अंकेक्षण के प्रकार – 12 Types of Audit in Hindi

अंकेक्षण के प्रकार अनेक हो सकते हैं, यहां व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार तथा व्यावहारिक दृष्टि से अंकेक्षण के कई प्रकार बताए गए हैं।

अंकेक्षण किसी व्यवसाय या अन्य संगठन की वित्तीय क्रियाओं तथा उनके परिणामों से संबंधित तथ्यों को ज्ञात करने या सत्यापित करने तथा उन पर रिपोर्ट देने के उद्देश्य से पुस्तकों और लेखों का एक नियमबद्ध तरीके से किया गया परीक्षण है।

मांटगोमरी

अंकेक्षण का प्रमुख उद्देश्य लेखांकन अभिलेखों की सत्यता को जाँचना तथा यह प्रमाणित करना होता है कि ये विधान के अनुसार है। अंकेक्षक द्वारा लाभ-हानि खाते में की गयी प्रविष्टियों को सत्यापित किया जाता है।

अंकेक्षण के प्रकार

समानता अंकेक्षण का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जा सकता है,

  • व्यापारिक संस्था के संगठन के अनुसार
    1. वैधानिक अंकेक्षण
    2. निजी अंकेक्षण
    3. सरकारी अंकेक्षण
    4. आंतरिक अंकेक्षण
  • व्यावहारिक दृष्टि से
    1. चालू अंकेक्षण
    2. वार्षिक अंकेक्षण
    3. चिट्ठे का अंकेक्षण
    4. आर्थिक अंकेक्षण
    5. रोकड़ अंकेक्षण
    6. पूर्व अंकेक्षण
    7. विस्तृत अंकेक्षण
    8. लागत अंकेक्षण
    9. अंतिम अंकेक्षण
    10. औचित्य अंकेक्षण
    11. संपादन अंकेक्षण
    12. प्रबंध अंकेक्षण
अंकेक्षण अर्थ परिभाषाएं 3 उद्देश्य 7 लाभ सीमाएंअंकेक्षण के प्रकार – 12 Types of Audit in Hindi
अंकेक्षण कार्यक्रम अर्थ परिभाषा 7 उद्देश्य लाभ दोषचालू अंकेक्षण अर्थ परिभाषा आवश्यकता 10 लाभ हानि
आन्तरिक अंकेक्षण अर्थ परिभाषा 4 विशेषताएं लाभअंकेक्षण कार्यक्रम अर्थ परिभाषा 7 उद्देश्य लाभ दोष
आन्तरिक निरीक्षण अर्थ 7 उद्देश्य लाभ हानिप्रमाणन अर्थ परिभाषा 4 उद्देश्य महत्व
लागत अंकेक्षण अर्थ 5 उद्देश्य लाभ हानिप्रबन्ध अंकेक्षण अर्थ कार्य 7 लाभ उद्देश्य सीमाएं

वैधानिक अंकेक्षण

जिन संस्थाओं का कार्य किसी विधान के अनुसार चलता है उनमें अंकेक्षण भी अनिवार्य कर दिया जाता है। भिन्न-भिन्न संस्थाओं के कार्य भिन्न-भिन्न अधिनियमों के आधार पर चलते हैं। इन संस्थाओं में अंकेक्षण अनिवार्य होता है। वैधानिक अंकेक्षण के सम्बन्ध में दी गयी रिपोर्ट वैधानिक रिपोर्ट कहलाती है। यह अनिवार्य अंकेक्षण ही वैधानिक अंकेक्षण कहलाता है – इसके तीन उदाहरण हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।

  1. कम्पनियों का अंकेक्षण,
  2. प्रमाणों का अंकेक्षण,
  3. अन्य संस्थाओं का अंकेक्षण।

निजी अंकेक्षण

जिन संस्थाओं का कार्य किसी विधान के अनुसार नहीं चलता है, अर्थात् उनके ऊपर किसी प्रकार का वैधानिक बन्धन नही होता है। इस प्रकार की संस्थाओं का अंकेक्षण निजी अंकेक्षण कहलाता है। ये संस्थाएं अंकेक्षण का क्षेत्र स्वयं तय करती है तथा अपनी इच्छानुसार अंकेक्षण करवाती है। अंकेक्षण के प्रकार

इनके निम्नलिखित तीन वर्ग हो सकते है-

  1. एकाकी व्यापार का अंकेक्षण
  2. साझेदारी संस्थाओं के हिसाब किताब का अंकेक्षण
  3. निजी व्यक्तियों के हिसाब-किताब का अंकेक्षण।

