उदारवादी व उपयोगितावादी शिक्षा – शिक्षा शब्दकोश के अनुसार Liberal Education का अर्थ है Non Vocational Education अर्थात उदार शिक्षा, सामान्य शिक्षा अथवा अव्यवसायिक शिक्षा। उदार शिक्षा प्रायः सामान्य शिक्षा होती है जिसमें साहित्य कला, संगीत, इतिहास, नीति शास्त्र, राजनीति आदि की शिक्षा की प्रधानता होती हैं। उदार शिक्षा की प्रकृति अत्यंत प्राचीन है। विदेश में शिक्षा का अधिकार केवल स्वतंत्र व्यक्तियों को प्राप्त था। ग्रीक समाज में दास व्यवस्था थी।
राजा या जमीदार को दी जाने वाली शिक्षा उदारवादी शिक्षा के नाम से जानी जाती थी। इसमें तक व्याकरण, गणित, संगीत और खगोल शास्त्र पढ़ाया जाता था। उस काल में इसे सामान्य शिक्षा कहा जाता था। समाज का वह वर्ग आर्थिक चिंताओं से मुक्त था। भारत में भी राजाओं को राजनीति, नीति, धर्म शास्त्र की सामान्य शिक्षा और जनसाधारण को सिर्फ या व्यवसायिक शिक्षा देने की परंपरा थी।

उपयोगितावादी शिक्षा का अर्थ
Utilitarian शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द यूटिलिटी से बना है, जिसका शिक्षा शब्दकोश के अनुसार तात्पर्य है यूज़फुल एवं अर्थात केवल उपयोगी ज्ञान ही दिया जाना चाहिए। उपयोगी शिक्षा की अवधारणा आधुनिक शिक्षा से प्रेरित है। इस शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है। यह शिक्षा व्यवसायिक कार्यो ने मुखिया केंद्रित अर्थ उपार्जन एवं जीविकोपार्जन के उद्देश्य को लेकर चलती है। इसमें कला, शिल्प, व्यवसाय रोजगार परक विषयों की प्रधानता होती है।
शिक्षा द्वारा समाज के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। शिक्षा के स्वरूप का का उदारवादी से उपयोगिता वादी तक का परिवर्तन समाज की गतिशीलता का परिणाम है, क्योंकि प्राचीन समय में जब समाज का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति था तब शिक्षा उदार थी और अब इसके उद्देश्यों के साथ आर्थिक पक्ष जुड़ गया तो शिक्षा उपयोगितावादी हो गई है।

उदारवादी व उपयोगितावादी शिक्षा का महत्व
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन दोनों प्रकार की शिक्षाओं का महत्व निम्न बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
- अनुशासन तथा स्वतंत्रता
- समाज का विकास
- प्रेरणादायक
- संस्थागत नियोजन में सहायक
- सभ्यता व संस्कृति
1. अनुशासन तथा स्वतंत्रता
शिक्षा तथा अनुशासन सदैव एक दूसरे से संबंधित रहे हैं। आदर्शवादी शिक्षक छात्र को निश्चित शाश्वत मूल्यों को प्राप्त करने के लिए दबाव डाल सकता है तथा इस संबंध में वह दंड देने में भी संकोच नहीं करता किंतु प्रगतिवादी प्रकृति के द्वारा दिए गए दंड तथा अनुशासन को ही नैतिक मानकर मनुष्य के यहां से इस अधिकार को छीन लेता है।
अनुशासन का उद्देश्य भविष्य में सतगुरु की उत्पत्ति तथा व्यक्तित्व का विकास है। उदारवादी एवं उपयोगिता वाली शिक्षा में दोनों की आवश्यकता होती है।

2. समाज का विकास
उदारवादी शिक्षा सीखने की क्रिया द्वारा व्यक्ति के विकास पर बल देती है। यह उसके शरीर मन बुद्धि तथा आत्मा आज सभी पहलुओं का विकास पूर्व मुखी रूप में करती है। क्या मानव समाज के विकास के लिए एक सतत क्रिया और आधार है या बदलती हुई परिस्थितियों के समरूप समर्थ दृढ़ व नमनशील बनने की शक्ति एवं अभिप्रेरणा देती है। यह मानव संसाधनों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
3. प्रेरणादायक
उदार शिक्षा प्राय: प्रेरणावादी होती हैं। विवेकानंद जी ने युवकों को संबोधित करते हुए अपने अमृत संदेश में कहा है तुम्हें ध्येयवादी युवक होना चाहिए। मनुष्य को केवल मनुष्यों की आवश्यकता होती है और सब कुछ हो जाएगा किंतु आवश्यकता है वीर्यवान, तेजस्वी, पूर्ण प्रमाणिक नव युवकों की।
4. संस्थागत नियोजन में सहायक
डॉक्टर जेपी नायक का मत है कि संस्थागत योजना का विचार आज की परिस्थिति के लिए आवश्यक उपयुक्त और वांछनीय है। आज जहां एक और जीवन प्रतिक्षण ग्राहक एवं व्यापक होता जा रहा है वही जो भी सूक्ष्म और सूक्ष्मतर है। मनुष्य चंद्रमा में निवास करने की दिशा में अग्रसर है और इस प्रकार या संपूर्ण सृष्टि उसकी व्यापक दृष्टि के अंतर्गत है साथ ही वह परमाणु पर खोज करने में भी संलग्न है।

इस प्रकार महानतम से लघुत्तम तक होने वाली इस समस्त मानव प्रक्रिया से सभ्यता की प्रगति होती है। ईश्वरी सत्ता का सच्चा ज्ञान हमें तभी होता है। जब एक और हम अपने स्व का विस्तार करते करते अनंत में लीन हो जाते हैं तथा दूसरी और लघु से लाभ तथा नगाड़े से नगाड़े के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करते हैं। अरस्तु एक और तो हमारी शिक्षा की दृष्टि इतनी व्यापक होनी चाहिए। कि वह समस्त ब्रह्मांड तथा विश्व के मनुष्य के शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के पुनरीक्षण को अपने में समाहित कर ले।
5. सभ्यता व संस्कृति
प्राचीन काल से ही मनुष्य जीवन समुन्नत करने के लिए अन्वेषण के लिए अन्वेषण कर रहा है। आज रेल, वायुयान आदि आवागमन के साधन उपलब्ध है। औषधियों में बहुत विकास हो गया है। यह सभ्यता का विकास है। जब इन पदार्थों एवं वस्तुओं का मन पर प्रभाव पड़े और मूल्यों में परिवर्तन आए तो उसे संस्कृति कहते हैं। संस्कृति में उद्देश्य लक्ष्य कला नैतिकता आदि की प्रधानता रहती है।