अभिक्रमित शिक्षण की 5 विशेषताएं 6 लाभ 6 दोष New

अभिक्रमित शिक्षण अंग्रेजी के Programmed Teaching का हिंदी रूपांतरण है यह दो शब्दों के योग से बना है Programmed + Teaching, इसमें Programmed का अर्थ है अभिक्रमित या योजनाबद्ध या क्रमबद्ध और टीचिंग का अर्थ है शिक्षण या शिक्षण द्वारा बताई गई जिससे इस प्रकार अभिक्रमित शिक्षण का अर्थ है क्रमबद्ध या योजनाबद्ध शिक्षण।

अभिक्रमित शिक्षण

इसमें पढ़ाई जाने वाली विषय वस्तु को अनेक छोटे छोटे एवं नियोजित खंडों में विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत किया जाता है, जिससे कि विद्यार्थी स्वयं प्रयास करके अपनी गति से ज्ञान अर्जन करता हुआ आगे बढ़ता है। इससे छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है अभिक्रमित शिक्षण की परिभाषाएं निम्न है –

अभिक्रमित शिक्षण सीधी जाने वाली सामग्री को इस प्रकार से प्रस्तुत करने को व्यक्त करता है जिसमें विद्यार्थी से सामग्री या विषय वस्तु को सीखने की पूर्व नियोजित विशिष्ट प्रक्रियाओं को सावधानीपूर्वक अनुसरण करने जिस विषय वस्तु को उसने सीखा है से शुद्धता के आधार पर जांच करने और अंत में उस विशिष्ट ज्ञान का उसी समय या कुछ समय बाद पुनर्बलन करने की अपेक्षा की जाती है।

जेम्स एम ली

अभिक्रमित शिक्षण शिक्षा की एक प्रक्रिया है जो यह सुनिश्चित करने में हमारी सहायता करेगी कि प्रत्येक विद्यार्थी बिल्कुल उन्हीं बातों से प्रारंभ करता है जिन्हें वह जानता है और स्पष्ट लक्ष्य के लिए अपनी सर्वोत्तम गति से अग्रसर होता है।

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि अगर अमित शिक्षण एक ऐसा शिक्षण है जिसमें एक निर्दिष्ट निष्पत्ति के स्तर को प्राप्त करने में विद्यार्थियों की सहायता के लिए एक पाठ्यपुस्तक और इलेक्ट्रॉनिक युक्ति के अभिक्रमित उपयोग द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं –

  1. छोटे चरणों में शिक्षण प्रदान करना
  2. शिक्षण में प्रत्येक चरण के विषय में एक या अधिक प्रश्न पूछना और तक्षण ज्ञान कराना कि प्रत्येक उत्तर सही है या गलत
  3. विद्यार्थियों को स्वयं या तो व्यक्तिगत रूप से स्वागत ही के माध्यम से यह समूह के रूप में समूह गति के माध्यम से अपनी गति से उन्नति करने के सुयोग्य बनाना।
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अभिक्रमित शिक्षण की विशेषताएं

अभिक्रमित शिक्षण की विशेषताएं निम्नलिखित हैं –

  1. अभिक्रमित अनुदेशन तथा अधिगम व्यक्तिगत रूप से शिक्षण प्रदान करने की एक तकनीकी है। यह अनुदेशन अथवा शिक्षण विभिन्न स्रोतों तथा साधना वैसे अभिक्रमित पाठ्यपुस्तक शिक्षण मशीन कंप्यूटर आज के द्वारा दिया जा सकता है।
  2. इस प्रकार के निर्देशन में अनुदेशन आत्मक सामग्री को पहले तार्किक क्रम में व्यवस्थित किया जाता है और फिर इसे छोटे-छोटे उचित पदों में व्यक्त कर दिया जाता है। इन पदों को प्रेम कहकर पुकारा जाता है।
  3. अनुदेशनात्मक या शिक्षण सामग्री की किसी एक विशेष इकाई से संबंधित विभिन्न पदों को व्यवस्थित एवं श्रंखला बंद करने के लिए विद्यार्थियों के प्रविष्टि और व्यवहार को ध्यान में रखना होता है।
  4. अभिक्रमित शिक्षण में विद्यार्थियों को बराबर बराबर सक्रिय रहना पड़ता है। वास्तव में विद्यार्थी और प्रस्तुत विषय सामग्री के बीच होने वाली पारस्परिक अंतर क्रिया पर ही यहां अधिक बल दिया जाता है।
  5. अभिक्रमित अनुदेशन में किसी भी अधिगमकर्ता को स्वयं अपनी गति से सीखने का पूरा पूरा अवसर मिलता है।

