कंप्यूटर सहायक अनुदेशन विशेषताएं प्रक्रिया कार्य 8 सीमाएं

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन – विभिन्न शिक्षण यन्त्रों एवं कम्प्यूटर जैसे विकसित यन्त्रों ने विकास के क्षेत्र में अपना योगदान देकर आश्चर्यजनक परिणाम सामने रखे हैं। मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी अथवा तकनीकी के विकास ने इस दिशा में अपना प्रमुख योगदान दिया है। विश्व के समस्त क्षेत्रों को तकनीकी ने प्रभावित किया है। शिक्षा के क्षेत्र में भी, शैक्षिक तकनीकी जैसे महत्त्वपूर्ण विषय का आगमन हो चुका है, प्रयोग एवं उपयोग के आधार पर शैक्षिक तकनीकी को व्यवहार तकनीकी, अनुदेशन तकनीकी व शिक्षण तकनीकी में बाँटा गया है।

जिस तकनीकी के अन्तर्गत, शिक्षण में प्रयुक्त मशीनों का उपयोग किया जाता है, उसे हार्डवेयर तकनीकी कहा जाता है। इसमें कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है। कम्प्यूटर आधुनिक तकनीकी का सबसे महत्त्वपूर्ण आविष्कार है। इस यन्त्र का प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है। विशेषकर पश्चिमी देशों में कम्प्यूटर द्वारा, दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन हुए हैं, इसका उपयोग व्यापार, यातायात, संचार, उत्पादन, सम्प्रेषण सुरक्षा, सेना, शासन प्रणाली एवं शोध के अतिरिक्त शिक्षा प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए किया जा रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में डेटा, बैंक्स, सूचना संचयन, शैक्षिक सेवाओं के नियोजन व प्रशासन, समय तालिका के प्रस्तुतीकरण उपयोजन, छात्रों के अभिलेख तैयार करने, परीक्षाफल बनाने, अनुसन्धानों में प्रदत्तों की व्यवस्था एवं विश्लेषण करने तथा अभिक्रमों को प्रस्तुत व नियन्त्रित करने में, कम्प्यूटर प्रणाली का प्रयोग प्रारम्भ हो चुका है। इस प्रकार शिक्षा में, शिक्षण, शोध एवं परीक्षा प्रणाली को कम्प्यूटर ने प्रभावित किया है। विशेषकर स्वतः अनुदेशन अथवा व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन के क्षेत्र में कंप्यूटर सहायक अनुदेशन पर आधारित प्रणाली उपयोगी सिद्ध हुई है।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन की प्रक्रिया में अधिगमकर्त्ता या छात्र, अभिक्रम अथवा पाठ्यवस्तु प्रणाली कम्प्यूटर तथा पूर्व-निर्धारित उद्देश्य होना आवश्यक है। कम्प्यूटर स्व:- संचालित होता है तथा इसमें उत्तप्रेषित पाठ्यवस्तु अथवा अधिक्रम, अनुदेशों पर आधारित होते हैं। कम्प्यूटर में प्रेषित किए गए अनुदेश, पूर्व-निर्धारित होते हैं तथा इन नियन्त्रित अनुदेशों के आधार पर ही अधिगमकर्त्ता को सीखने का अवसर प्राप्त होता है।

इसमें छात्रों को अपने उत्तरों की भी निरन्तर जानकारी प्राप्त होती रहती है, जिससे उन्हें निरन्तर पृष्ठ पोषण या पुनर्बलन प्राप्त होता है। नियन्त्रित अनुदेशनों के द्वारा छात्रों को जो भी ज्ञान प्राप्त होता है वह उनकी पूर्ण जानकारी के आधार पर प्राप्त होता है। कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रक्रिया में, अध्यापक का स्थान गौण होता है। कम्प्यूटर के द्वारा ही, यह ज्ञात कर लिया जाता है कि छात्र का स्तर क्या है और उसे इससे आगे कौन-सा ज्ञान प्रदान करना चाहिए?

