अनुरूपित शिक्षण विशेषताएँ लाभ हानि सीमाएँ

किसी दी हुई कृत्रिम परिस्थिति में बिल्कुल यथार्थ जैसा शिक्षण करना ही अनुरूपित शिक्षण कहलाता है। अनुरूपित शिक्षण सीखने तथा प्रशिक्षण कि वह प्रविधि है जो अभिनय के माध्यम से छात्राध्यापक के समस्या समाधान, व्यवहार के लिए योग्यता का विकास करती है, तथा उसे भली-भांति पढ़ाने का प्रशिक्षण प्रदान करती है।

अनुरूपित शिक्षण

अनुरूपित शिक्षण आमतौर पर शिक्षक शिक्षा में किया जाता है। यह छात्र व शिक्षकों को वास्तविक शिक्षा के लिए भेजने से पहले कार्य में लाया जाता है। यह छात्राध्यापकों को कक्षा परिस्थिति से पूर्णतया परिचित कराता है। इस प्रक्रिया में प्रत्येक तत्व का अपना महत्व होता है। सबसे पहले शिक्षक शिक्षार्थियों को समझने का प्रयास करता है।

अनुरूपित शिक्षण विशेषताएँ

इस स्तर पर वह कमजोरी, व्यय वरीयताओं आदि के बारे में जागरूक हो जाता है और तद्नुसार जानने के लिए छात्र को सुझाव देता है। इस स्तर पर शिक्षक को खुद को सन्तुष्ट करना है। वस्तु छात्र के लिए उपयोगी है। उसके बाद वह छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के लिए उचित विधि को अपनाता है। अन्त में मूल्यांकन किया जाता है, इससे सफलता या विफलता और छात्रों की कमजोरी और उपलब्धियों का पता चलता है।

अनुरूपित शिक्षण की धारणा

  1. उपकरणों के उपयोग से शिक्षक व्यवहार को बदलने योग्य है एवं उसे बदला जा सकता है ।
  2. शिक्षक व्यवहार के कुछ सामाजिक संचार कौशल हैं जो प्रभावी शिक्षण के लिए आवश्यक हैं। इन सामाजिक कौशलों को प्रतिक्रिया डिवाइस द्वारा संशोधित किया जाना चाहिए।
  3. भूमिका निभाने के माध्यम से कक्षा की समस्याओं की मनोवैज्ञानिक प्रशंसा बढ़ेगी और कक्षा में समस्या को निपटाने के लिए छात्र-शिक्षक में एक विश्वास बनाया जा सकता है।
  4. शिक्षक व्यवहार का अपना वर्गीकरण है जो काल्पनिक शिक्षण तकनीक का उपयोग करके कार्ल ओपनशेव द्वारा विकसित किया गया है और अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

अनुरूपित शिक्षण पद्धति के लाभ

कुंक शेक ने अनुरूपित शिक्षण पद्धति के निम्नलिखित लाभों का वर्णन किया है—

  1. सिम्युलेटेड ट्रेनिंग के माध्यम से छात्र-शिक्षक विभिन्न तरीकों से मदद करते हैं। यह उनके बीच आत्मविश्वास को विकसित करने में मदद करता है।
  2. यह तकनीक शिक्षण के अभ्यास के साथ सिद्धान्त को जोड़ने में मदद करता है।
  3. इसमें विद्यार्थी व शिक्षकों को एक महत्वपूर्ण शिक्षण समस्याओं का अध्ययन और विश्लेषण करने का अवसर दिया जाता है।
  4. छात्र-शिक्षक कक्षा की व्यवहार समस्याओं को समझते हैं और उन्हें सामना करने के लिए अन्तर्दृष्टि विकसित करते हैं।
  5. सिमुलेट ट्रेनिंग छात्र व शिक्षकों को अपने व्यवहार को करने के लिए प्रदान करता है।
  6. यह छात्र-शिक्षकों के बीच सामाजिक व्यवहार और शिष्टाचार जैसे सामाजिक कौशल विकसित करने में सहायता करता है।
  7. सिम्युलेटेड ट्रेनिंग में स्वयं निगरानी है। यह वांछित व्यवहार के लिए छात्र-शिक्षक को मजबूत करता है।
  8. यह छात्र-शिक्षक में दक्षता विकसित करने और वास्तविक कक्षा में जाने से पहले शिक्षण के परिणामों की भविष्यवाणी में मदद करता है।
  9. यह भूमिका निभाने का एक परिणाम के रूप में, यह छात्र शिक्षकों में महत्वपूर्ण सोच के विकास में मदद करता है।