सरकारी अंकेक्षण

जो अंकेक्षण सरकारी विभागों में किया जाता है, वह सरकारी अंकेक्षण कहलाता है। सरकार इसके लिए एक अंकेक्षण विभाग रखती है। इस विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी कम्पट्रीलर एण्ड ऑडीटर जनरल होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 के अन्तर्गत जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और कर्तव्यों का निर्धारण भारतीय संसद द्वारा किया जाता है। अंकेक्षण के प्रकार इन दोनों अधिकारियों के अधीन कई इकाइयाँ होती हैं जो सरकार के विभिन्न विभागों का अंकेक्षण करती हैं। इन इकाइयों में अनेक कर्मचारी होते हैं तथा राज्य में एक अलग से अंकेक्षण विभाग होता है, जो अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं का अंकेक्षण करता है। अंकेक्षण के प्रकार

आंतरिक अंकेक्षण

कुछ संस्थाएं हिसाब-किताब की गड़बड़ी एवं छल-कपट को रोकने के लिए अंकेक्षक कर्मचारियों आवश्यकता समझती हैं। अतः वे अन्य कर्मचारियों की भांति अंकेक्षकों की नियुक्ति भी करती हैं। अंकेक्षक स्थायी व वेतनभोगी होते हैं। इस प्रकार के अंकेक्षक द्वारा किया गया अंकेक्षण आन्तरिक अंकेक्षण कहलाता है, इन्हें सार्वजनिक अंकेक्षक नहीं कहा जा सकता है। मामूली योग्यता वाले व्यक्ति भी इस पद पर नियुक्त हो सकते हैं। इस प्रकार के अंकेक्षक सार्वजनिक रूप से कार्य न करके केवल अपनी ही संस्था के लिए कार्य करते हैं।

संक्षेप में, एक संस्था के हिसाब-किताब की समय-समय पर उसके वेतनभोगी कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली जाँच आन्तरिक अंकेक्षण कहलाती है। अंकेक्षण के प्रकार

वार्षिक अंकेक्षण

वार्षिक या सामयिक अंकेक्षण को अन्तिम या पूर्णकृत अंकेक्षण के नाम से भी जाना जाता है। सामान्यतः यह अंकेक्षण वित्तीय वर्ष के समाप्त होने पर जब अन्तिम खाते पूर्णतः तैयार हो जाते हैं। इस प्रकार यह अंकेक्षण वर्ष में केवल एक बार ही होता है। यह अंकेक्षण छोटी संस्थाओं के लिए अधिक उपयुक्त है। इसमें विशेष लाभ यह है कि एक बार जाँच होने के कारण अंक परिवर्तन की गुंजाइश नहीं रहती है। अंकेक्षण के प्रकार

चिट्ठे का अंकेक्षण

इस अंकेक्षण के अन्तर्गत अंकेक्षक को लाभ-हानि खाता में मदों से कोई मतलब नहीं होता है। वह केवल चिट्ठे की मदों (जैसे-पूँजी, धन-सम्पत्ति व देनदारियाँ आदि) की ही जाँच करता है; अर्थात केवल चिट्ठे से सम्बन्धित प्रपत्रों की जाँच की जाती है कि लाभ-हानि खातों की भारत में इसमें और अन्तिम अंकेक्षण में कोई अन्तर नहीं माना जाता है। अंकेक्षण के प्रकार

यह अंकेक्षण मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमरीका (U.S.A) में प्रयोग होता है जबकि इसका प्रयोग इंग्लैण्ड में और उन उपनिवेशो में नहीं होता है जिनका कम्पनी अधिनियम इंग्लैण्ड के कम्पनी अधिनियम पर आधारित है।

आशिक अंकेक्षण

आंशिक अंकेक्षण का तात्पर्य किसी ऐसी जांच से लगाया जाता है जो किसी विशेष अवधि के खातों के लिए की जाती है या हिसाब-किताब के किसी भाग के लिए की जाती है। यह अंकेक्षण व्यावहारिक नहीं है। इसीलिए कोई नियोक्ता ऐसा अंकेक्षण न तो करवाना चाहेगा और न ही कोई अंक ऐसे कार्य के लिए तैयार होगा। अंकेक्षण के प्रकार

रोकड़ अंकेक्षण

जब किसी संस्था द्वारा अपनी एक विशेष अवधि के केवल रोकड़ के लेन-देनों की जांच करने के लिए अंकेक्षक की नियुक्ति की जाती है तो उसे ‘रोकड़ अंकेक्षण’ कहा जाता है। इस अंकेक्षण के अन्तर्गत वह केवल रोकड़ बही की जांच तक ही सीमित रहता है। अपनी इस सीमा का उल्लेख उसे अपनी रिपोर्ट में अवश्य करना चाहिए। अंकेक्षण के प्रकार