एक विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर छात्रों की पूर्ण योग्यताओं एवं अभिक्रम के आधार पर कम्प्यूटर द्वारा छात्रों को नियन्त्रित अनुदेशनों से अधिगम कराया जाता है। कम्प्यूटर की इस प्रक्रिया में हार्डवेयर, कम्प्यूटर सोफ्टवेयर तथा अधिगम व्यवस्था जैसे तीनों ही पक्ष सम्मिलित होते हैं क्योंकि कंप्यूटर सहायक अनुदेशन, मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित होता है, अनुदेशनों का प्रस्तुतीकरण, भौतिकी या अभियन्त्रण के सिद्धान्तों के आधार पर यन्त्र के द्वारा किया जाता है तथा अधिगम की समस्त परिस्थितियों, अधिगम स्वरूपों और अधिगम के लिए आवश्यक प्रेरकों का इस यन्त्र में समावेश किया जाता है।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन की प्रक्रिया

कम्प्यूटर की प्रक्रिया हार्डवेयर और सोफ्टवेयर पर आधारित होती है। कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रक्रिया में कम्प्यूटर द्वारा स्क्रीन पर जो अनुदेशन प्रस्तुत किया जाता है, उसके बाद छात्र को अपनी अनुक्रिया करने का अवसर प्राप्त होता है। अनुक्रिया हेतु छात्रों के पास एयरफोन व माइक्रोफोन भी उपलब्ध रहते हैं तथा वह पैन अथवा पैन्सिल से स्क्रीन पर प्रदर्शित विकल्पात्मक उत्तरों को छूकर या माइक्रोफोन में बोलकर अपनी अनुक्रिया करता है,

एयरफोन व कम्प्यूटर के आधार पर छात्र व कम्प्यूटर में निरन्तर सम्प्रेषण व अन्तः क्रिया होती है, प्राथमिक स्तर के बालकों को वर्ण एवं शब्दों की पहचान कराकर सिखाया जाता है। कंप्यूटर सहायक अनुदेशन के लिये, कम्प्यूटर से जुड़े प्रोजेक्टर द्वारा, पर्दे पर छात्रों को विभिन्न वर्ण से दिखाए जाते हैं तथा कम्प्यूटर छात्रों को वर्णों की पहचान प्रक्रिया के सम्बन्ध में निर्देश देने के पश्चात् यह पूछा जाता है कि पर्दे पर प्रदर्शित, विभिन्न वर्णों में अ, आ अथवा इ आदि वर्ण कौन-सा है।

छात्र माइक्रोफोन में बोलकर अपना उत्तर, कम्प्यूटर को प्रेषित करता है तथा इसके उपरान्त पर्दे पर सही उत्तर प्रदर्शित हो जाता है। उत्तर सही होने पर कम्प्यूटर द्वारा छात्र की सराहना की जाती है अन्यथा उसकी त्रुटि बताई जाती है। इसके अतिरिक्त छात्रों द्वारा दिए गए सही एवं गलत उत्तरों का आलेख भी इस यन्त्र के द्वारा ही तैयार होता रहता है। कम्प्यूटर द्वारा, छात्रों में सरल कौशल का विकास करने के उपरान्त क्रमश: जटिल कौशलों का विकास किया जाता है।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन के लिए सूचनाओं को गहन स्तर पर व्यवस्थित किया जाता है तथा आवश्यकता होने पर उन सूचनाओं में, संशोधन करके उन्हें पुनर्व्यवस्थित कर लिया जाता है। यह यन्त्र छात्रों को उनकी उपलब्धि एवं त्रुटियों की मात्रात्मक जानकारी प्रदान करने में कोई त्रुटि नहीं करता तथा इस सम्बन्ध में छात्रों की जिज्ञासा का समाधान तुरन्त करता है।

कठिनाई होने पर इसकी जानकारी भी कम्प्यूटर के द्वारा अध्यापक को प्रदान की जाती है, जिससे उस छात्र की कठिनाइयों का अध्यापक के द्वारा समाधान किया जा सके। परन्तु कम्प्यूटर द्वारा अनुदेशन में, यदि अधिकांश छात्रों को कठिनाई अनुभूत होती है तो सम्पूर्ण अधिक्रम में पुन: सुधार कर लिया जाता है।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन की विशेषताएं

