कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन मान्यताए, टेक्नॉलाजी व 8 प्रकार

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन – आज के वर्तमान समय में कम्प्यूटर को विज्ञान और तकनीकी द्वारा मानव जाति को दिया जाने वाला सबसे अमूल्य उपहार कहा जा है। इसने हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों में एक अद्भुत सा चमत्कार ला दिया है। आज हमारे जीवन की लगभग सभी क्रियाएँ कम्प्यूटर से जुड़ी हुई है। कम्प्यूटरों की सहायता से चलने वाले इस शिक्षण-अधिगम या अनुदेशन कार्य को ही कम्प्यूटर सहायित या कम्प्यूटर निर्देशित अनुदेशन का नाम दिया जाता है।

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को कम्प्यूटर मशीनरी की मदद से सम्पादित किया जाता है। कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन स्व अनुदेशित तथा वैयक्तिक होता है। कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन सर्वथा प्रचलित शिक्षण मशीन द्वारा संचालित अनुदेशन तथा अभिक्रमित पाठ्यपुस्तकों से भी नया विचार माना जाता है। कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन का क्षेत्र अब इतना विस्तृत हो गया है कि अब इन्हें मात्र स्किनर द्वारा प्रतिपादित अभिक्रमित अनुदेशन अधिगम अथवा शिक्षण मशीन के अनुप्रयोगों के रूप में नहीं समझा जा सकता।

भट्ट एवं शर्मा के अनुसार, “इसके अनुसार कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन को शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में विद्यार्थी एवं कैम्प्यूटर नियन्त्रित प्रस्तुतीकरण तथा अनुक्रिया रिकॉर्डिंग उपकरण के मध्य चलने वाली अंतःक्रिया के रूप में समझा जा सकता है।” कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन से अभिप्राय ऐसी अनुदेशन तकनीक या विधि से है जिसके अन्तर्गत विद्यार्थी तथा कम्प्यूटर संयन्त्र’ के बीच एक ऐसी प्रयोजनपूर्ण अन्तः क्रिया चलती रहती है।

जिसके फल स्वरुप विद्यार्थी विशेष को अपनी बागताओं तथा अधिगम गति का अनुसरण करते हुए अनुवेशनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता प्राप्त होती है। वांछित परिभाषाओं ने कुछ तथ्यों को हमारे सामने प्रस्तुत किया है।

  • कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में किसी एक विद्यार्थी तथा कम्प्यूटर के बीच उसी प्रकार की अन्तक्रिया चलती है जैसी कि एक ट्यूटोरियल प्रणाली में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच चलती है।
  • कम्प्यूटर द्वारा विद्यार्थियों को व्यक्तिगत रूप से अनुवेशन सामग्री को प्रस्तुत करना पूरी तरह सम्भव है।
  • जैसे ही अनुवेशन कम्प्यूटर के मॉनीटर पर प्रस्तुत की जाती है विद्यार्थी उससे फायदा चटाकर उसके प्रति वांछित अनुक्रियाएँ ग्रहण कराता है। इन अनुक्रियाओं को कम्प्यूटर द्वारा भली-भाँति ग्रहण करके, विद्यार्थी का आगे क्या करना है, इस तरह के अनुदेशन प्रदान किये जाते हैं।

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की मूल मान्यताएँ

  1. एक ही समय पर अनेक विद्यार्थियों को एक साथ अनुदेशन प्रदान करना कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन हजारों तथा लाखों विद्यार्थियों को एक ही समय में वैयक्तिक स्व-अनुदेशन प्राप्त करने की सामर्थ्य रखता है। जो कुछ भी किसी विद्यार्थी को अपनी रुचि के क्षेत्र या विषय के प्रकरण की जानकारी हेतु चाहिए कि वह उसे कम्प्यूटर सहारा अनुवेशन के माध्यम से अनायास ही प्राप्त होता रहता है।
  2. विद्यार्थियों की निष्पत्ति का स्वतः ही रिकॉर्डिंग होते रहना – विद्यार्थी द्वारा दी गई अनुक्रियाएँ और की गई अनुक्रियाओं के परिणाम की कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के अन्तर्गत स्वतः ही रिकॉर्डिंग होती रहती है। इस प्रकार की रिकॉर्डिंग के माध्यम से विद्यार्थी को स्व-अनुदेशन हेतु आगे क्या करना चाहिए इस प्रकार नियोजन सम्बन्धी बातें विद्यार्थी को अधिगम पथ पर आगे बढ़ाने के लिए कम्प्यूटर सह अनुदेशन कार्यक्रम में लगातार मिलती है। कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की दूसरी बड़ी विशेषता स्वचालित रिकॉर्डिंग के माध्यम से लेखा-जोखा रखा जाना है।
  3. विधियों एवं तकनीकों के प्रयोग में विविधता – प्रत्येक छात्र के लिए अलग प्रकार की शिक्षण तकनीकी का प्रयोग किया जाता है यह अनुदेशन प्रकरण के अनुसार भी हो सकता है। इससे छात्र वैयक्तिगत तथा अधिगम सामग्री के अनुरूप अपने हिसाब से किसी एक तकनीक या शिक्षण विधि का चुनाव कर सकता है।

