ई लर्निंग विशेषताएँ उपकरण प्रकार शैली उपयोगिता व सीमाएँ

ई लर्निंग इलेक्ट्रॉनिक लर्निंग का संक्षिप्त रूप है। इसका शाब्दिक अर्थ ऐसे अधिगम या सीखने से है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, माध्यमों या संसाधनों की सहायता से सम्पादित किया जाता है। ई लर्निंग में सभी प्रकार के आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक साधनों जैसे- सीडी रोम, डी.वी.डी. टेलीकॉन्फ्रेंसिंग, इंटरनेट, ऑन लाइन लर्निंग, वेबसाइट पर उपलब्ध पाठ्यपुस्तक, सहायक पाठ्य सामग्री इत्यादि का प्रयोग शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में किया जाता है।

ई लर्निंग

छात्रों को उत्तम सुविधाएँ और गुणवत्तापरक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं विशिष्ट रूप से विश्वविद्यालयों में ई-लर्निंग केन्द्रों की स्थापना पर बल दिया जा रहा है। जिससे हजारों लाखों विद्यार्थियों को एक साथ सामग्री या अन्य सुविधाएँ प्रदान की जा सकें। कम्प्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष तथा गुरु गोविन्द सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय नई दिल्ली के वी.सी. प्रो. के. के. अग्रवाल का कहना है कि, “दूर-दराज के क्षेत्रों में, जहाँ गुणात्मक शिक्षा एवं उच्च योग्यता वाले शिक्षकों की कमी है वहाँ ई लर्निंग काफी उपयोगी सिद्ध हो रही है। “

रोजेनबर्ग 2001 ने ई-लर्निंग शब्द को परिभाषित करते हुए लिखा है- “ईलर्निंग से तात्पर्य इंटरनेट तकनीकियों के ऐसे उपयोग से है जिनसे विविध प्रकार के ऐसे रास्ते खुलें । जिनके द्वारा ज्ञान और कार्यक्षमताओं में वृद्धि की जा सके।”

वास्तव में ई लर्निंग हमारी दिन-प्रतिदिन की जिन्दगी में उपयोग में आने वाली एक ऐसी आधुनिक तकनीक अथवा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी है। जिसमें कम्प्यूटर सम्बन्धी इंटरनेट तथा वेब तकनीकी सेवाओं का उपयोग विद्यार्थियों के अधिगम अनुभव प्रदान करने के लिए किया जाता है। किन्तु ई-लर्निंग के लिए यह आवश्यक है कि विद्यार्थियों के पास हार्डवेयर कम्प्यूटर, लेपटॉप, सॉफ्टवेयर सामग्री तथा उसे प्रयोग करने की आवश्यक जानकारी तथा कुशलता होनी चाहिए। साथ ही इंटरनेट तथा वेब तकनीकी द्वारा प्रदत्त सुविधाओं से लाभ उठाने की अपेक्षित कुशलता होनी चाहिए।

