औपचारिक संगठन से आशय ऐसे संगठन से लगाया जाता है जिसमें सभी अधिकारियों के अधिकारों, कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की एकदम स्पष्ट व्याख्या कर दी गयी हो। ऐसे संगठन में प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित विधि से नियमों का पालन करते हुये कार्य करना पड़ता है। इस संबंध में विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित परिभाषाएं दी हैं-
जब किसी संगठन के दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाओं को किसी निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चेतनापूर्वक समन्वित किया जाता है, तो ऐसा संगठन औपचारिक संगठन कहलाता है।
औपचारिक संगठन में अमूर्त और बहुत कुछ स्थायी नियमों का समावेश होता है जो औपचारिक संगठन से तात्पर्य मानवीय अन्तर-संबंधों के ढंग से है जिसकी व्याख्या प्रणालियों, नियमों, नीतियों तथा अर्थव्यवस्था के संबंधों द्वारा की जाती है।
औपचारिक संगठन की विशेषताएँ
औपचारिक संगठन की विशेषताएँ निम्न है-
- औपचारिक संगठन की स्थापना स्वेच्छा से उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है ।
- इसमें प्रत्येक अधिकारी के अधिकार, कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की एकदम स्पष्ट व्याख्या की जाती है, और उनकी सीमाएं निर्धारित रहती हैं।
- इसमें सत्ता का भारार्पण ऊपर से नीचे की ओर चलता है।
- अधिकार एवं दायित्वों को स्पष्ट करने के लिए चार्ट एवं मैन्युअल का प्रयोग किया जाता है।
- यह संगठन पूर्णतया अव्यक्तिगत होता है।
- यह संगठन श्रम विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित होता है।
- इसमें आदेश की एकता का पालन किया जाता है।
- इसमें सभी व्यक्ति आपस में मिलकर कार्य करते हैं।
औपचारिक संगठन के लाभ
- समन्वय में सुविधा – औपचारिक संगठन में संबंधों की स्पष्ट व्याख्या की जाती है इसलिये क्रियाओं एवं व्यक्तियों के बीच समन्वय स्थापित करने की सुविधा रहती है।
- मधुर संबंध – औपचारिक संगठन में अधिकारों एवं दारित्यों की स्पष्ट व्याख्या होने के कारण इसमें संबंध बिगड़ने की आशंका नहीं होती है और मधुर संबंध बने रहते हैं।
- कर्मचारियों की कार्यकुशलता का मूल्यांकन – औपचारिक संगठन में अधिकार एवं दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या होने के कारण उनकी कार्यकुशलता का मूल्यांकन आसानी से हो जाता है।
- विशिष्टीकरण – औपचारिक संगठन श्रम विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित होता है इसमें विशिष्टीकरण के लक्षण पाये जाते हैं।
- स्पष्ट, निश्चित व भ्रम रहित – औपचारिक संगठन में भ्रम का कोई स्थान नहीं होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है, क्या उत्तरदायित्व हैं। इस प्रकार संगठन की समस्त क्रियायें निश्चित रहती है।
- पदोत्रति – औपचारिक संगठन में उच्च स्तर से निम्न स्तर तक सभी में पदोन्नति के मार्ग को प्रशस्त करती है।
- उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक औपचारिक संगठन संस्थागत उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
- पक्षपातरहित – औपचारिक संगठन में सभी कार्य नियमानुसार एवं सिद्धान्तों के अनुसार किये जाते हैं। इसलिये पक्षपात होने का डर नहीं रहता है।
- प्रणाली का महत्व औपचारिक संगठन में इस प्रणाली का विशेष महत्व होता है क्योंकि इसमें व्यक्ति विशेष का महत्व समाप्त हो जाता है।
- अन्य लाभ औपचारिक संगठन से निम्नलिखित अन्य लाभ प्राप्त होते है –
- इसमें लाल फीताशाही समाप्त हो जाती है।
- साधनों का सर्वोत्तम उपयोग होता है।
- सुरक्षा की भावना बनी रहती है।
- असफलता का दोष दूसरों पर आरोपित नहीं किया जा सकता है।
औपचारिक संगठन के दोष
औपचारिक संगठन के दोष निम्नलिखित हैं-
- पहल का अभाव चूँकि इस प्रकार के संगठनों मेंअधिकार एवं दायित्व पहले से निर्धारित कर लिये जाते हैं इसलिये कर्मचारियों की पहल शक्ति का कोई उपयोग नहीं होता है। अतः उनकी पहल शक्ति खत्म हो जाती है।
- अव्यावहारिक इस प्रकार के संगठनों में कार्यों का संचालन चार्ट और मैन्युअल के द्वारा किया जाता है। अर्थात् इसमें यांत्रिक रूप से काम किया जाता है।इसलिये ये प्रणाली व्यावहारिक प्रतीत होती है।
- अधिकारों का इस प्रकार के संगठन में . अधिकारों के भारार्पण पर जोर दिया जाता है। अतः अधिकारों के दुरुपयोग की गुंजाइश बनी रहती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि औपचारिक संगठन में लोग काम कम करते हैं और अपने दायित्व का भार दूसरों पर आरोपित करते रहते हैं।
- मानवीय भावनाओं की उपेक्षा औपचारिक संगठन में मानवीय भावनाओं से कोई मतलब नहीं होता है। इसका कारण यह है कि यह अव्यक्तिगत है इसमें कानून, नियम, सिद्धान्त, प्रणाली पर ध्यान दिया जाता है।
- कठोर प्रणाली -औपचारिक संगठन को कठोर प्रणाली कहा जाता है क्योंकि इसमें सभी कार्य नियम, कानून, सिद्धान्त, पद्धति के अनुसार किया जाता है। इस प्रणाली में लोच नाम की कोई चीज नहीं होती है अर्थात कठोरता रहती है।
- अन्य दोष – औपचारिक संगठन में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं।
- नौकरशाही बढ़ती है।
- समन्वय और नियंत्रण की समस्याएं बढ़ती है।
- संबंधों के विकास में बाधा बढ़ती है।
- लोगों की नियमों के अनुसार कार्य करने की आदत पड़ जाती है।
- नियमों की अधिकता के कारण लालफीताशाही बढ़ती है।