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन की टैक्नोलॉजी

कंप्यूटर अनुदेशन के क्रियान्वयन हेतु तीन प्रकार की टेक्नोलॉजी प्रयुक्त होती है।

  1. हार्डवेयर मशीन की तरह इसके विभिन्न कलपुर्जे तथा काम करने वाले विभिन्न भाग या अवयव होते हैं। अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही कम्प्यूटर मशीनरी खरीदते हैं। कम्प्यूटर के इन हार्डवेयर में सी. पी. यू., की-बोर्ड, माउस, स्क्रीन, मॉडम, स्पीकर, स्कैनर आदि आते हैं। इस प्रकार कम्प्यूटरों में उनका मशीनी रूप में संचालन तथा देखभाल इन दोनों कार्यों के लिए हार्डवेयर टेक्नोलॉजी का प्रयोग आवश्यक होता है।
  2. सॉफ्टवेयर-अनुदेशन देने में कम्प्यूटर का मशीनी रूप तब तक कुछ नहीं कर सकता जब तक कि मशीन को संचालित करने में समर्थ सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल न हों। सॉफ्टवेयर एक तरफ कम्प्यूटर मशीन को संचालित करने हेतु मशीनी भाषा में कम्प्यूटर को आदेश देते हैं और दूसरी तरफ कोर्सवेयर टैक्नोलॉजी द्वारा बनाये गये अनुदेशन कार्यक्रमों को विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करने की क्षमता रखते हैं। इन दोनों को सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर की संज्ञा दी जाती है।
  3. कोर्सवेयर टैक्नोलॉजी कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन से लाभ उठाने वाले विद्यार्थियों से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। इस टैक्नोलॉजी की सेवाओं की जरूरत सॉफ्टवेयर प्रोग्राम तैयार करने वाले प्रोग्रामर्स की होती है। जो सॉफ्टवेयर प्रोग्राम मशीन को चलाने तथा अनुदेशन प्राप्त कराने हेतु कम्प्यूटर मशीन में डाले जायेंगे उन्हें सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स द्वारा बनाया जायेगा।

ऐसे सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स को निम्न क्षेत्रों में आवश्यक निपुणता हासिल होनी चाहिए।

  • विषय विशेष पर स्वामित्व होना।
  • विषय विशेष के शिक्षण में विशेषज्ञ होना।
  • अनुदेशनात्मक टैक्नोलॉजी में पारंगत होना।
  • अनुदेशात्मक टैक्नोलॉजी में सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग में प्रवीण होना।
शैक्षिक तकनीकीशैक्षिक तकनीकी के उपागमशैक्षिक तकनीकी के रूप
व्यवहार तकनीकीअनुदेशन तकनीकीकंप्यूटर सहायक अनुदेशन
ई लर्निंगशिक्षण अर्थ विशेषताएँशिक्षण के स्तर
स्मृति स्तर शिक्षणबोध स्तर शिक्षणचिंतन स्तर शिक्षण
शिक्षण के सिद्धान्तशिक्षण सूत्रशिक्षण नीतियाँ
व्याख्यान नीतिप्रदर्शन नीतिवाद विवाद विधि
श्रव्य दृश्य सामग्रीअनुरूपित शिक्षण विशेषताएँसूचना सम्प्रेषण तकनीकी महत्व
जनसंचारश्यामपट

कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के प्रकार

छात्रों को जिन परिस्थितियों या प्रयोजन या वैयक्तिक स्व-अनुदेशन की आवश्यकता होती है इन बातों के परिप्रेक्ष्य में कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन के विविध प्रकार एवं रूप देखने को मिलते हैं। इनके कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