अनुरूपित शिक्षण विधियों का नुकसान

  1. सिमुलेशन रोल प्लेइंग कृत्रिम परिस्थितियों में किया जाता है जो गैर- मनोवैज्ञानिक और अव्यावहारिक हैं।
  2. सिमुलेशन सामाजिक नाटक या गेमिंग की तरह है, जो सीखने की गम्भीरता को कम करता है।
  3. शिक्षण कौशल या सामग्री पर कोई जोर नहीं दिया जाता है, केवल सामाजिक व्यवहार को सिखाया जाता है।
  4. इसके लिए प्रशिक्षणकर्मियों द्वारा पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है जो आमतौर पर उपलब्ध नहीं हैं या उनके कर्तव्यों के प्रति समर्पित नहीं हैं।
  5. सिमुलेशन एक साधारण तरीके से वास्तविक स्थितियों को चित्रित करने का प्रयास है, जो सामान्य रूप से बहुत जटिल और कठिन है।

अनुरूपित शिक्षण की विधि

अनुरूपित शिक्षण में प्रशिक्षण के समय प्रत्येक छात्राध्यापक को तीन प्रकार की भूमिकाएँ बारी-बारी से निभानी पड़ती हैं। वे हैं- (1) शिक्षक, (2) छात्र तथा (3) निरीक्षक। सर्वप्रथम कोई एक छात्राध्यापक शिक्षक की भूमिका, कोई दूसरा छात्राध्यापक निरीक्षक की भूमिका तथा शेष अन्य छात्राध्यापक छात्र की भूमिका का निर्वाह करते हैं। इसमें शिक्षण सत्र 06 से 15 मिनट का होता है पाठ की समाप्ति पर साथी निरीक्षक/पर्यवेक्षक एवं अन्य छात्राध्यापक (छात्र) मिलकर साथी छात्राध्यापक (शिक्षक) के शिक्षण व्यवहार पर चर्चा करते हैं तथा उसे (शिक्षक) को शिक्षण व्यवहार में सुधार हेतु पृष्ठपोषण प्रदान करते हैं।

अनुरूपित शिक्षण के तत्व

क्रुक शैंक ने अनुरूपित शिक्षण के तीन प्रमुख तत्वों को महत्व दिया है-

  1. निदानात्मक तत्व
  2. उपचारात्मक तत्व
  3. मूल्यांकन तत्व

अनुरूपित शिक्षण में शिक्षक की भूमिका में छात्रों की समस्याओं (अध्ययन/पाठ्यवस्तु सम्बन्धी) का निदान करना होता है। तत्पश्चात पाठ्यवस्तु का प्रस्तुतीकरण (उपचारात्मक तत्व) करना होता हैं। छात्राध्यापक को छात्र की भूमिका में शिक्षण का निदान करना होता है। निरीक्षक/पर्यवेक्षक की भूमिका में सम्पूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया तथा कौशलों का मूल्यांकन करना होता है। मूल्यांकन की क्रिया यह बतलाती है कि कौशलों का विकास किस सीमा तक हुआ। दक्षता स्तर प्राप्त न होने की स्थिति में पुनः निदान, उपचार तथा मूल्यांकन की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति की जाती है। सभी छात्राध्यापकों को शिक्षण की क्रियाओं तथा कौशलों का बोध होता है तथा अभ्यास का अवसर बारी-बारी से प्रदान किया जाता है।

अनुरूपित शिक्षण की विशेषताएँ

इस प्रविधि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. यह प्रविधि छात्राध्यापकों को प्रभावी एवं क्रमबद्ध रूप से पृष्ठपोषण प्रदान करती है।
  2. यह प्रविधि छात्राध्यापकों को विभिन्न शिक्षण / सामाजिक कौशलों के विकास एवं निपुणता (Mastery) प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होती है।
  3. सूक्ष्म शिक्षक के साथ इस प्रविधि का उपयोग करके शिक्षक प्रशिक्षण को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
  4. इस प्रविधि के द्वारा छात्राध्यापकों में आत्मविश्वास के साथ शिक्षण कार्य में रुचि, प्रेरणा, उत्साह इत्यादि का विकास होता है।
  5. छात्राध्यापकों में कक्षा व्यवहार के उपयुक्त ढंग विकसित करने में यह प्रविधि मददगार सिद्ध होती है।
  6. छात्राध्यापकों को कृत्रिम परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से कार्य करने का अवसर मिलता है।
  7. छात्राध्यापकों को पूर्वाभ्यास के अवसर मिलते हैं, जिससे शर्मीले स्वभाव वाले तथा अन्तर्मुखी, छात्रों को भी अपने अन्दर शिक्षण / सामाजिक कौशलों के विकास का उपयुक्त अवसर मिलता है।
  8. इसे शिक्षण अनुसंधान एवं विकास के लिए एक प्रविधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  9. यह प्रविधि सरल, सुगम एवं उपयोगी है।
  10. इस प्रविधि द्वारा छात्राध्यापकों में समस्या समाधान की क्षमता का विकास होता है तथा विभिन्न भूमिकाओं (शिक्षक, छात्र तथा निरीक्षक) की बारीकियों को समझ जाते हैं।
  11. पाठ्यवस्तु को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करने की योग्यता का विकास छात्राध्यापकों में होता है।
  12. छात्राध्यापकों में विभिन्न अधिगम समस्याओं के प्रति संज्ञान होता है तथा उनमें सुग्राहिता (Sensitivity) आती है।

