ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर उन प्रोग्रामों का संकलन होता है जो एक कम्प्यूटर के सम्पूर्ण प्रचालन का नियंत्रण करते हैं। यह कम्प्यूटर उपयोगकर्ता एवं कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है। यह ऐसा सॉफ्टवेयर है जो अन्य प्रोग्रामों के निष्पादन का नियंत्रण करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम सॉफ्टवेयर सिड्यूलिंग, डीबगिंग, इनपुट/आउटपुट कन्ट्रोल, स्टोरेज एसाइन्मेन्ट, डाटा मैनेजमेन्ट एवं मुहरबन्द सेवाओं को कम्प्यूटर पर चलने वाले अन्य प्रोग्रामों को देता है। संक्षेप में ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर का संसाधन प्रबन्धक होता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार
ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
- बैच प्रोसेसिंग (Batch Processing) – बैच प्रोसेसिंग सिस्टम जॉब को स्वीकार करता है तथा उन्हें निष्पादन की प्रतीक्षा करने के लिए लाइन में रखता है। इसमें प्रोसेसिंग का कार्य समूहों या बेचो में किया जाता है। इस प्रक्रिया को बहुधा स्पूलिंग (Spooling) कहते हैं। स्पूलिंग जब जॉब लाइन में होते हैं निष्पादन का समय उपलब्ध हो जाता है, ऑपरेटिंग सिस्टम जॉब रेखा से वरीयताओं के आधार पर जॉब का चयन कर लेता है।
- यूनिप्रोग्राम ओ.एस. – इसमें दूसरा प्रोग्राम केवल तभी निष्पादन करता है जब पहला पूर्ण हो जाता है।
- मल्टीप्रोग्रामिंग ओ. एस. – यह उस अवधारणा की करता है जिसमे एक से अधिक प्रोग्राम एक साथ सक्रिय होते हैं। एक सक्रिय प्रोग्राम समयती रूप से चलाया जाता है तथा रन मोड में एक सक्रिय प्रोग्राम सी. पी. यू. का उपयोग करता है और दूसरा इनपुट आउटपुट डिवाइस का उपयोग करता है अथवा उपलब्ध होने वाले संसाधनों हेतु प्रतीक्षा की स्थिति में रहता है।
- मल्टीटास्किंग ओ.एस./ टाइम शेयरिग/इण्टरएक्टिव ओ. एस. – यह मल्टी प्रोग्रामिंग का विस्तार है इसमें कई कार्य एक साथ किए जाते हैं। प्रोसेस के बीच सी. पी. यू. की स्विचिंग इतनी अधिक तीव्र होती है जोकि उपयोगकर्ता को यह प्रभाव छोडती है कि सभी प्रक्रियायें समवर्ती रूप से की जाती है।
- मल्टी प्रोसेसर ओ.एस./समानान्तर सिस्टम /मजबूती से संयोजित सिस्टम – मल्टीप्रोग्रामिंग सिस्टम एक सी. पी. यू. पर एक साथ दो अथवा अधिक प्रोग्राम निष्पादित करता है। इसके विपरीत मल्टी प्रोसेसिंग में दो अथवा अधिक सी. पी. यू द्वारा एकल प्रोग्राम को प्रोसेस किया जाता है। मल्टी प्रोसेसिंग का सर्वाधिक विशिष्ट प्रकार उन सिस्टम में होता है जो बैच मोड एवं कई दूरस्थ टर्मिनल दोनों में सपोर्ट करते हैं। जब एक सिस्टम में सपोर्ट करने के लिए केवल कुछ दूरस्थ टर्मिनल होते हैं तो मुख्य सी. पी. यू. सभी टर्मिनल बाधाओं तथा आसान जॉब जैसे सम्पादन का हस्तगन कर सकता है। परन्तु कई दूरस्थ टर्मिनलों की प्रोसेसिंग बाँधनीयताएँ मुख्य सी. पी. यू. को ओवरलोड कर सकती है मुख्य सी. पी. यू. बैंच जॉब को प्रोसेस करता है तथा उन अन्तर्क्रियात्मक प्रोग्रामों को निष्पादित करता है जिनका प्रण्ट एण्ड प्रोसेसर हस्तगन नहीं कर सकता। इसमें सम्प्रेषण शेयरिंग में एक से अधिक प्रोसेसर कम्प्यूटर बस, क्लॉक, मेमोरी तथा पेरीफेरल डिवाइस होते हैं।