अनुदेशन प्रणाली में कंप्यूटर के प्रयोग की निम्न विशेषताएं हैं-

  1. कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रणाली का उपयोग कई प्रकार के विषयों के अनुदेशन में किया जा सकता है।
  2. कम्प्यूटर की सहायता से, छात्रों को व्यक्तिनिष्ठ पाठ उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
  3. कम्प्यूटर के द्वारा, विशाल सूचनाओं के भण्डार को संचित एवं व्यवस्थित किया जा सकता है।
  4. कम्प्यूटर के द्वारा छात्रों की आवश्यकतानुसार कार्य का चयन किया जा सकता है।
  5. छात्रों को अपनी अनुक्रियाएँ करने का अवसर प्राप्त होता है।
  6. छात्रों के उत्तर के उसी समय पुष्टि हो जाती है।
  7. कंप्यूटर सहायक अनुदेशन के प्रति, छात्रों में रुचि, सजगता, तत्परता का विकास होता है।
  8. अभिक्रमित रूप में गठित सामग्री को, रुचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाना सम्भव है।
  9. एक पाठ्यवस्तु के कई अनुदेशनों का वैयक्तिक अनुदेशन के आधार पर, विभिन्न योग्यताओं वाले छात्रों को, अध्ययन का अवसर प्राप्त होता है।
  10. कम्प्यूटर अध्यापक के लिए प्रभाव रूप से सहायक है।
  11. प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ, छात्रों की अनुक्रियाओं का अवलोकन भी किया जाता है।
  12. कम्प्यूटर से छात्रों के पूर्ण ज्ञान के सम्बन्ध में निर्णय लिया जा सकता है।
  13. शैक्षिक निर्देशन के क्षेत्र में यह छात्रों की त्रुटियों का उपचारात्मक हल करता है।
  14. शोध कार्य में, प्रदत्तों के संकलन एवं विश्लेषण में सहायक है।
  15. छात्रों के उत्तरों का अंकन व उनकी उपलब्धि का रिकार्ड रखने में सहायक है।
  16. छात्रों को, उनकी अनुक्रिया के उपरान्त, निरन्तर, पुनर्बलन देने में भी कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रणाली सहायक है।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रणाली के कार्य

अनुदेशन के क्षेत्र में कम्प्यूटर के निम्नलिखित कार्य हैं

  1. चुम्बकीय टेप, टेप एवं कार्डों पर विभिन्न विषयों से सम्बन्धित सूचनाओं का संग्रह करना।
  2. विभिन्न प्रकार के अभिक्रमित अनुदेशनों का संचय करना।
  3. विभिन्न प्रकार की संचित सूचनाओं में से आवश्यक सूचनाओं का चयन।
  4. संचित सूचनाओं का सम्प्रेषण करना ।
  5. अनुदेशन प्रणाली की आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
  6. वैयक्तिक भिन्नताओं के अनुसार अनुदेशन प्रदान करना।
  7. एक समय में 30 विद्यार्थियों को अनेक प्रकार के अनुदेश देना।
  8. छात्रों को स्वतः अनुदेशन प्राप्त करने में प्रवीण बनाना।

कंप्यूटर सहायक अधिगम

वर्तमान समय में सूचना तकनीकी एवं कम्प्यूटर के प्रयोग ने समाज के विभिन्न वर्गों/उपक्रमों में क्रान्ति सी ला दी है जिससे समाज में बदलाव आया है। शिक्षा क्षेत्र में भी कई क्रान्तिकारी परिवर्तन आये हैं। कम्प्यूटर एवं वेब आधारित ज्ञान ने शिक्षण एवं अधिगम को एक नया आयाम प्रदान किया है। इनके प्रयोग से शिक्षक एवं छात्र एक सामान्य मंच पर आकर नये अधिगम वातावरण का निर्माण करते हैं।

एक ओर शिक्षक कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट के द्वारा अपने शिक्षण को प्रभावी बनाकर उसे सशक्त तरीके से छात्रों के सामने प्रस्तुत करता है, दूसरी ओर इसी कम्प्यूटर के प्रयोग छात्र स्वगति से अधिगम करते हुए पाठ्य-वस्तु पर अधिकार प्राप्त करता है। इस प्रकार कम्प्यूटर सहायक अधिगम को ऐसी प्रणाली के रूप में देखा जा सकता है जिसमें छात्र और कम्प्यूटर नियन्त्रित पाठ्यक्रम प्रस्तुतिकरण के मध्य अन्तःक्रिया चलती रहती है।

जब तक कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति न हो जाए। कम्प्यूटर सहायक अधिगम की वैयक्तिक अनुदेशन प्रणाली के रूप में भी देखा जा सकता है जिसमें कम्प्यूटर द्वारा छात्रों के समक्ष पाठ्य-वस्तु का प्रस्तुतिकरण किया जाता है जिसमें विद्यार्थी स्वगति से सीखते हुए आगे बढ़ता है, तथा एक इकाई के परीक्षण में सफल होने के पश्चात् अगली इकाई पर बढ़ता है।

