कफन कहानी के लेखक मुंशी प्रेमचंद्र जी हैं। अन्य कहानियों की तरह कफन कहानी के उद्देश्य कुछ अलग ही हैं। वे उद्देश्य क्या है आइए जानते हैं। सर्वप्रथम हम लोग कहानी के सारांश को कुछ पंक्तियों में जानेंगे। फिर इस कहानी को लिखने का उद्देश्य क्या था वह जानेंगे।
इस कहानी के तीन पात्र घीसू (पिता), माधव (पुत्र) तथा बुधिया इनकी पत्नी थी। बुधिया का चरित्र मूक है। पूरी कहानी घीसू व माधव के इर्द गिर्द घूमती है। यह दोनों बहुत ही आलसी, कामचोर, शराबी, गैर जिम्मेदार पात्र थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही नाजुक थी। पिछले वर्ष ही माधव का विवाह बुधिया से हुआ था। बुधिया गर्भवती थी वह दर्द से कराह रही थी और इधर बाप बेटे भुंजे हुए आलू खा रहे थे।


बुधिया के पति उसे देखने इसलिए नहीं जा रहे थे कि कहीं उसके पिता वो आलू खा ना जाए। आलू खा जाने के बाद में वे दोनों वही सो जाते हैं। और सुबह उठकर देखते हैं। तो बुधिया मर चुकी होती है। अपनी पत्नी के कफन के लिए वह भीख मांग कर लाते हैं, जिसकी वह ठेके पर जाकर शराब पी लेते हैं। वे सोचते हैं कि पत्नी के कफन के लिए पड़ोसी खुद कुछ पैसों का इंतजाम करेंगे।
कफन कहानी के उद्देश्य
कफन कहानी के सारांश के अनुसार उसके प्रतिपाद्य अथवा उद्देश्य को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से रेखांकित किया गया है-
1. सामाजिक यथार्थ की प्रस्तुति
कफन कहानी एक यथार्थवादी कहानी है। प्रस्तुत कहानी में समाज में व्याप्त शोषण व्यवस्था व उनके दुष्परिणामों को सशक्त ढंग से अभिव्यक्त किया जाता है। माधव की तुम्हें अलसी पन निकम्मा पर दरिद्रता तथा भूख उनके इतने निम्न स्तर पर पहुंचा देती है। जहां एक सुंदर संपन्न और ऐश्वर्य पूर्ण जिंदगी का सपना चकनाचूर हो जाता है। सदियों के पेट की भूख ना उन्हें पशु तुल्य बना दिया है। वह आलसी कमजोर और निकम्मे हैं परंतु उनके पीछे शोषण की एक व्यवस्था कार्य करती है।


इससे बड़ा और क्या हो सकता है कि घीसू और माधव को पता है कि बुधिया प्रसव वेदना से करा रही है परंतु वे दोनों आलू खाने के चक्कर में उसके पास जाने के लिए तैयार नहीं है। पेट की भूख ने उन्हें इतना अमित बना दिया है कि वे बुधिया के कफन के पैसों को भी शराब और खाने में उड़ा देते हैं। इस प्रकार यह कहानी सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने मैं पूर्णता सक्षम रही है। जो कि कफन कहानी के उद्देश्य का विशेष अंग है।
2. शोषण व्यवस्था का चित्रण
ईश्वर महादेव समाज में फैली शोषण व्यवस्था के शिकार हैं। भारतीय समाज में अगर घीसू और माधव काम ना करने के कारण भूखे मर रहे हैं तो यहां काम करने वालों की स्थिति भी अधिक अच्छी नहीं है।पूंजीवादी और समानता वादी व्यवस्था ने मनुष्यता को पशुता की ओर धकेल दिया है। लेखक के मतानुसार जिस समाज में रात दिन मेहनत करने वालों की हालात उनकी हालात से कुछ बहुत अधिक न थी।


किसानों के मुकाबले में वे लोग जो किसानों की दुर्लभ अदाओं के लाभ उठाना चाहते थे।कहीं ज्यादा संपन्न थे। वहां इस तरह के मनोवृति का पैदा होना कोई अचरज की बात ना थी। अगर वह फटे हाल हैं।तो कम से कम उसे किसानों की सीजी तोड़ मेहनत तो नहीं करनी पड़ती और उसकी सरलता और निधि हटा के दूसरे लोग तो फायदा नहीं उठाते।
इस प्रकार लेखक ने उपयुक्त कथन के माध्यम से पूंजीवादी व्यवस्था तथा उनके द्वारा किए जा रहे शोषण का पर्दाफाश किया है। आपका कफन कहानी के उद्देश्य पढ़ रहे हैं।
3. अंधविश्वास का चित्रण
भारतीय समाज अंधविश्वासों के मकड़जाल में फंसा हुआ है। लेखक ने कफन कहानी के माध्यम से इस मकड़जाल को तोड़ने की कोशिश की है। आसाम का शोषण व्यवस्था आम आदमी के अंधविश्वास को पुख्ता करती है। वे इसे मकड़जाल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। बुधिया झोपड़ी में पड़ी हुई प्रसव वेदना से करा रही है। घीसू आलू निकालकर खाते हुए कहा जाकर देख तो क्या दशा है? उसकी चुड़ैल का हिसाब होगा और क्या? यहां तो ओझा भी ₹1 मांगता है इस प्रकार चुड़ैल का प्रसाद और ओझा का ₹1 घीसू और माधव जैसे अंधविश्वासी और दरिद्र लोगों को सदैव भयभीत किए हुए हैं।


मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित कफन दिल को छू लेने वाली कहानी है|
कहानी के किर्दो के बीच कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं है।
स्वर्गिया मुंशी प्रेमचंद जी की छोटी सी कहानी कफन में सभी पात्रो की बहुत ही खूबसुरती से वर्णन किया गया है।
इस कहानी में ये बहुत अच्छे से हमे एहसास करया गया है की किस तरह गरीब मानव हृदय को अमानवी और संवेदना नहीं बनाना सकती है।
वास्तविक तरीके से सितिथि का वर्णन करा गया है।
अगर हम कफ़न कहानी के बारे में बात करे तो, कफ़न कहानी में जिस प्रकार घेसू और माधव का चरित्र चित्रन हुआ है, उस पर विश्वास नही जमता। क्या ऐसा हो सकता है की किसी व्यक्ति की पत्नी का मृत्यु हुआ है पति ने पूरे गांव से चंदे लिए हो और बाजार जा कर मदिरा पान कर रहे हो । कहा जाता है की कहानी जिस सत्य को उजागर करती है वह जीवन के तथ्य से मेल नहीं खाता। कुछ लोगो का तो ये भी मानना है की कफन प्रेमचंद की जिन्दगी के उस बिंदु से जुड़ी हुई कहानी है जिसके आगे कोई बिन्दु नहीं होता। और किसी भी कहानी को यथार्थवादी कहानी तब तक नहीं माना जा सक्ता जब तक वो कहानी जीवन के तथ्यो से मेल नहीं खाता