ई लर्निंग की विशेषताएँ

ई-लर्निंग के स्वरूप के आधार पर इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. ई लर्निंग या इलेक्ट्रॉनिक अधिगम में कम्प्यूटर सेवाओं की अनिवार्य रूप से आवश्यकता होती है।
  2. ई-लर्निंग कम्प्यूटर विज्ञान की इंटरनेट तथा वेब टेक्नोलॉजी पर आधारित ऑन लाइन एजुकेशन है। जिसमें पढ़ने और पढ़ाने के लिए न तो समय का ही कोई बंधन होता है और न ही किसी स्थान विशेष का महत्व ।
  3. इस प्रणाली में शिक्षक तथा छात्र के बीच फेस-टू-फेस इंटरएक्शन का माध्यम ऑन लाइन एवं इंटरनेट टेक्नोलॉजी होती है।
  4. ई – लर्निंग को दृश्य-श्रव्य अधिगम था, दूरस्थ अधिगम का पर्याय नहीं माना जा सकता। क्योंकि आज दृश्य-श्रव्य तथा बहुमाध्य तकनीकी तथा दूरवर्ती शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम कम्प्यूटर तथा इंटरनेट एवं वेब सेवाओं पर बहुत कुछ निर्भर है किन्तु इन्हें ई लर्निंग की पर्याय न मानकर इसकी सहायक परिस्थितियाँ माना जा सकता है।
  5. ई-लर्निंग में इंटरनेट या वेब आधारित सम्प्रेषण सेवाओं जैसे ई-मेल, ऑडियो एवं वीडियो कॉफ्रेंसिंग, मेल लिस्ट, लाइव चैट्स तथा टेलीफोन का प्रयोग किया जाता है।
  6. ऑन लाइन शिक्षा परम्परागत शिक्षा से काफी सस्ती तथा प्रभावी है। यदि किसी विद्यार्थी का लगभग पचास प्रतिशत लेक्चर छूट गया है वह नहीं देख-सुन पाया है तो प्लेबैंक कर पूरे लेक्चर का लाभ उठा सकता है।
  7. इस प्रणाली का प्रयोग विभिन्न कम्पनियाँ भी अपने स्टाफ को प्रशिक्षण देने के लिए बड़े पैमाने पर कर रही हैं।
शैक्षिक तकनीकीशैक्षिक तकनीकी के उपागमशैक्षिक तकनीकी के रूप
व्यवहार तकनीकीअनुदेशन तकनीकीकंप्यूटर सहायक अनुदेशन
ई लर्निंगशिक्षण अर्थ विशेषताएँशिक्षण के स्तर
स्मृति स्तर शिक्षणबोध स्तर शिक्षणचिंतन स्तर शिक्षण
शिक्षण के सिद्धान्तशिक्षण सूत्रशिक्षण नीतियाँ
व्याख्यान नीतिप्रदर्शन नीतिवाद विवाद विधि
श्रव्य दृश्य सामग्रीअनुरूपित शिक्षण विशेषताएँसूचना सम्प्रेषण तकनीकी महत्व
जनसंचारश्यामपट

ई लर्निंग के उपकरण एवं तकनीक

ऑन लाइन शिक्षा प्रणाली में विभिन्न प्रकार की तकनीकों का उपयोग किया जाता है। ये तकनीकी आई.टी. और टेलीकम्युनिकेशन से सम्बन्धित होती हैं।जैसे-

  1. सॉफ्टवेयर
  2. कम्प्यूटर एडेड एसेसमेंट
  3. ई-मेल एवं चैटिंग
  4. एनिमेशन
  5. सिमुलेशन
  6. वीडियो, ऑडियो एवं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग इत्यादि ।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ई लर्निंग का आधार ई-मेल होता है जिसके लिए एक कम्प्यूटर या लेपटॉप के साथ-साथ इंटरनेट से जुड़ी सभी आवश्यक तकनीकियों का होना आवश्यक है। चैट कम, मल्टी यूजर डोमेस, माइक्रोसॉफ्ट वर्ड और ई. एम. एस. की सुविधाएँ ई लर्निंग के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हैं। इन उपकरणों के माध्यम से शिक्षक और छात्र अपने समय गति और क्षमता के अनुसार आपस में सूचनाओं तथा आदान-प्रदान करते हैं। आजकल ई-मेल संचार का सबसे अधिक लोकप्रिय माध्यम है। शिक्षक छात्रों को नोट्स बांटने या प्रोजेक्ट बाँटने में इसी का प्रयोग करते हैं।

एम यू डी और एम ओ ओ के माध्यम से छात्रों के मध्य बहस को अधिक सक्रिय बनाया जा सकता है। यह माध्यम से जोड़ा जाता है। एक चैट कम होता है जिसमें इंटरनेट के यूजर्स परस्पर सम्बन्धित लोग एक ही समय में सूचनाओं का आपस में आदान-प्रदान कर सकते हैं। एम ओ ओ किसी एक विषय पर ही केन्द्रित होता है, जिसे डायलाइन टेलनेट के जरिये पढ़ा जा सकता है।