अभिक्रमित अनुदेशन या अधिगम की उपरोक्त विशेषताओं और प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अभिक्रमित अनुदेशन या अधिगम के अर्थ को निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-

अभिक्रमित अनुदेशन का अधिगम सुव्यवस्थित रूप से निर्वाचित तार्किक रूप से प्रमाणित दवा गुंजन से नियंत्रित रखती शिक्षण अथवा अनुदेशन की वह तकनीकी व विधि है जिससे अधिगम के सक्रिय अनुबंधन और पुनर्बलन संबंधी सिद्धांतों को ध्यान में रखकर पढ़ाई जाने वाली वस्तु को छोटे-छोटे पदों या फिल्मों में इस प्रकार संघ का वध किया जाता है कि एक अधिगम मन करता को स्वयं अपनी गति से सीखने और आगे बढ़ने का उपयुक्त अवसर मिल सके।

अभिक्रमित शिक्षण के लाभ

अभिक्रमित शिक्षण के लाभ निम्न है-

  1. इस शिक्षण में विद्यार्थी को प्रत्येक पद की अनुक्रिया पर तक्षण प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है। जिससे उसे पुनर्बलन प्राप्त होता है।
  2. इसमें विद्यार्थियों की कठिनाइयों का निराकरण किया जाना सरल है।
  3. इसमें विद्यार्थियों में स्वाध्याय की आदत विकसित होती है।
  4. इसमें विद्यार्थी अपनी गति से एवं योग्यता अनुसार ज्ञानार्जन करते हैं।
  5. यह शिक्षण मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है इसमें छात्र की व्यक्तिक भावनाओं को दृष्टिगत रखा जाता है।
  6. इसमें विद्यार्थी अपना कार्यक्रम पूर्ण रूप से करने में तन्मयता से लगे रहते हैं अतः इसमें कक्षा अनुशासन की समस्या नहीं रहती।

अभिक्रमित शिक्षण के दोष

अभिक्रमित शिक्षण के दोष निम्न है-

  1. इस शिक्षण में विद्यार्थी अपने कार्यक्रम के अनुरूप अनु क्रियाओं करने में संलग्न रहता है उनमें सामाजिकता एवं परस्पर सहयोग की भावना ही विकसित नहीं हो पाती है।
  2. इस शिक्षण में शिक्षण यांत्रिक हो जाता है जिससे शिक्षण की स्वाभाविकता समाप्त हो जाती है।
  3. यह धन एवं समय की दृष्टि से मितव्यई नहीं है।
  4. उचित कार्यक्रमों का सृजन ना होने पर अभिक्रमित शिक्षण की सफलता संदिग्ध हो जाती है क्योंकि कुछ शिक्षक सही कार्यक्रमों के श्रजन में दक्ष नहीं होते हैं।
  5. इससे ज्ञानात्मक उद्देश्य की ही प्राप्ति हो सकती है भावात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति से संभव नहीं है।
  6. इसमें कार्यक्रम के प्रथम पद से अनुप्रिया के गलत होने से विद्यार्थी हतोत्साहित होने लगते हैं उससे उनकी रूचि समाप्त हो जाती है।
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