इकाई बैंकिंग

इकाई बैंकिंग प्रणाली में बैंकों का संगठन एक कार्यालय तक ही होता है। सीमित क्षेत्र में इन बैंकों की कुछ शाखाएँ भी हो सकती। इसका प्रचलन संयुक्य राज्य अमेरिका में अधिक है। वहाँ के नगरों में छोटे-छोटे बैंक पाये जाते हैं जो अपने एकल कार्यालय से सभी बैंकिंग कार्य सम्पादित करते हैं। विभिन्न इकाई बैंक एक-दूसरे के प्रतिनिधि की भाँति भी कार्य करते है।

कैन्ट के अनुसार, “इकाई बैंकिंग प्रणाली में प्रत्येक स्थानीय बैंकिंग संस्था एक अलग निगम होता है जिसका अलग पंजीयन होता है एवं जिसकी स्वयं की पूँजी, निदेशक मण्डल व स्कन्ध धारक होते हैं”

इकाई बैंकिंग की विशेषताएं

इकाई बैंकिंग की निम्नलिखित विशेषताऐं होती हैं:

  1. इसके अन्तर्गत प्रत्येक बैंक का केवल एक ही कार्यालय होता हैं।
  2. ये बैंक सीमित क्षेत्र में अपनी शाखायें भी स्थापित कर लेते हैं।
  3. यह बैंकिंग प्रणाली अमेरिका में अधिक प्रचलित है।
  4. इकाई बैंके एक-दूसरे के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने का समझौता करते हैं।
  5. ये बैंक अपने नकद कोषों को किसी बड़े बैंक में जमा करते हैं। ये बड़े बैंक सम्बन्धित बैंक कहलाते हैं।

इकाई बैंकिंग प्रणाली के गुण

इकाई बैंकिंग प्रणाली के लाभ निम्नलिखित हैं :

  1. निरीक्षण, नियंत्रण तथा प्रबन्धन में आसानी – इकाई बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत – बैंकों का कार्यक्षेत्र एक स्थान विशेष तक सीमित होने के कारण इनके निरीक्षण, नियंत्रण एवं प्रबन्ध में आसानी रहती है।
  2. कार्यकुशलता में वृद्धि होना – इन बैंकों में कार्यों से सम्बन्धित निर्णय शीघ्र लिये जाने के कारण कार्य में देरी नहीं होने पाती जिससे इनकी कार्यकुशलता बढ़ती है।
  3. एकाधिकार पर नियंत्रण – इस बैंकिंग प्रणाली में बैंकिंग संस्थाएं स्थानीय तथा छोटी होती है जिससे एकाधिकार का भय नहीं रहता है।
  4. कार्यकुशलता रहित बैंकों की समाप्ति – यदि कोई इकाई बैंक कमजोर एवं अकुशल हो तो वह समाप्त हो जायेगा। इससे केवल सुदृढ एवं कुशल बैंक ही जीवित रह पाते हैं।
  5. स्थानीय आवश्यकताओं पर अधिक ध्यान – इकाई बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत स्थानीय महत्व की आवश्यकताओ पर अधिक जोर दिया जाता है।
  6. व्यवसाय शुरू करने की प्रेरणा – इस प्रणाली के अन्तर्गत कर्मचारी व अधिकारी स्थानीय समस्याओं की जानकारी रखते है इसलिए वे उसी के अनुसार प्रारम्भ से ही कार्य करते हैं।

इकाई बैंकिंग प्रणाली के दोष

इकाई बैंकिंग प्रणाली दोष मुक्त नहीं है। इस प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं –

  1. श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण असम्भव होना – इकाई बैंकों के आर्थिक साधन सीमित होने तथा आकार छोटा होने के कारण इनमें विशेषज्ञों की नियुक्ति नहीं की जा सकती है और न ही श्रम विभाजन को ही प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके कारण विशिष्टीकरण तथा श्रम विभाजन के लाभ भी इकाई बैंकों को प्राप्त नहीं हो पाते हैं ।
  2. सीमित कार्यक्षेत्र एवं साधन – ये बैंक अपने सीमित निजी साधनों से बैंकिंग कार्य करते हैं जिससे इनका कार्यक्षेत्र सीमित रहता है ये बैंक साधनों की कमी के कारण व्यवसाय जगत की सहायता नहीं कर पाते हैं।
  3. जोखिम का भौगोलिक वितरण न हो पाना – इकाई बैंके स्थान विशेष तक सीमित होने के कारण जोखिमका भौगोलिक वितरण नहीं हो पाता है । यदि बैंकिंग क्षेत्र में मन्दी आ जाय तो बैंकों के असफल होने की संभावना रहती है ।
  4. पूँजी का अन्तरण करने पर अधिक व्यय – इकाई बैंक धन का स्थानान्तरण करने के लिए अन्य सम्बन्धित बैंको की सहायता लेते हैं जिससे धन का स्थानान्तरण महेंगा एवं असुविधाजनक रहता है ।
  5. व्याज दरों में अन्तर होना – पूँजी का अन्तरण महंगा एवं असुविधाजनक होने के कारण विभिन्न क्षेत्रों में ब्याज दरों में असमानता पायी जाती है। यह असमानता कुछ इस प्रकार की होती है कि अविकसित क्षेत्रों में ब्याज की दरें ऊँची होती है तथा विकसित क्षेत्रों में ब्याज की दरें नीची होती हैं ।
  6. अविकसित क्षेत्रों में बैंकों का अभाव – इकाई बैंके अविकसित कस्बों एवं छोटे नगरों में स्थापित नहीं किये जाते हैं क्योंकि इन्हें यहाँ पर सफलता नहीं मिल पाती है। इसलिए पिछड़े क्षेत्रों में बैंकों का विकास नहीं हो पाता है।
  7. सरकार को नियंत्रण स्थापित करने में असुविधा – इकाई बैंकिंग प्रणाली में कई लघु के होने के कारण सरकार को नियंत्रण स्थापित करने में कठिनाई होती है। केन्ट के अनुसार, हमारी इकाई बैंकिंग व्यवस्था में लगातार असफलताएँ ऐसे सैकड़ों बैंकों को जिनके पास विभिन्न कार्य करने हेतु न तो पर्याप्त साधन हैं और न ही व्यावसायिक अवसर है, बनाये रखने पर गम्भीर प्रश्न चिन्ह है।