ई-लर्निंग के दौरान लाइव या प्री- रिकॉर्डिंग वीडियो और ऑडियो के प्रयोग द्वारा इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है। वेब कॉन्फ्रेंसिंग और ऑन लाइन कोर्स मैनेजमेंट ई लर्निंग को और आकर्षक बनाते हैं। ईलर्निंग के स्वर्णिम भविष्य को देखते हुए इसमें अरबों डॉलर तक निवेश किया जा रहा है। अनुमानतः 2000 से 2013 के मध्य उच्च शिक्षा की तकनीक एवं ऑन लाइन टूल्स में लगभग दस अरब डॉलर तक का निवेश किया जाएगा।

ई-लर्निंग द्वारा शिक्षा सम्बन्धी कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है। आज उच्च शिक्षा की कारपोरेट शिक्षा में जोड़ा जा रहा है। कई विश्वविद्यालय कम्पनियों के अनुरोध पर उनके कर्मचारियों के लिए विशेष ऑनलाइन पाठ्यक्रम की सुविधा देते हैं। ई शिक्षा के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी देश में कोर्स किया जा सकता है। जैसे-दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति चाहे तो घर बैठे इंग्लैण्ड, न्यूयार्क या किसी भी अन्य देश में ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सकता है।

ई लर्निंग के प्रकार

ई लर्निंग में विभिन्न प्रारूप निम्नलिखित हैं-

  1. अवलम्ब अधिगम
  2. मिश्रित अधिगम
  3. पूर्ण ईलर्निंग

अवलम्ब अधिगम

ई-लर्निंग द्वारा कक्षा-कक्ष शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाता है। इस प्रकार के लर्निंग प्रारूप का प्रयोग शिक्षक एवं विद्यार्थीगण दोनों ही अपने-अपने शिक्षण एवं अधिगम कार्यों को अच्छा बनाने के लिए कर सकते हैं। उदाहरणार्थ वे मल्टीमीडिया, इंटरनेट तथा वेब टेक्नॉलोजी का प्रयोग कक्षा शिक्षण दौरान शिक्षण और अधिगम दोनों ही कार्यों में अपेक्षित सफलता प्राप्त करने हेतु कर सकते हैं।

मिश्रित अधिगम

ई-लर्निंग के इस प्रारूप में परम्परागत तथा आधुनिक सूचना का सम्प्रेषण तकनीकी पर आधारित दोनों ही प्रकार की तकनीकियों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार प्रारूप में कार्यक्रम और गतिविधियों को इस प्रकार नियोजत और क्रियान्वित किया जाता है कि परम्परागत कक्षा शिक्षण एवं ई लर्निंग दोनों पर आधारित अनुदेशन का शिक्षण-अधिगम हेतु लाभ उठाया जा सके।

पूर्ण ई-लर्निंग

इस प्रकार के अधिगम में परम्परागत शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की तरह पारस्परिक अन्तःक्रिया का कोई स्थान नहीं होता। विद्यार्थियों के समक्ष पूर्ण रूप से संरचित ई लर्निंग पाठ्यक्रम तथा अधिगम सामग्री होती है जिसे वे स्वतन्त्र वातावरण में अपनी गति एवं रुचि के अनुसार ग्रहण करने का प्रयास करते हैं। अधिगम क्रियायें मुख्यतः ऑन लाइन ही सम्भव होती हैं। आवश्यकतानुसार विद्यार्थी सीडी रोम तथा डी वी डी की भी सहायता ले सकते हैं। इस प्रकार की ई-लर्निंग में मुख्य रूप से एसेक्रोनस एवं सेक्रोनस सम्प्रेषण शैली का प्रयोग किया जाता है।

ई लर्निंग की शैली

अतः इंटरनेट सेवाओं के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से परम्परागत कक्षा शिक्षण, अन्तः क्रिया न हो पाने के स्थान पर अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षक व छात्र एक-दूसरे के सामने आकर अधिगम गतिविधियों में संलग्न रहने का अवसर प्राप्त होता है।