अनुरूपित शिक्षण के लक्षण

  1. अनुरूपित शिक्षण, शिक्षण के सिद्धान्त और शिक्षण की स्थिति का अध्ययनकर्ता के दृष्टिकोण से मिलता है।
  2. यह वास्तविक स्थिति की कल्पना देता है और इसे आवश्यक रूप से मूल के समकक्ष लाकर खड़ा करता है।
  3. यह प्रतिभागी प्रैक्टिस टीचर के भाग पर वास्तविकता की सामग्री के प्रति संवेदनशील समझ पर निर्भर है।

अनुरूपित शिक्षण की सीमायें

इस प्रविधि की सीमायें निम्नलिखित हैं-

  1. इस प्रविधि के प्रभावी होने के लिए कृत्रिम कक्षा में विषय विशेषज्ञ का होना आवश्यक है। अन्यथा छात्राध्यापक अपनी भूमिकाओं का निर्वाह सही तरीके से नहीं कर सकते हैं।
  2. कभी-कभी छात्राध्यापक भलीभाँति ‘बालकों’ की भूमिका नहीं निभा पाते हैं, जिससे कक्षा, वास्तविक कक्षा के रूप में कार्य नहीं कर पाती है।
  3. निरीक्षक/पर्यवेक्षक की भूमिका निभाने वाले छात्राध्यापक अनुभव के अभाव में सही भूमिका निर्वाह नहीं कर पाते हैं। परिणामस्वरूप प्रभावी पृष्ठपोषण छात्राध्यापक को नहीं मिल पाता है।
  4. कभी-कभी छात्राध्यापक इस प्रतिधि का उपयोग अपने सहपाठियों की आलोचना (सही पृष्ठपोषण न देना) में भी कर सकते हैं, जिससे उनके बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  5. कुछ छात्राध्यापक सही ढंग से भूमिका (शिक्षक, छात्र तथा निरीक्षक) निर्वाह न कर पाने के कारण हतोत्साहित हो सकते हैं।
  6. उपरोक्त सीमाओं की बावजूद अनुरूपित शिक्षण अगर शिक्षक प्रशिक्षक की देखरेख में आयोजित किया जाता है, तो निःसन्देह यह प्रविधि भावी अध्यापकों में शिक्षण/सामाजिक कौशलों के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
शैक्षिक तकनीकीशैक्षिक तकनीकी के उपागमशैक्षिक तकनीकी के रूप
व्यवहार तकनीकीअनुदेशन तकनीकीकंप्यूटर सहायक अनुदेशन
ई लर्निंगशिक्षण अर्थ विशेषताएँशिक्षण के स्तर
स्मृति स्तर शिक्षणबोध स्तर शिक्षणचिंतन स्तर शिक्षण
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व्याख्यान नीतिप्रदर्शन नीतिवाद विवाद विधि
श्रव्य दृश्य सामग्रीअनुरूपित शिक्षण विशेषताएँसूचना सम्प्रेषण तकनीकी महत्व
जनसंचारश्यामपट

अनुरूपित शिक्षण के सफल प्रयोग में सावधानियाँ

इस प्रविधि के प्रयोग में अग्रलिखित सावधानियाँ अपेक्षित हैं-

  1. प्रत्येक छात्राध्यापक को शिक्षक, निरीक्षक तथा छात्र की भूमिका निर्वाह का अवसर मिलना चाहिए तथा अपनी भूमिका के अनुरूप वास्तविक व्यवहार करना चाहिए।
  2. प्रत्येक छात्राध्यापक को अभ्यास किये जा रहे कौशल का भलीभाँति ज्ञान होना चाहिए तथा पायी जाने वाली पाठ्य वस्तु (पाठ योजना) पर दक्षता होनी चाहिए।
  3. अनुरूपित शिक्षण का प्रयोग करते समय कक्षा में शिक्षक प्रशिक्षक का होना आवश्यक है। अन्यथा छात्राध्यापक इसे गम्भीरता से नहीं ले सकते हैं।
  4. शिक्षण समाप्ति के पश्चात वाद-विवाद या चर्चा की प्रवृत्ति निदानात्मक होनी चाहिए । छात्राध्यापक के अच्छे शिक्षक व्यवहार तथा क्रियाओं की प्रशंसा करनी चाहिए तथा उसके व्यवहार में सुधार या परमार्जन हेतु सुझाव देना चाहिए। इस अवसर का उपयोग छात्राध्यापक की आलोचना करने के लिए नहीं करना चाहिए।
  5. एक ही विषय के छात्राध्यापकों के समूह में इस प्रविधि का अभ्यास करना चाहिए।
  6. निरीक्षक/पर्यवेक्षक की भूमिका वस्तुनिष्ठ, सहयोगात्मक एवं निदानात्मक होनी चाहिए।
  7. छात्राध्यापक को एक समय में एक ही शिक्षण/सामाजिक कौशल का अभ्यास करना चाहिए।
  8. अनुरूपित शिक्षण के समय प्रत्येक छात्राध्यापक को जागरूक एवं अपनी भूमिका के प्रति सचेत होना चाहिए ।
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