हमारी इकाई बैंकिंग व्यवस्था में लगातार असफलताएँ ऐसे कड़ों को जिनके पास विभिन्न कार्य करने हेतु न तो पर्याप्त साधन है व्यावसायिक अवसर है, बनाये रखने पर गम्भीर प्रश्न चिन्ह है।

केन्ट के अनुसार

इकाई बैंकिंग के दोषों को दूर करने हेतु सुझाव

इकाई बैंकिंग के दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए:

  1. सीमित शाखा विस्तार करना – इकाई बैंकिंग की दशा में बैंकों को अपने आस-पास के क्षेत्रों में सीमित संख्या में शाखाएंफैलानी चाहिए जिससे उनके व्यवसाय एवं लाभ में वृद्धि हो सके।
  2. सम्बद्ध बैंकों का विस्तार एवं सहयोग – लघु इकाई बैंकों के अतिरिक्त कोषों को अपने यहाँ जमा रखने, उनकी धन अन्तरण में मदद करने, उन्हें परामर्श देने, ऋण के रूप में सहायता देने आदि कार्यों हेतु सम्बद्ध बैंकों की स्थापना तथा विस्तार किया जाना चाहिए एवं इन बैंकों को अपना सहयोग इकाई बैंकों को प्रदान करना चाहिए। सम्बद्ध बैंकों की मदद से इकाई बैंक परस्पर सम्बद्ध होकर अधिक कुशल सेवा देते हैं।
  3. श्रृंखलाबद्ध एवं समूह बैंकिंग प्रणाली का विस्तार – इकाई बैंकिंग प्रणाली के दोषों को करने हेतु श्रृंखलाबद्ध बैंकिंग प्रणाली एवं समूह बेकिंग प्रणाली को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

इकाई बैंकिंग प्रणाली का महत्व

इन दोनों प्रणालियों में सर्वश्रेष्ठ प्रणाली कौन है यह जानने के लिए सर्वप्रथम इकाई बैंकिंग प्रणाली एवं शाखा बैंकिंग प्रणाली की उपयोगिता पर ध्यान दें तो यह कह सकते हैं कि अमेरिका ने सर्वप्रथम सुझाव इकाई बैंकिंग प्रणाली का दिया था। अतः अमेरिका में इकाई बैंकिंग प्रणाली को ही अपनाया गया जबकि शाखा बैंकिंग प्रणाली को बहुत से देश अपना रहे हैं।

सर्वप्रथम शाखा बैंकिंग पद्धति आस्ट्रेलिया, जर्मनी, कनाडा, फ्रांस एवं इंग्लैण्ड आदि देशों में अपनायी गयी । तत्पश्चात् विश्व के अनेक एशियाई देशों ने भी इसे अपनाया । इंग्लैण्ड के 75% भाग पर कुल 5 बैंकों का अधिकार है जबकि भारत में 90% भाग पर अनुसूचित बैंकों का विस्तार हुआ है । इस दृष्टि से शाखा बैंकिंग देश में अधिक लोकप्रिय हुई है।

अब हमारे सम्मुख यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि दोनों बैंकिंग प्रणालियों में कौन सबसे अधिक श्रेष्ठ है ? एक अर्थशास्त्री के रूप में न्यायपूर्वक ढंग से यह कहा जा सकता है कि इकाई बैंकिंग एवं शाखा बैंकिंग में से किसी भी एक को देश की परिस्थितियों के अनुरूप प्रयोग में लाया जा सकता है। प्रो० टामस का कथन यह है कि दोनों ही प्रणालियाँ अपूर्ण हैं परन्तु कार्य करने के अनुसार शाखा प्रणाली अधिक श्रेष्ठ है।

बैंक के अर्थ, कार्यों के वर्गीकरण एवं संगठन का विवेचन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का विकास करने के लिये धरातल प्रदान करते हैं, तो जनता को आर्थिक क्रियाओं के माध्यम से विनियोग, बचत, आय आदि के लिये प्रेरित भी करते हैं । इन्हीं सब कारणों से बैंक आज के समाज के एक विशेष अंग बन गये हैं। जिनके संचालित होने पर समाज में सुख-समृद्धि व शान्ति की स्थापना होती है। अतः यह कहना कुछ गलत नहीं होगा कि बैंक आज के युग के लिये एक वरदान हैं।

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