एसेंक्रोनस सम्प्रेषण शैली

इस प्रकार के सम्प्रेषण में शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों एक साथ उपस्थित नहीं होते। अध्ययन सामग्री पहले से ही वेब पेज, वेब लॉग या ब्लॉग्स विकीज और रिकॉर्डिड सी डी रोम एवं डी वी डी के रूप में उपलब्ध होती है। विद्यार्थी किसी भी समय अपनी सुविधा एवं गति के अनुसार उसका प्रयोग कर सकता है तथा दिये हुए कार्य को पूरा करके ई-मेल द्वारा शिक्षक को प्रेषित कर सकता है और अध्यापक अपनी सुविधानुसार उसकी जाँच कर विद्यार्थी को अध्ययन हेतु आगे बढ़ने के लिए कह सकता है।

सिंक्रोनस सम्प्रेषण शैली

इस सम्प्रेषण शैली के अन्तर्गत शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों ही एक निश्चित समय विशेष में इंटरनेट पर ऑन लाइन चैटिंग या ऑडियो-वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए उपस्थित होते हैं। इस प्रकार के सम्प्रेषण शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के साथ आवश्यक सूचनाओं, अधिगम सामग्री इत्यादि में भागीदारी करने का अवसर प्रदान करता है। विद्यार्थी अपनी समस्याओं के समाधान हेतु प्रश्न पूछ सकते हैं तथा शिक्षक द्वारा आवश्यक प्रतिपुष्टि प्राप्त कर सकते हैं।

ई-लर्निंग की उपयोगिता

ई लर्निंग वैयक्तिक व सामूहिक दोनों ही दृष्टियों से शिक्षण-अधिगम के क्षेत्र में उपयोगी हो सकती है। संक्षेप में इसकी उपादेयता निम्न प्रकार है-

  1. ई-लर्निंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह विद्यार्थी को उनकी अपनी आवश्यकताओं, योग्यताओं, क्षमताओं, मानसिक स्तर तथा उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप अधिगम अनुभव प्रदान करने की सामर्थ्य रखती है।
  2. इसके द्वारा वे सभी व्यक्ति शिक्षा का लाभ प्राप्त कर सकते हैं किन्हीं कारणों से परम्परागत शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से नहीं जुड़ पाते हैं।
  3. ई लर्निंग द्वारा विद्यार्थियों को दुनिया की सबसे उत्तम अध्ययन सामग्री ज्ञान भंडार व ज्ञानार्जन के अवसर एक साथ एक से अधिक विद्यार्थियों को एक ही समय में प्रदान किये जा सकते हैं।
  4. ईलर्निंग की एक मुख्य विशेषता इसका लचीलापन है। इसमें अधिगमकर्ता किसी भी माध्यम जैसे- सीडी, डीवीडी कम्प्यूटर तथा मोबाइल फोन से पाठ्यवस्तु को छोटे-छोटे पदों के रूप में आवश्यकतानुसार ग्रहण कर सकता है।
  5. ई-लर्निंग का प्रयोग विद्यार्थियों को अधिगम करने के लिए अभिप्रेरित करने व उनकी रुचि को बनाने में भी किया जा सकता है। क्योंकि विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार कभी मल्टीमीडिया कभी इंटरनेट तथा वेब टेक्नोलॉजी इत्यादि से शाब्दिक व अशाब्दिक रूप में अधिगम सामग्री ग्रहण कर सकता है।
  6. ई – लर्निंग द्वारा व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखा जाता है। अधिगमकर्ता ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग टेक्नोलॉजी द्वारा अधिगम सामग्री की अपनी आवश्यकतानुसार पुनरावृत्ति कर सकता है।
  7. गेमिंग व टेक्नोलॉजी तथा अनुरूपित अनुदेशन के विशिष्ट प्रारूपों के माध्यम, ई लर्निंग शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को ऐसा स्वरूप प्रदान करती हैं जो परम्परागत शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में खेल-खेल में सीखना तथा व्यवहार में लाकर सीखने आदि शिक्षण सूत्रों को अपनाने प्राप्ति में परिलक्षित होता है।
  8. ई-लर्निंग द्वारा मूल्यांकन का कार्य भी किया जाता है। मूल्यांकन का कार्य अधिगमकर्ता स्वयं भी कर सकता है और शिक्षक द्वारा भी किया जा सकता है। निदानात्मक तथा उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने में भी यह तकनीकी अपेक्षाकृत अधिक सहयोगी है।