कंप्यूटर सहायक अनुदेशन की सीमाएं

  1. कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रणाली में टेलिटाइप पर उत्तरों को टाइप करना होता है या स्क्रीन पर, पैन से सही उत्तर को स्पर्श करना होता है। ध्वनि अथवा लेखन के आधार पर न तो छात्रों को अनुक्रिया का अवसर ही प्राप्त होता है और न ही कम्प्यूटर के द्वारा, इस आधार पर छात्रों की अनुक्रियाओं को विश्लेषित करने की क्षमता है
  2. शिक्षा में छात्रों की संवेगात्मक एवं कार्यात्मक शक्तियों का विकास महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है परन्तु इस प्रणाली के द्वारा, छात्रों का केवल, ज्ञानात्मक स्तर पर विकास सम्भव है। इस प्रकार कक्षा में छात्र व अध्यात्मक की अन्तःक्रिया के आधार पर तथा परम्परागत विधि के द्वारा ही छात्रों का संवेगात्मक विकास किया जा सकता है। कम्प्यूटर इस सम्बन्ध में कोई योगदान नहीं देता है।
  3. छात्रों की अनेक शैक्षिक व मनोवैज्ञानिक समस्याएँ केवल कम्प्यूटर के द्वारा ही हल नहीं की जा सकतीं। इसके लिए अध्यापक व निर्देशन विभाग की सीमायें नितान्त आवश्यक होती हैं।
  4. भाषा सम्बन्धी योग्यताओं का विकास प्रत्येक छात्र के लिए आवश्यक है परन्तु कम्प्यूटर के द्वारा, समस्त भाषा सम्बन्धी योग्यताओं का विकास असम्भव है। तर्क के अनुसार तथा अपेक्षित शैली के अनुसार, प्रस्तुतीकरण करने की क्षमता का विकास, संक्षिप्त वाक्यों व व्याख्याओं को विस्तार के साथ अभिव्यक्त करने जैसी योग्यताओं का विकास, कक्षा में, अध्यापक द्वारा ही किया जा सकता है।
  5. इस प्रणाली में, परम्परागत प्रणाली की अपेक्षा, छात्रों को अधिक थकान होती है क्योंकि इस विधि में छात्रों से अधिक लगन व सक्रियता की अपेक्षा होती है। यद्यपि परम्परागत व्याख्यान प्रणाली की अपेक्षा, इस प्रणाली द्वारा, छात्र कम समय में सीखते हैं परन्तु इसके उपरान्त भी, प्रयोगों व शोधों से स्पष्ट है कि इसमें कम समय में ही छात्र थक जाते हैं तथा लगभग 64% छात्र इस प्रणाली द्वारा प्राप्त किए जा रहे अनुदेशनों व अधिगम को बीच में ही छोड़ देना चाहते हैं।
  6. कंप्यूटर सहायक अनुदेशन प्रणाली में कुछ क्षणों के लिए भी यदि छात्र अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते तो उन्हें सम्बन्धित सूचनाओं का अधिगम नहीं हो पाता। परन्तु यह सम्भव नहीं है कि प्रत्येक छात्र, पूरे समय अधिगम कर सके। मनुष्य और मशीन की कार्य-प्रणाली में, विशेषकर गति की दृष्टि से अन्तर होता है।
  7. कंप्यूटर सहायक अनुदेशन का प्रयोग महंगा होने के कारण चयनित सेवाओं व उच्च संस्थानों में ही किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रणाली का प्रयोग केवल समृद्ध देश ही कर सके हैं। हमारे देश में भी इसकी सम्भावनाओं पर कार्य किया जा रहा है परन्तु भारत में इसका प्रयोग करने से पूर्व, पश्चिमी देशों में उसके उपयोग व सीमाओं के अध्ययन के आधार पर निर्णय करना आवश्यक है जिससे इस प्रणाली पर होने वाले व्यवहार तथा इसके उपयोगों में सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।
  8. भारत में, इसके प्रयोग से पूर्व, इसकी समस्त योजना तैयार करना, अध्यापकों का इसके लिए प्रशिक्षित करना, कक्षागृहों में संशोधन करना, सम्बन्धित शोधकार्यों को पूर्ण करना व इन यन्त्रों को व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराना भी एक जटिल कार्य है।
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