  1. सूचनात्मक कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन – इस प्रकार का कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन विद्यार्थी को वांछित सूचनाएँ प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता है। इसमें कम्प्यूटर एक अच्छे पूछताछ अधिकारी की भूमिका निभाता है और अपनी संग्रहीत सूचना सामग्री की मदद से वह वांछित सूचना पूछने वाले को तुरन्त ही प्रदान करने की चेष्टा करता है।
  2. ड्रिल तथा अभ्यास कार्यक्रमों से सम्बन्धित अनुदेशन – इस प्रकार के अनुदेशन कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को पहले ही अर्जित अधिगम अनुभवों को स्थायी एवं व्यवहार में लाने योग्य बनाने हेतु आवश्यक ड्रिल तथा अभ्यास करने सम्बन्धी अवसर प्रदान किये जाते हैं। कम्प्यूटर जवाब देने में देर नहीं करता और न उसे अपने से संगृहीत अभ्यास समस्याओं के प्रस्तुतीकरण में देर लगती है। उसमें गजब की चुस्ती, फुर्ती तथा असीमित संयम होता है।
  3. ट्यूटोरियल प्रकार का कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन – इसमें कम्प्यूटर एक ट्यूटर की भूमिका निभाता है। ट्यूटरों की भाँति ही वे विद्यार्थियों से व्यक्तिगत रूप से संवाद तथा अन्तःक्रिया स्थापित करते हुए शिक्षण अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में पूरा योगदान देते हैं। विभिन्न विषयों से सम्बन्धित इकाइयों तथा प्रकरणों पर ट्यूटोरियल प्रणाली पर आधारित काफी सॉफ्टवेयर प्रोग्राम आज उपलब्ध हैं। इन प्रोग्रामों के द्वारा पहले प्रकरण को पढ़ाया जाता है। फिर पढ़ाए हुये पाठ की उचित पुनरावृत्ति तथा अभ्यास कार्य किया जाता है।
  4. शैक्षिक गेम्स के रूप में उपलब्ध अनुदेशन – इस प्रकार के अनुदेशन में विद्यार्थियों को विविध प्रकार के सुनियोजित गेम्स खेलने का अवसर दिया जाता है परन्तु ये गेम्स पूरी तरह शैक्षिक या शिक्षण-अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने वाले हो ऐसा आवश्यक नहीं है। कोई बार इस प्रकार के गेम्स का उपयोग विद्यार्थियों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान कुछ अतिरिक्त अभिप्रेरणा, प्रोत्साहन तथा पुनर्बलन प्रदान करने या पढ़े हुए पाठों की समीक्षा, पुनः अवलोकन तथा मूल्यांकन आदि करने में भी किया जाता है।
  1. अनुरूपित प्रकार का अनुदेशन – ऐसे अनुदेशन में सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों की मदद से विद्यार्थियों को समस्याओं से जूझने हेतु वास्तविक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों प्रदान की जाती है। ऐसा अनुरूपित प्रकार की अनुदेशन विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण अनुभव प्राप्त कराने का एक विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण अनुभव प्राप्त कराने का एक बहुमूल्य साधन है जहाँ कम खर्चे तथा सीमित साधनों में बिना जोखिम उठाए हुए बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
  2. समस्या समाधान प्रकार का अनुदेशन – इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन में कम्प्यूटर किसी समस्या का समाधान नहीं बताते बल्कि विद्यार्थी की समस्या समाधान में रत रहने के अवसर प्रदान करके उन्हीं से प्रस्तुत समस्याओं का समाधान चाहते हैं। इसमें छात्र चिन्तन-मनन, विश्लेषण-व्यवस्थापन, सामान्यीकरण आदि प्रक्रियाओं से गुजरता है इसका एक उदाहरण लोगों (LOGO) है जो समस्या समाधान प्रक्रिया के उचित अनुदेशन हेतु भलीभाँति काम में लाया जाता है यह जीन पियाजे के बौद्धिक सिद्धान्तों से अनुप्रेरित अधिगम सिद्धान्तों पर आधारित है।
  3. क्रियात्मक कार्यों के सम्पादन से सम्बन्धित अनुदेशन – इसमें ऐसे सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता है जिसमें विद्यार्थी को प्रयोगशाला, कार्यशाला सम्बन्धी परीक्षणों, प्रयोगों तथा क्रियात्मक कार्यों के सम्पादन सम्बन्धी जीवंत अनुभव कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखने व करने को मिल जाएँ इस तरह विद्यार्थी को जो अनुभव आगे प्रयोगशाला, कक्षा के कमरे तथा कार्यशाला में प्राप्त होते हैं उनकी विधिवत् पूर्व जानकारी इस प्रकार के अनुदेशन से प्राप्त की जाती है।
  4. अधिगम से जुड़ी हुई विभिन्न बातों का प्रबन्धन सम्बन्धी अनुदेशन – इस प्रकार के कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन सॉफ्टवेयर प्रोग्राम विद्यार्थियों द्वारा की जाने वाली विधि अधिगम क्रियाओं के समुचित प्रबन्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी कठिनाइयों तथा कमजोरियों का निदान भी करते हैं और उसके आधार पर जिस विद्यार्थी को जिस प्रकार के उपचारात्मक अनुदेशन की आवश्यकता होती है उसका निर्धारण करते हैं और प्रगति रिपोर्ट भी तैयार करते हैं।
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