ई-लर्निंग की सीमाएँ

उपयोगी होने के फलस्वरूप भी ई-लर्निंग की कुछ निम्नलिखित कमियाँ हैं-

  1. ई लर्निंग में शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है कि वे कम्प्यूटर इंटरनेट तथा वेब टेक्नॉलोजी के प्रयोग में प्रशिक्षित हों। क्योंकि कुशलता के अभाव में वांछित लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव नहीं है।
  2. शिक्षकों के लिए ई लर्निंग सम्बन्धी प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रावधान नहीं है। परिणामस्वरूप शिक्षक वर्ग ईलर्निंग सुविधा का लाभ उठाने में उत्साह और रुचि का प्रदर्शन नहीं करते हैं। इन परिस्थितियों में विद्यालय में ईलर्निंग की व्यवस्था कर पाना एक कठिन कार्य है।
  3. ई-लर्निंग के लिए आवश्यक है कि शिक्षक एवं छात्र सभी के पास कम्प्यूटर, लैपटाप, मल्टीमीडिया, इंटरनेट, वेब इत्यादि की सुविधा उपलब्ध हो जिससे वे विद्यालय, घर एवं अन्य अधिगम स्थानों पर उसका लाभ उठा सके।
  4. हमारे देश में अधिकांशतः विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में इस प्रकार के साधनों की उचित व्यवस्था नहीं है। इसलिए निकट भविष्य में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी से युक्त साधनों की उपलब्धि की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  5. ई लर्निंग अधिगम व्यवस्था में परम्परागत कक्षा शिक्षण की भाँति सामाजिक सम्बन्धों को सम्पर्क का अवसर प्राप्त नहीं होता। उन्हें न तो साथी विद्यार्थियों के साथ वार्तालाप का अवसर मिलता है न शिक्षकों के साथ। इसके साथ ही जिस प्रकार का मार्गदर्शन, पृष्ठपोषण, निदानात्मक कक्षा व्यवस्था में सम्भव होता है वैसा ई लर्निंग में नहीं हो सकता है।
  6. आज मल्टीमीडिया, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वेब टेक्नोलोजी इत्यादि का दुरुपयोग किये जाने के कारण अध्यापक माता-पिता तथा समाज के अन्य वर्ग भी ई-लर्निंग के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। परम्परागत कक्षा शिक्षण की तुलना में बालकों के व्यक्तित्व का उचित विकास करने में यह अपेक्षित सहयोग प्रदान करने में सहायक नहीं है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि विद्यालीय शिक्षा एवं अनुदेशन में ई लर्निंग का प्रयोग करने में काफी बाधाएँ हैं। किन्तु ऐसा ई-लर्निंग के लिए ही नहीं है, वरन् जब भी कोई नई व्यवस्था की जाती है या कोई नई प्रथा की शुरुआत की जाती है तो बाधाएँ व शंकाएँ तो उत्पन्न होती ही हैं और विरोध भी किया जाता है। किन्तु इस डर से हम शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति करने वाली तकनीकियों या नवाचारों का प्रयोग रोक नहीं सकते बल्कि उसकी उपयोगितानुसार उनका अधिक प्रयोग करने के तरीकों को ढूंढ़ने का प्रयत्न करेंगे।

आज हम शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण कर सबके लिए शिक्षा की व्यवस्था करना चाहते हैं ऐसी स्थिति में ई-लर्निंग जैसा सशक्त माध्यम महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

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