- रियल टाइम प्रोसेसिंग ओ. एस. – इस प्रकार की प्रोसेसिंग में प्रोग्राम के निष्पादन के दौरान उपयोगकर्ता द्वारा कम्प्यूटर के साथ अन्तर्क्रिया की जाती है।
- डिस्ट्रीब्यूटेड डाटा प्रोसेसिंग – इसमें डाटाबेस को केन्द्रीय स्थान में रखा जाता है परन्तु इसकी प्रोसेसिंग विभिन्न स्थान पर होती है। इसके अन्तर्गत कई यूजर एकल अनुप्रयोग पैकेज का उपयोग कर सकते हैं तथा वे सभी डाटा का अद्यतन एवं परिवर्तन कर सकते हैं। विभिन्न कम्प्यूटरों का एक नेटवर्क बनाया जाता है जिसमें डाटा को एक सिस्टम से अन्य सिस्टम में अन्तर्परिवर्तित किया जा सकता है।
- ऑफलाइन प्रोसेसिंग – इसके अन्तर्गत डाटा को मेग्नेटिक डिस्क अथवा टेप में इनपुट कराया जाता है। यह डाटा सी. पी. यू. में एक साथ प्रोसेस किया जाता है। इनपुट को बैचों में सी. पी. यू. के लिए हस्तांतरण करते हैं। ऑफ लाइन प्रोसेसिंग का मिनी कम्प्यूटर द्वारा व्यापक रूप से प्रयोग होता है।


डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम
सॉफ्टवेयर ऐसे निर्देश देता है जो हार्डवेयर को यह सटीक रूप में बताते हैं कि क्या करना है: सामान्य रूप में, एक ऑपरेटिंग सिस्टम एक ऐसा प्रोग्राम होता है जो यूजर एप्लीकेशन प्रोग्राम एवं कम्प्यूटर के बीच इन्टरफेस प्रदान करता है। यह कम्प्यूटर को दिये जाने वाले इनपुट तथा कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाले आउटपुट का नियंत्रण करता है। अधिक विशिष्ट रूप से एक डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम स्टोरेज हेतु डिस्क का उपयोग करने के लिए आसान तरीका बताने के लिए डिजायन किया जाता है।
डॉस द्वारा डिस्क, एप्लीकेशन/सिस्टम प्रोग्राम एवं कम्प्यूटर सिस्टम में स्टोर सूचनाओं को संगठित करने एवं उपयोग करने की विधि उपलब्ध करायी जाती है। डॉस कम्प्यूटर को यह भी निर्देश देता है कि उस सूचना को कैसे पढ़ा जाय जो डिस्क पर स्टोर की गयी है। यह भी डिस्क अथवा मेमोरी में सूचना को खोजता है तथा अन्य डिवाइस पर नियंत्रण भी करता है। डॉस एक डिस्क पर फाइलों की डाइरेक्टरी उपलब्ध कराकर डिस्क पर सूचना को सुरक्षित करता है तथा पुनः प्राप्त करता है तथा हमें डिस्क पर डाटा के भौतिक स्थान को जानने की आवश्यकता नही होती है। डॉस (DOS) निम्नलिखित तीन शब्दों से बना है – डिस्क, ऑपरेटिंग, सिस्टम।
इसका आशय उस सिस्टम या प्रोग्राम से है जो डिस्क (हार्डडिस्क अथवा फ्लॉपी डिस्क) का संचालन करता है। एम एस डॉस (माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम) को मूलरूप से प्रोसेसर चिप्स (सी.पी.यू.) वाले इनटेल के 8086/8088 परिवार का उपयोग करके पर्सनल कम्प्यूटरों के लिए वर्ष 1980 में विकसित किया गया था।
यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम
यूनिक्स एक बहु-उपयोगकर्ता तथा बहु-कार्य करने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसका विकास एक अमेरिकन कम्पनी एटी एवं टी कम्पनी द्वारा किया गया था। यह सबसे बड़ा एवं सर्वाधिक विश्वसनीय आपरेटिंग सिस्टम है जिसे विश्वभर में उपयोग किया जाता है। इसे एक प्रतिष्ठित अमेरिकी बेल लेबोरेटरीज के कन थॉम्पसन द्वारा मल्टीकॉस्ट आपरेटिंग सिस्टम के सुधार के रूप में विकसित किया गया था। यह आपरेटिंग सिस्टम आशिक रूप से ‘सी’ भाषा में तथा आंशिक रूप से असेम्बली भाषा में लिखा जाता है।
यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के लक्षण
यूनिक्स के निम्नलिखित लक्षण होते हैं-
- कई कार्य करने वाला (Multi-tasking) – यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम से एक ही समय में कई कार्य किए जा सकते हैं। इस प्रकार यह बहुत उपयोगी होता है।
- बहु-उपयोगकर्ता (Multiuser) – यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम में कई उपयोगकर्ता कार्य किए जा सकते हैं। टर्मिनलों की मदद से नेटवर्किंग का उपयोग करके कार्य कर सकते हैं।
- वहनीयता (Portability) – यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम वाले कम्प्यूटरों में सभी प्रकार के
- सुरक्षा (Security) – यूनिक्स ने सुरक्षा की ओर बहुत ध्यान दिया है। एक उपयोगकर्ता वैध – पासवर्ड का उपयोग करने के बाद यूनिक्स में लॉग इन कर सकता है। कोई अनाधिकृत व्यक्ति उपयोगकर्ता की फाइलों को नहीं देख सकता।
- टाइम शेयरिंग (Time Sharing) – यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम टाइम शेयरिंग पर निर्भर करता है। प्रत्येक उपयोगकर्ता का प्रोग्राम सिस्टम की मेमोरी में लोड रहता है तथा तदनुसार सी पी यू के आवंटन समय को अनुसूचित करता है।
- संचार (Communication) – यूनिक्स में डाटा एवं फाइलों को इण्टरनेट, टेलीफोन, माइक्रोवेब सेटेलाइट के माध्यम से संचालित किया जाता है।
- शेल प्रोग्रामिंग (Shell Programming) – यूनिक्स में कमाण्ड इण्टरप्रेटर को शैल कहते हैं। यूनिक्स में बोर्न एवं सी शैल उपयोग किए जाते हैं। बोर्न शैल को स्टीफेन बोर्न द्वारा विकसित किया गया था। सी शैल कमाण्ड सी भाषा के समतुल्य होते हैं।
- ग्राफिक्स (Garphics) – यूनिक्स का उपयोग 3 डी ग्राफिक्स एवं इंजीनियरिंग विकास हेतु किया जाता है। यूनिक्स में शब्द की लम्बाई 64 बिट होती है जबकि डॉस में शब्द की लम्बाई 32 बिट होती है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य
ऑपरेटिंग सिस्टम के निम्नलिखित कार्य है-
- मेमोरी प्रबंधन कार्य – ऑपरेटिंग सिस्टम के मेमोरी प्रबन्धन कार्य निम्नलिखित है-
- मेमोरी के आकार को ट्रैक पर रखना।
- मेमोरी का उस समय आवंटन करना जब कोई प्रोसेस इसके लिए अनुरोध करें।
- एक बार प्रक्रिया के समाप्त हो जाने पर मेमोरी से प्रोसेस करना।
- प्रोसेस प्रबन्धन कार्य – ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोसेस सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित है-
- निष्पादन में प्रोसेस को ट्रैक पर रखना।
- कौन-सा प्रोग्राम निष्पादित किया जाना है तथा उसका निष्पादन कब किया जायेगा इसका निर्धारण करना एवं सूची बनाना।
- डिवाइस प्रबन्धन कार्य – ऑपरेटिंग सिस्टम के डिवाइस सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित है-
- विभिन्न संसाधनों जैसे की-बोर्ड, प्रिन्टर, स्कैनर आदि को ट्रैक पर रखना।
- संसाधनों के आवंटन हेतु प्रभावशाली तरीके का निर्धारण करना।
- सूचना प्रबन्धन कार्य – ऑपरेटिंग सिस्टम के सूचना प्रबन्धन कार्य निम्नलिखित हैं-
- फाइलों, इनके स्थान उपयोग एवं प्रस्थिति को ट्रैक पर रखना।
- यह निर्धारण करना कि संसाधनों को कौन प्राप्त करता है।