पूर्ण अंकेक्षण

जब अंकेक्षक द्वारा किसी संस्था के प्रत्येक लेन-देन, प्रविष्टि एवं खाते की जाँच, प्रत्येक आवश्यक प्रमाण पत्र की सहायता से की जाती है, तो इस प्रकार का अंकेक्षण पूर्ण अंकेक्षण कहला है। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि इस अकेक्षण में प्रत्येक तथ्य की जाँच हो जाती है, अर्थात् कोई भी तथ्य जाँच से बच नहीं पाता है, लेकिन यह अंकेक्षण न तो व्यावहारिक है और न ही बहु संस्था में सम्भव है।

विस्तृत अंकेक्षण

यह अंकेक्षण, पूर्ण अंकेक्षण से थोड़ा सा अलग है। पूर्ण अंकेक्षण में सभी लेन-देनों, प्रविष्टियों एवं खातों की पूरी जांच होती है जबकि इस अंकेक्षण में गहन जाँच होती है। पूर्ण अंकेक्षण सभी प्रकार से पूर्ण किया जाता है, जबकि इसका क्षेत्र सीमित होता है इसकी जाँच के लिए चुने हुए व्यवहारी की परीक्षण जाँच की जाती है।

लागत अंकेक्षण

लागत लेखों का अंकेक्षण कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है, जिसे लागत अंकेक्षण के नाम से जाना जाता है। कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 233 (A) के अन्तर्गत, उन कम्पनियों का लागत-अंकेक्षण केन्द्रीय सरकार के आदेश द्वारा ही कराया जाता है जो कम्पनियों उत्पादन, निर्माण, रूपान्तर या खान खोदने के कार्य में संलग्न हैं। अंकेक्षण के प्रकार

अंतरिम अंकेक्षण

अन्तरिम अंकेक्षण को मध्य अंकेक्षण के नाम से भी जाना जाता है। यह अंकेक्षण वर्ष के बीच में किया जाता है। किसी कम्पनी द्वारा वर्ष के बीच में ही अन्तरिम लाभांश घोषित करने पर उसे अपने सभी खातों को बन्द कर अन्तिम खाते बनाने अनिवार्य हो जाते हैं और इन खातों का सही मूल्यांकन करने के लिए अन्तरिम अंकेक्षण कराया जाता है।

औचित्य अंकेक्षण

औचित्य अंकेक्षण सर्वसाधारण के उन सर्वोत्तम हितार्थ लेन-देनों की बात स्पष्ट रूप से करता है जो सर्वमान्य स्वीकृत रीति-रिवाजों तथा मानदण्डों के आधार पर किया जाता है। इसकी परिभाषा निम्न प्रकार दी गई है- औचित्य वह तथ्य है जो सार्वजनिक हित, सर्वमान्य तौर तरीकों तथा मानदण्डों के परीक्षणों पर खरा उतरे तथा जिसे विशेष तौर से सरकारी नियमनों की अनिवार्यताओं, पेशेवर निष्पादन तथा पेशे के मानक सिद्धान्तों पर लागू किया जा सके।

संपादन अंकेक्षण

किसी व्यावसायिक संस्थान द्वारा किए जा रहे आर्थिक कार्यों के लाभ व हानि के विश्लेषण में अपनायी गई प्रक्रिया सम्पादन अंकेक्षण कहलाती है। इससे उन साधनों की खोज हो सकती है जो लाभ का अधिक करें तथा उत्पादन व बिक्री के मध्य भी जांच हो। अंकेक्षण के प्रकार

प्रबंध अंकेक्षण

एक संगठन या संस्था में सभी स्तरों पर प्रबन्ध की कार्यक्षमता के मूल्यांकन में अपनायी गयी विधि को प्रबन्ध अंकेक्षण कहा जाता है। इसका विकास उत्पादकता, लाभ एवं प्रगति की खोज के लिए किया गया है। यह एक स्वतन्त्र मूल्यांकन गतिविधि है जो कि प्रबन्धकीय कार्यों की समीक्षा तथा नियन्त्रण के लिए होती है, जिससे कि संगठनात्मक नीतियों, उददेश्यों प्रविधियों निपतियों एवं प्रबन्धकीय विधियों के अनुशीलन का आश्वासन मिल सके।

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