या योग्यता प्रमाण-पत्र प्राप्त किये कारखाने में कार्य कर रहा है अथवा उसने योग्यता प्रमाण-पत्र तो प्राप्त कर लिया है किन्तु प्रमाण-पत्र में निर्दिष्ट क्षमता के अनुरूप कार्य करने में समर्थ नहीं है, तो वह ऐसे व्यक्ति की डाक्टरी जाँच कराने सम्बन्धी आदेश दे सकता है तथा ऐसे व्यक्ति को कारखाने से उस समय तक कार्य करने से मना कर सकता है जब तक कि उसकी डॉक्टरी जाँच न करा ली गयी हो और उसे सामर्थ्य का प्रमाण-पत्र न प्रदान कर दिया गया हो।
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